Friday, 15 July 2011

'ATANKWAD AUR HUM'

१३ जुलाई को शाम लगभग ७ बजे एक बार फिर मुंबई शहर बम विस्फोटों से दहल गया|
१७ निरपराध मौतों  और १००से अधिक घायलों क़ी पीड़ा को शब्दों में व्यक्त कर पाना बहुत
मुश्किल है| हम सबको इन परिवारों से सहानुभूति है, परन्तु इलेक्ट्रोनिक मिडिया और अखबारों
का इस घटना को देखने का नजरिया साथ ही  राजनेताओं का व्यवहार और वक्तव्य, इन सबको
देखकर लगता है क़ी हमारा प्रजातंत्र अब भी जोकरों के हाथों में है|
 * उदाहरण के लिए एक स्थानीय नेता का वक्तव्य...... जब तक परप्रांतीय इस शहर में आते रहेंगे
तब तक ऐसी आतंकवादी वारदातें होती रहेंगी | क्या ए 'राज' नेता हमें बताएँगे क़ी सन ९३ के बम
धमाके का मुख्य आरोपी दावुद इब्राहीम किस परप्रांत से आया था? पिछले बार मुंबई क़ी शान
कहे जाने वाले ताज , ओबेरॉय होटलों और सी.एस.टी. टर्मिनस इत्यादि पर हुए हमले में कितने
पर प्रांतीयों ने सहयोग किया? हाँ, आतंकवादियों लड़ने परप्रांतीय एन.एस.जी. कमांडो जरूर आये और
उन्होंने अपना बलिदान भी दिया| मुबई क़ी ट्रेनों में हुए बम धमाकों में कितने परप्रांतीय शामिल थे?
इन धमाकों में परप्रान्तियों क़ी भी जाने गयी| कितना हास्यास्पद है इस राजनेता का बयान? 

* एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता टी. वी. पर बड़े गुस्से में दिखे, शायद भूल गए क़ी जब उनकी पार्टी  का
शासन था और वे केंद्रीय गृह मंत्री थे तो संसद भवन पर आतंकवादी हमले हुए थे | तब उनकी
लौह पुरुष क़ी छबि , आइ. बी., रा, गृह मंत्रालय क्या कर रहे थे| जब स्वामी नारायण मंदिर में
आतंकवादी घुसे या जब हवाई जहाज को कांधार ले जाया गया तो ये क्या कर रहे थे? बड़ी
बेशर्मी से करोड़ों रुपये क़ी फिरौती उनकी  सरकार ने आतंकवादियों को दी थी|

* एक बहुत समझदार व्यक्ति ने टी.वी. पर कहा क़ी ९/११ के बाद अमेरिका पर आज तक
आतंकवादी हमला नहीं हुआ, लन्दन में दुबारा कोई आतंकवादी वारदात नहीं हुई इत्यादि इत्यादि|
    इन लोगों का या तो गणित खराब है या इन्हें दूर का चस्मा लगा है जो इन्हें आतंकवाद क़ी
उर्वरा भूमि  पाकिस्तान से भारत और अमेरिका सामान दूरी पर नजर आते हैं|  अमेरिका और
लन्दन तक आतंकवादी हमले करने के लिए इन आतंकवादियों को हजारो किलोमीटर क़ी दूरी
तय करनी पड़ती है जब क़ी भारत पाकिस्तान से सटा हुआ है, पैदल सीमा पार क़ी जा सकती
है,  एक मोटर लौंच से कराची से मुबई आ सकते हैं|  फिर देखने में, बोलचाल में पाकिस्तानी
हिदुस्तानी में कोई अंतर नहीं है, हर आदमी से सुरक्षा एजेंसियां हर वक्त पासपोर्ट नहीं मांग
सकती| जिस तरह क़ी जांच एशियन मूल के लोंगों क़ी योरप और अमेरिका में होती है वह
यहाँ संभव नहीं है क्योकि हम एक जैसे हैं, वैसा करने के लिए हमें शतप्रतिशत लोगों क़ी जाँच
न केवल सीमा पर बल्कि हर रेलवे स्टेशन , हर रोड, हर एयर पोर्ट पर करनी होगी|

* हमारे नेता न तो सच बोलते हैं न सच पचा पाते हैं|
 राहुल गाँधी ने एक सीधा सरल सा सच कहा क़ी आतंकवादी वारदातों को शत प्रतिशत रोकना
संभव नहीं है | उनके इस १००% सच को सुन कर कुछ लोगों को हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया|
मैंने कभी लिख था....
 ' सच कहेगा जो वो सूली पायेगा , सत्य क़ी जग से पुरानी दुश्मनी है'

* अब बात करते हैं इलेक्ट्रोनिक मिडिया क़ी....
  ऐसी वारदातों के समय इनके रिपोर्टरों को चीख चीख कर बोलने क़ी बीमारी लग ज़ाती है|
स्थितियों को इस ढंग से पेश करते हैं क़ी जैसे एक वही ज्ञाता हैं और सब अज्ञानी| हमारे
स्टूडियो में बैठे अनाउंसर और वारदात क़ी जगह पर उपस्थित सवाददाता क़ी बातचीत सुन
कर ऐसा लगता है क़ी दोनों ज्वालामुखी पर बैठे हैं| हम अमेरिका का उदहारण देते है तो
उनके मीडिया से भी सीख लें और वीभत्स तरीके से तथ्यों को न परोसें| लोगों क़ी भावनाएं
न भड़काएं|

* एक सुप्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक ने मुख्य पृष्ठ पर छपे फोटो में घायलों को एक टेम्पो में डालते हुए
दिखाया है| मुझे लगता है यह फोटो उन्होंने नहीं छापना चाहिए था|

* यहाँ मै २ पूर्व आय.पी.एस. अधिकारियों  अरविंद  इनामदार और  वाय. पी. सिंह को  टी.वी.
पर उनके बयानों के लिए साधुवाद देना चाहूँगा| इन दोनों का आकलन और आतंकवाद को देखने का
उनका नजरिया  यह दिखाता है क़ी हमारे ऑफिसरों में सूझबूझ क़ी कोई कमी नहीं है| सिर्फ जरूरत
है पुलिस स्टैसनो क़ी नीलामी रोक कर सक्षम अधिकारियों को सही जगह नियुक्ति और उन्हें
संसाधन और आत्मविश्वास  देने क़ी, ताकि ऐसे कायराना हमलों को रोका जा सके|
                                                                                                               'नमन

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