पिछले कुछ महीनों में देश के कई राज्यों में नक्सलवादी गतिविधियों में आई बाढ़ से केंद्र और राज्य सरकारेंपरेशानहैं! पिछले कई दशकों से चले आ रहे नक्सली आतंकवाद ने पूरे प्रशासन को हिला कर रख दिया है ! झारखण्ड, आँध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उडीसा जैसे राज्यों में फैले हुए नक्सलवादी आतंकवाद ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों की नींद हराम कर दी है ! राजनेता भ्रमित हैं, कोई मिलिटरी एक्शन की बात करता है तो कोई पुलीस एक्शन की, कोई हवाई जहाजों के इस्तेमाल की बात करता है तो कोई इसके विरोध की ! सरकार करे कुछ भी करे मरेगा आम आदमी ही , फिर वो चाहे पुलीस का सिपाही हो, सैनिक हो, रिजर्व पुलिस का जवान हो, साधारण नागरिक हो या प्रशासन की अकर्मण्यता या कुशासन से नक्सलवादी बना साधारण आदिवासी ! कोई भी व्यक्ति अगर अपनी रोटी, कपड़ा , घर जैसी आवश्यकताएं कमा कर पूरी कर सकता हो और उसकी बहन , बेटी, बीबी सुरक्षित है तो वो नक्सलवादी नहीं बनेगा! इस विषय पर चर्चा मै फिर अपने इसी ब्लॉग के माध्यम से जुड़ कर करूँगा ! इस विषय पर लिखी गयी मेरी कविता के कुछ अंश....
नस्लवाद से नक्सलवादी बेहतर हैं
जातिवाद से ये बीमारी बेहतर है!
जो पीते है खून गरीबों का उनसे
नयी क्रांति की ये चिंगारी बेहतर है!
भूखे पेट से और आँखों के आंसू से
खून से सींची ये फुलवारी बेहतर है!
तुमने छीनी है रोजी रोटी जिनकी
उनके हाथ में छुरी कटारी बेहतर है!
अपनो का हक़ जो भी दबाये बैठे हैं
उनसे छीनने की तैयारी बेहतर है!
मां बहनों की इज्जत जिसने लूटी है
उन पर थोडा गोलाबारी बेहतर है!
इसका मतलब यह भी नहीं है की मै नक्सलवाद की वकालत कर रहा हूँ, परन्तु मै चाहूँगा की विकास की गंगा उन क्षेत्रों तक पहुंचा कर नक्सलवादियों को आम आदमी से अलग थलग कर दिया जाये! साथ ही जो व्यापारी खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए नक्सलवादियों को धन उपलब्ध करा रहे हैं उनपर तुरंत सख्त से सख्त क़ानूनी कार्यवाही की जाये! अगर हम इन नक्सलवादियों को धन और जन से अलग कर दे तो इनकी रीढ़ टूट जाएगी! साथ ही जो भ्रष्ट अधिकारी इन गरीब आदिवासियों का शोषण बरसों से करते आ रहे है उन्हें तत्काल निलंबित कर उनपर मुक़दमा चलाया जाये ताकि नए बच्चे नक्सलवादी न बने!
कुछ पक्तियों के साथ आज की बात ख़त्म करता हूँ...
नस्लवाद से नक्सलवादी बेहतर हैं
जातिवाद से ये बीमारी बेहतर है!
जो पीते है खून गरीबों का उनसे
नयी क्रांति की ये चिंगारी बेहतर है!
भूखे पेट से और आँखों के आंसू से
खून से सींची ये फुलवारी बेहतर है!
तुमने छीनी है रोजी रोटी जिनकी
उनके हाथ में छुरी कटारी बेहतर है!
अपनो का हक़ जो भी दबाये बैठे हैं
उनसे छीनने की तैयारी बेहतर है!
मां बहनों की इज्जत जिसने लूटी है
उन पर थोडा गोलाबारी बेहतर है!
इसका मतलब यह भी नहीं है की मै नक्सलवाद की वकालत कर रहा हूँ, परन्तु मै चाहूँगा की विकास की गंगा उन क्षेत्रों तक पहुंचा कर नक्सलवादियों को आम आदमी से अलग थलग कर दिया जाये! साथ ही जो व्यापारी खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए नक्सलवादियों को धन उपलब्ध करा रहे हैं उनपर तुरंत सख्त से सख्त क़ानूनी कार्यवाही की जाये! अगर हम इन नक्सलवादियों को धन और जन से अलग कर दे तो इनकी रीढ़ टूट जाएगी! साथ ही जो भ्रष्ट अधिकारी इन गरीब आदिवासियों का शोषण बरसों से करते आ रहे है उन्हें तत्काल निलंबित कर उनपर मुक़दमा चलाया जाये ताकि नए बच्चे नक्सलवादी न बने!
कुछ पक्तियों के साथ आज की बात ख़त्म करता हूँ...
अज्ञान , अपराधबोध और अशिक्छा की / उर्वरा भूमि पर / बोई जाती है /
नफ़रत और घृणा की फसल / सींचा जाता है उन्हें / इंसान के खून से / और उगती है
आतंकवाद की फसल!
भूख, बेकारी और बेबसी / क्या नहीं करवाते/
मांएं पैदा करती हैं / ए. के. ४७ / बंजर जमीं में उगते हैं/ कारतूस और गोला बारूद/ काटी जाती है/
लाशों की फसल/ हम इसे कहते हैं नक्सलवाद/ और वे इसे कहते हैं / क्रांति..............
नमन
Naksalwad ... Hi jawab hai SARKARI Bhrashtachar ka.
ReplyDeleteSO many BLAST inthe city country but no one gets haged why we need to think on this issues. I think People should stop paying TAX than only this.... will understand
ReplyDeletedes ka saara dhan aur jamin ek prtishat logo ke paas hai,inke khilaf sanghrsh me ham naksalvad ke saath hai
ReplyDelete