Wednesday, 21 July 2021

गली से गंगा तक

 गली से गंगा तक 

गली से गंगा तक
मुर्दों का शोर है
ज़िंदा लाशों के मुँह से
ज़ुबान गायब है
नोचा जा रहा है
स्त्रियों का शरीर
किसान भूखा
नौजवान बेकार
और प्रजातंत्र लहूलुहान है
हमने देखा
चौकीदार के हाथों में
है राजदंड
भीड़ में से कोई चिल्लाया
चौकीदार चोर है....
नमन

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उनसे कह दो वो हमें ऐसे रुलाया न करें
वक़्त बेवक्त मेरे ख्वाब में आया न करें.
उनकी चाहत हमारी जान ले के जाएगी
जान उनकी है वो ले-लें यूँ सताया न करें.
हुश्न वाले किसी के हो नहीं सकते सच है
हुश्न अपना वो महफ़िलों में नुमाया न करे.
वो मेरे साथ न आयें तो ये हक है उनको
गैरों में बैठ के वो हमको जलाया न करें.
उन्हें खुशियां मुबारक और ‘नमन’ को आंसू
बेवफा से कहो मेरे गम पर मुस्कराया न करें.
'नमन’

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तुम्हें रोकने की
मेरी तमाम
कोशिशों के बावजूद
तुमने मेरे हृदय में
प्रवेश पा ही लिया
तोड़ दिए
सब्र के सब बाँध
कर दिया मुझे असहाय
अब मेरी चुप्पियों में
तुम बोलती हो
नचाती हो मुझे
अपनी अंगुलियों पर
मुस्कराती हो मेरी
छटपटाहट पर
तड़पाती हो मुझे
पर क़बूल नहीं करती
कि तुम्हें भी मुझसे प्यार है..
नमन

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