Wednesday, 11 December 2019

राष्ट्रपिता विरुद्ध आतंकवादी!


अब देश में संघर्ष सीधे-सीधे गांधी विरुद्ध गोडसे (सावरकर) है।

 आज वे ताक़तें सत्ता में है जो देश की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ थे और १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध कर रहे थे। एक तरफ जहाँ अंग्रेजों की खिलाफत में देश की सारी प्रांतीय सरकारों ने इस्तीफ़ा दे दिया था, डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी और उनके सहयोगी बंगाल और सिंध में जिन्ना की मुस्लिम लीग सरकार में शामिल होकर सत्ता सुख भोग रहे थे।  

यह ज़मात तब भी पकिस्तान के प्रणेता मोहम्मद अली जिन्ना की Two Nation Theory का समर्थन कर रही थी जिसने देश का विभाजन कराया।  सावरकर हिन्दू महासभा के अहमदाबाद अधिवेसन में  मोहम्मद अली जिन्ना की बोली बोल रहे थे। उन्होंने कहा था की हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्रीयताएँ हैं। अतः स्वतंत्र हिन्दुस्तान में मुसलामानों को संपत्ति रखने और वोट देने का अधिकार नहीं होगा।

संघ परिवार द्वारा फैलाये गए इसी डर और भ्रम से अधिकाश मुसलमान अलग पाकिस्तान का समर्थन करने लगे थे। महात्मा गाँधी की और कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद १९४६ में बंगाल और पंजाब में दंगे शुरू हो गए और लाखों हिन्दू-मुसलमान मारे गए। इस भयंकर त्रासदी से घबराकर अँगरेज़ जो १९४८ में देश को स्वतंत्रता देने वाले थे, १९४७ में ही हमें आज़ादी दे कर भाग लिए। 

देश के विभाजन की इस त्रासदी के लिए संघ परिवार को देशद्रोही कहना उचित ही होता पर महात्मा गाँधी ने ऐसा नहीं किया। अगर महात्मा गाँधी ने गोडसे , सावरकर, गोलवलकर, डॉ मुखर्जी आदि को देश द्रोही कह भर दिया होता तो आज देश में इनका नामोनिशान नहीं होता। 

अंग्रेजों के खिलाफ एक पत्थर तक न फेंकने वाले, एक आन्दोलन तक न करने वाले इन कायर नपुंसकों ने ७८ वर्ष के बूढ़े  महात्मा गाँधी की हत्या का देशद्रोह किया और उनकी हत्या पर मिठाई बांटी।  सरदार पटेल ने महात्मा गाँधी की हत्या का ज़िम्मेदार ठहराते हुए आरएसएस के कार्यालय पर ताला जड़ दिया था , जिसे बाद में पंडित नेहरु ने सशर्त खोलने की अनुमति दी।  यहाँ भी इन्होने पंडित नेहरु की सदाशयता का फायदा उठाया।  

  द्वितीय विश्व युद्ध के समय यह ज़मात आज़ाद हिंद फ़ौज के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए भारतीय युवकों को ब्रिटिश फ़ौज में भर्ती करा रही  थी , जिससे वे बर्मा बॉर्डर पर जाकर आज़ाद हिन्द फौज के खिलाफ लड़ सकें।  आज़ाद हिन्द फौज और नेताजी सुबाषचन्द्र बोस से यह लोग इतनी घृणा करते थे की जब आज़ाद हिन्द फौज के सिपाही और अफसर पकड़ कर लाये गए और लाल किले में उनपर मुक़दमा चला तब संघ परिवार की तरफ से एक वकील तक उनकी सहायता के लिए खड़ा नहीं हुआ। 
पंडित जवाहरलाल नेहरु, तेजबहादुर सप्रू और उनके सहयोगियों ने आज़ाद हिन्द फौज का मुक़दमा लड़ा और एक भी सिपाही या अफसर को सज़ा नहीं होने दी।  

देश की स्वतंत्रता से यह इतनी घृणा करते थे की १९४७ में राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगीत दोनों का विरोध करने वाली आरएसएस ने स्वतंत्रता के बाद ५० वर्ष तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया।  ये लोग लगातार देश को ग़ुलाम बनाने वाले ब्रिटेन की चमचागिरी कर रहे थे। सावरकर बंधू देश के मात्र दो व्यक्ति हैं जिन्हें अंडमान जेल से अंग्रेजों ने न केवल रिहा किया बल्कि अंग्रेजों ने सावरकर को १९२५ से १९४७ तक जिला कलक्टर की तनख्वाह के बराबर तनख्वाह दी।  

आप सोच सकते है की एक तरफ जब अग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों के घरो की कुर्की कर रहे थे, उन्हें जेल भेज रहे थे , तब सावरकर ने ऐसा क्या किया की अंग्रेजो ने उन्हें जेल से भी छोड़ा और कलक्टर की तनख्वाह के बराबर तनख्वाह भी दी?
सावरकर को हिन्दू मुसलमानों में वैमनष्य फैलाकर स्वतंत्रता आन्दोलन को कमजोर करने के लिए ज़ेल से छोड़ा गया था और वे १९४७ तक अंग्रेजो की चाकरी करते रहे।  

ये लोग स्वतंत्रता के पहले भी अंग्रेजों के साथ और किसानो के ख़िलाफ़ थे आज भी किसानों के ख़िलाफ़ हैं। वे तब भी भारतीय उद्योगों के ख़िलाफ़ थे , वे आज भी छोटे मझोले भारतीय उद्योगों के ख़िलाफ़ है।

वे तब भी अपने देश वासियों के खिलाफ थे आज भी अपनों के खिलाफ हैं। 


'नमन'

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