-आपदा से अवसर तक-
वर्ष 2020 विश्व के इतिहास में कोरोना महामारी के संकट के लिए जाना जाएगा। इस महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है।
विश्व का हर देश अपने अपने अनुभव और संसाधनों से इस महामारी का सामना कर रहा है।
जब 21वीं सदी का इतिहास लिखा जाएगा तब इतिहासकार अवश्य ही इस बात का आकलन करेंगे कि किस देश ने किस तरह और कितनी क्षमता से इस महामारी का सामना किया? अलग-अलग देशों और शासकों के हिस्से में आलोचना और प्रशंसा दोनों आएंगे।
हर देश की अपनी अलग-अलग आर्थिक, भौगोलिक और राजनैतिक परिस्थितियां है। अपनी क्षमताओं और कमजोरियों को ध्यान में रखकर हर देश में इस महामारी से लड़ने में लगा हुआ है।
हर देश की अपनी अलग-अलग आर्थिक, भौगोलिक और राजनैतिक परिस्थितियां है। अपनी क्षमताओं और कमजोरियों को ध्यान में रखकर हर देश में इस महामारी से लड़ने में लगा हुआ है।
अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया आदि महाद्वीपों के देशों की परिस्थितियों और संसाधनों से बिलकुल अलग भारत की परिस्थितियां और संसाधन हैं।
मार्च में हुए लॉकडाउन से भारत की अर्थव्यवस्था पंगु हो गयी है।सरकार ने जो निर्णय लिए वे क्यों लिए, कैसे लिए, क्या किया या नहीं किया इसकी विवेचना करने का समय निकल गया है।
अब समय आ गया है कि सरकार यह सोचे कि इस ढहती हुई अर्थव्यवस्था को किस तरह संभाला जाए? GDP शून्य से नीचे जाने की संभावना है। न जनता के हाथ में पैसा है न उद्योगों के पास। औद्योगिक उत्पादन घट जाने के कारण सरकार के पास टैक्स के रूप में आने वाला पैसा कितना प्रतिशत कम होगा यह अर्थशास्त्री ही बता सकेंगे।
सरकार चलाने के लिए जो व्यवस्थापकीय ख़र्च है वह कम नहीं किया जा सकता। इसके अलावा सरकार द्वारा विकास के कार्यों को दिए गए ऋण का भुगतान भी सरकार को करना पड़ेगा। महामारी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहा खर्च कई गुना बढ़ गया है।
चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों पर हम भरोसा नहीं कर सकते और इन परिस्थितियों में रक्षा ख़र्च को कम नहीं किया जा सकता।
इन विषम परिस्थितियों से देश को निकालकर उन्हें प्रगति पथ पर ले जाना एक दुरूह कार्य है पर यह असंभव नहीं है।
यह समय आपदा को अवसर में बदलने का है।
इन विषम परिस्थितियों में भारत को नए अवसर खोजने होंगे। हमें अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाना होगा।
आधारभूत सुविधाओं के मामले में भारत अभी भी विकसित विश्व से बहुत पीछे है।
अगर हमें अपनी अर्थव्यवस्था को बचाना है तो यही समय है कि भारत अगले 20 बरसों में जितना निवेश आधारभूत सुविधाओं के निर्माण में करना चाहता था वह निवेश भारत अगले तीन वर्ष में कर दे।
हमारी जिद होनी चाहिए कि हम भारत को अगले तीन वर्ष में स्मार्ट भारत बना देंगे।
हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर की सड़कें, पुल, रेल, हवाई अड्डे आदि बनाने होंगे और आधारभूत सुविधाओं के मामले में देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देना होगा।
फिर इसके लिए चाहे हमें विश्व बैंक से ऋण लेना पड़े, अंतर्राष्टीय टेंडर निकाल कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निवेश का मौक़ा देना पड़े या अपने देश की बड़ी कंपनियों को आधारभूत सुविधाओं के निर्माण में झोंक देना पड़े, BOT बेसिस पर काम करवाना पड़े।
हमारी ज़िद होनी चाहिए की हम अगले तीन वर्ष में पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर की आधारभूत सुविधाओं का निर्माण कर लेंगे और उनमें लगा हुए ख़र्च की भरपाई धीरे-धीरे अगले 20 वर्षों में करते रहेंगे।
आधारभूत सुविधाओं के निर्माण में जो पैसा ख़र्च होगा उससे न केवल लोगों को पूरे देश में रोज़गार मिलेगा, सीमेंट, स्टील, वाहन, ट्रांसपोर्ट आदि उद्योगों को सीधे फ़ायदा पहुँचेगा, छोटे और मझोले उद्योगों की माँग बढ़ेगी बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था में मज़बूती आएगी और देश की अर्थव्यवस्था पुन: अपने पैर पर खड़ी हो जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर की आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता होने के कारण देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा और वह अतिरिक्त रोज़गार पैदा करेगा।
एक बार अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई तो हमारे आर्थिक संसाधन बढ़ेंगे और हम सारे ऋणों का भुगतान आराम से कर सकेंगे।
आधारभूत सुविधाओं में निवेश का जो अवसर भारत के पास मौजूद है वह अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के पास नहीं है और न तो चीन के पास है जहाँ पर आधारभूत सुविधाएँ पहले से ही मौजूद हैं।
अब यह भारत सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस अवसर का लाभ उठाएँ और आपदा को अवसर में बदल दे।
नमन
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