Wednesday, 8 April 2020

मज़हबी दुकान



न कब्र में होगी जगह न श्मसान में
गर आग मज़हबी लगी हिंदुस्तान में।
आगे बढ़ाओ हाथ चलो मिल के कुछ करें
मोहब्बत के फूल खिलाएं भारत महान में।
जो नफ़रतों की है बयार उसको रोक दो
मुँह मोड़ दो इनका किसी रेगिस्तान में।
नफ़रत के सौदागर तुम्हारी ख़ैर नहीं है
भारत नहीं बँटेगा हिन्दू मुसलमान में।
पहले हैं भारतीय फिर कुछ और होंगे हम
ताले लगा दो अब तो मज़हबी दुकान में।
  


----------


किसी के आसरे जीने से बेहतर है कि मर जाएँ
बात जब मुल्क की आए तो शोलों से गुज़र जाएँ।
हमारा सिर झुकाओ मत किसी भी ट्रंप के आगे
हम अपनी आबरू खोकर जाएँ तो किधर जाएँ।

यह जो कुर्सी पर बैठे हो हमारी मेहरबानी है
अगर हम सोच भी लें आप कुर्सी से उतर जाएँ।
हमें मत छेड़िए साहब हमें ललकारिए भी मत
कहीं ऐसा न हो कि आप तिनकों सा बिखर जाएँ।
अगर हम जाग उठे तो सुन लो ऐ दिल्ली वालों
जगह न पाओगे की भागकर कैसे किधर जाएँ।
नमन

No comments:

Post a Comment