Sunday, 7 June 2020

मैंने
बंद कर दिए हैं
सारे दरवाज़े
सारी खिड़कियां
सारे झरोखे
मैंने
बंद कर दिया है
ह्वाट्स ऐप , एस एम एस
और इंस्टाग्राम
पर रोक नहीं पाया हूँ
उसकी यादों को
जो आ जाती हैं
मुझे सताने।
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न तख़्त चाहिए न हमें ताज चाहिए
सिर्फ पेट भरने को अनाज चाहिए।
सड़कों पर मर रहे हैं जो भूख प्यास से
रोटी उन्हें दिलाये वो आवाज़ चाहिए।
जो बहन- बेटियों की लाज लूट रहे हैं
उनको सबक सिखाए वो जाँबाज़ चाहिए
कब तक सहेगा देश का अवाम ये अन्याय
दुख दर्द सबका समझे ऐसा राज चाहिए।
नफ़रत की राजनीति मुबारक हो आपको
हम को तो मोहब्बत का साम्राज्य चाहिए।
चीन-पाकिस्तान सब तुमको मुबारक हो
इस देश के युवक को कामकाज चाहिए
फ़ुरसत नहीं है तुमको बस्तियां जलाने से
और हमें अमन- चैन का आगाज़ चाहिए।
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जिनके श्रम से ये शहर बने
जिनके श्रम से पुल और सड़क
जिनके श्रम से भारत महान
सड़कों पर रोयें बिलख बिलख।
जिनके श्रम से रेलें दौड़ी
रेलें उन पर ही चढ़ दौड़ी
जो सड़क बनाई थी उसने
उस पर ही उसकी लाश पड़ी।
जो भूख मिटाता है सबकी
वह आज भूख से तड़प रहा
तुग़लक़ दिल्ली में बैठा है
भारत गलियों में सिसक रहा।
भाषण से राशन मिले नहीं
प्रवचन से चलता नहीं देश
सिर्फ़ उसके भेष बदलने से
कैसे बदलेगा मेरा देश।
सत्ता का उसको अहंकार
वह खो बैठा अपना विवेक
रोटी को तड़प रही जनता
धनवान मगर खा रहे केक।
भगवान उसे सदबुद्धि दे
वह रहम करे मजलूमों पर
धनवानों के उस सेवक की
हो कृपादृष्टि मज़दूरों पर।
जुमलों से भरता नहीं पेट
है भरता पेट निवालों से
नहीं चलता चीन-अमेरिका से
भारत चले भारत वालों से।

आओ मिलकर प्रस्थान करें
ज़दूरों में नव प्राण भरे
दें काम करोड़ों हाथों को
हम भारत का उत्थान करे

उद्योगों और उद्यमियों से
आओ फिर से आह्वान करें
दें नई चेतना भारत को
नवभारत का निर्माण करें।
नमन

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