Friday 18 March 2022

 कपिल सिब्बल और G-23 के कांग्रेस नेता

पिछले कई बरसों से कांग्रेस की लीडरशिप और उसकी नीतियों का विरोध कर रहे हैं। उन्हें विरोध करने का पूरा हक़ है और उनके विरोध का स्वागत भी है।

परंतु इन नेताओं को पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यह बताना होगा कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को बदलने के बाद वे कांग्रेस की दशा और दिशा में क्या परिवर्तन लाएंगे?
यह भी सच है कि जी -23 के ग़ुलाम नबी आज़ाद , कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी , आनंद शर्मा , शशि थरूर, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, पीजे कुरियन, वीरप्पा मोइली , भूपिन्दर हुड्डा , पृथ्वीराज चव्हाण जैसे नेता UPA -1 और 2 में केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री थे और इनमे से अगर कुछ को छोड़ दें तो बाकी ज़मींन से कटे हुए लोग हैं और इनकी अकर्मण्यता की वजह से 2014 में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई थी।
क्या प्रदेशों में कांग्रेस की हार के लिए वहां के मुख्यमंत्रियों को ज़िम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए?
जिन राहुल गांधी के ऊपर यह लोग सारा ठीकरा फोड़ते हैं वे UPA-1 और 2 में मात्र एक सांसद थे।
जब आप खुलकर कांग्रेस और कांग्रेस के अंदर गांधी परिवार के नेतृत्व का विरोध कर रहे हैं तो आपको खुलकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने कांग्रेस की वर्तमान नीतियों का विकल्प भी रखना पड़ेगा। आपको देश भर के काँग्रेस कार्यकर्ता को बताना होगा की किन नीतियों पर चलकर आप कांग्रेस को एक बेहतर पार्टी बना पाओगे ?
क्या आप कांग्रेस की मूल विचारधारा कोई परिवर्तन लाना चाहते हैं या सिर्फ़ कांग्रेस की वर्तमान कार्यप्रणाली को बदलना चाहते हैं, यह भी आपको पूरे देश के कार्यकर्ता को बताना पड़ेगा।
धार्मिक आतंकवाद के बलबूते पर BJP आज सत्ता में है। इन नेताओं को कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यह बताना पड़ेगा कि वे BJP के धार्मिक आतंकवाद से कैसे लड़ेंगे।

मैं मानता हूँ आप सब वरिष्ठ अनुभवी नेता है और बुद्धिमान भी है कांग्रेस का आम कार्यकर्ता आपसे एक ऐसे प्रपत्र की उम्मीद रखता है जिसमें आप लोग अपनी पूरी बात उन तक पहुँचा सकें।
सिर्फ़ गांधी परिवार के विरोध से काम नहीं चलेगा। आपको यह साबित करना पड़ेगा कि आप लोग गांधी परिवार से अधिक संघर्षशील हैं, अधिक लोकप्रिय हैं, आपकी नीतियां उनसे बेहतर है और आप कांग्रेस को चुनाव जितवाने में उनसे ज़्यादा सक्षम हैं।

इन नेताओं को आत्मनिरीक्षण भी करना पड़ेगा कि सत्ता से अलग होने के बाद पिछले आठ वर्षों में कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं के संघर्ष में इन्होंने उनका कितना साथ दिया और उनके संघर्ष में इनका क्या योगदान है?
पिछले आठ साल में राहुल गांधी और पिछले कुछ वर्षों से प्रियंका गांधी ने पूरे देश में कांग्रेस की मशाल जलाए रखने के लिए जो संघर्ष किया है उस संघर्ष में इनमें नेताओं में अधिकांश कहीं शामिल नहीं दिखाई पड़े। मेरा मानना है कि अगर इन नेताओं ने अपनी पूरी ताक़त से कांग्रेस नेतृत्व का साथ दिया होता तो कांग्रेस आज इतनी बुरी हालत में नहीं होती।

इन नेताओं से विनती है-
आलोचनाओं में नई कुछ सूचनाएँ हों
भविष्य के संघर्ष की कुछ कल्पनायें हों।
देश और कांग्रेस का कैसे होगा मंगल
सूचनाओं में नई संभावनाएं हों।
ज़ुबानी जमाखर्च से कुछ भी नहीं होगा
त्याग और बलिदान की नव गाथाएं हों।
नमन

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