Monday 22 February 2021

शहर ऐसा भिखारी है

 

कश्ती जब भी जिद पे आएगी
हर समंदर को लांघ जाएगी।
तुम शमा को कम नहीं आंको
रात भर रास्ता दिखाएगी।
मेरी आँखों में बस गई है वो
नींद अब कैसे मुझे आएगी।
दिल पे मेरे उसी का क़ब्ज़ा है
उम्र भर वो मुझे रुलाएगी।
वो मेरी मित्र है मगर ए ‘नमन’
उसका वादा है वो सताएगी।
नमन

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शहर ऐसा भिखारी है जहाँ दाना न पानी है
न जाने क्यों जवानी आज शहरों की दीवानी है।
मोहब्बत गाँव में ज़्यादा शराफ़त गाँव में ज़्यादा
जो नफ़रत का शहर है वो हमारी राजधानी है।
ये नदियाँ प्रेम धुन गायें बहारें ख़ुशबुयें लायें
हमारे गाँव की शाम और सहर बेहद सुहानी है।
कभी गेहूं की हरियाली कभी धानों में है बाली
गाँव में हर मौसम की अलग अपनी कहानी है।
दशहरा रामलीला है होली का मौसम रंगीला है
यहाँ पत्थर नहीं कोई हर एक दिल में रवानी है।
नमन
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