Friday 30 July 2021

धर्मान्धता

धार्मिक होने और धर्मांध होने में ज़मीन आसमान का अंतर है. धार्मिक होना, अपने धर्म के अनुसार चलना अच्छी बात है परन्तु सभ्य समाज में धार्मिक कट्टरता का विरोध होना चाहिए. शास्त्रों में कहा गया है; "धारयेति इति धर्मः".

आज खुद को धर्म रक्षक कहने वाले सड़क से संसद तक झूठ की दूकान चला रहे हैं. असत्य, हिंसा और व्यभिचार को सत्य और त्याग की भगवा गठरी में लपेट कर बेचा जा रहा है.

बाबा तुलसीदास कह गए हैं; "धरम न दूसर सत्य समाना" यानि सत्य ही धर्म है, परन्तु उनकी अपनी नगरी काशी में झूठ का बाज़ार गर्म है.

शोर गुल को धर्म का अंग बना दिया गया है. अजान जिसका मुख्य ध्येय लोगों को याद कराना है की नमाज़ का समय हो गया है, पूजा का , अरदास का समय हो गया है को लाऊडस्पाकर से अनाउंस करना जरूरी नहीं है. शुरुआती दौर में मीनार पर चढ़कर मौलवी साहब अज़ान करते थे ताकि लोग समय पर नमाज़ अदा कर लें. उस ज़माने में लाउडस्पीकर नहीं होते थे अत: यदि कोई यह कहता है की लाउडस्पीकर पर अज़ान करना ज़रूरी है तो वह ग़लत कहता है । इसी तरह पूजा के पंडालों में लाऊडस्पीकर लगाकर आरती और पूजा करना गलत बात है.

मुस्लिम शासन में कबीर में इतनी हिम्मत थी कि वे कह सके की ;
कांकर पाथर जोड़ के मस्जिद लई बनाय
ता चढि मुल्ला बाग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।
मुसलमानों के शासन में इस्लाम की कुरीतियों के बारे में कबीर अपनी बात उन्मुक्तता से कर पाए और किसी मुस्लिम शासक ने उन्हें रोकने या उनको दंडित करने का प्रयास नहीं किया।
उस समय ज्ञान की नगरी काशी में रहकर कबीर हिंदू और मुस्लिम कुरीतियों पर लगातार प्रहार करते रहे और हमारा समाज इतना सहिष्णु था की किसी हिन्दू या मुस्लिम धर्मगुरु, संगठन या शासक ने कबीर को नुक़सान पहुँचाने का प्रयास नहीं किया।
आज लगभग 500 साल बाद हम इंसान के रूप में इतने छोटे हो गए हैं कि अपनी कमियां और अपनी कमज़ोरियों पर चर्चा कर नहीं कर पाते।
धर्म एक नितांत व्यक्तिगत मामला है और मेरा मानना है कि किसी भी हिंदू , मुस्लिम , ईसाई , सिख धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं होना चाहिए। संगठित धर्म हमेशा से अधर्म और विनाश का कारण बनता रहा है. यूरोप में ११वीं और १२वीं सदी में लगभग २०० वर्ष तक धर्म के नाम पर लाखों लोगो की हत्या हुई.
पकिस्तान, अफगानिस्तान से लेकर अरब देशों तक में आज भी धार्मिक कट्टरता अत के चलते मुसलमान ही मुसलमान की जान का दुश्मन बना हुआ है. पिछले कुछ दशकों में भारत के हिन्दुओं में कट्टरता बढ़ी है जो देश और समाज के लिए घातक है और जिसका विरोध होना चाहिए.
न तो मुसलमानों ने सड़क पर नमाज़ पढ़नी चाहिए, न हिंदुओं ने सड़क पर दुर्गापूजा गणपति उत्सव और विजय दशमी के पंडाल लगाने चाहिए। सडकों पर धार्मिक जुलूसों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए.

नमन

No comments:

Post a Comment