Sunday, 19 January 2020

-:राष्ट्रवादी दोहे:-

राष्ट्रवाद के घाट पर भई नेतन की भीड़
बिरयानी खाकर करें रोटी की तकरीर।
राष्ट्रवाद के भय से चुप है सारा देश
ज़ो बोला उस पर हुआ राष्ट्रद्रोह का केस।
गलियों सड़कों पर लुटे अबलाओं की लाज
अंधे-बहरे कर रहे हैं दिल्ली पर राज़।
गौ माता का ज़ो करें मंचों से गुणगान
उनके बिस्तर मे मिले हमे विदेशी श्वान।
जुमले पर जुमले गढ़ें, खुद का करें बखान
उनके मुंह मे राम है दिल मे पाकिस्तान। 

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हाँ! यह सच है
मुस्कराती हैं तुम्हारी आँखें
सोचता हूँ
वे अगर न मुस्कराती
तब भी क्या
इतनी ही दिलकश होती
या फिर होती
मासूम हिरनी की
निगाहों जैसी चंचल 
या सागर सी गहरी 
अँधेरी रात सी सूनी 

न जाने क्यों
तुम्हारी मुस्कराती आँखों में
दिखाई पड़ती है मुझे
अपार करूणा
मुस्कुराते हुए
बड़ी पवित्र लगती हैं
तुम्हारी आँखें
साँवली सलोनी गुडिया सी तुम
और उतनी ही
सहज-सरल- निश्छल
तुम्हारी आंखें
मुझे विश्वास नहीं होता
कैसे इतनी प्रेमल हो सकती है
किसी मानिनी की नज़र।
नमन

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