Sunday, 10 November 2019

न्याय या फैसला ?


अयोध्या विवाद , न्याय  या फैसला ?

दिनांक ९ नवम्बर २०१९ का दिन भारतीय न्याय पालिका के इतिहास में दर्ज़ हो गया।  १८५५ से देश की विभिन्न अदालतों से होती हुई न्याय की मांग भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची थी। हम न्याय की देवी से न्याय की अपेक्षा कर रहे थे, परन्तु आया फैसला।

राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद केस जिस मोड़ पर पहुँच गया था, वहां सर्वोच्च न्यायलय से न्याय की अपेक्षा करना सूरज के पश्चिम में उगने की कल्पना करने जैसा था।  सूरज पश्चिम में नहीं उगा।  सर्वोच्च न्यायालय के पाँचों न्यायाधीशों ( सर्वश्री रंजन गगोई, अरविन्द बोबडे, डी वाय चंद्रचूड़ , अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर) के सामने पंचायती आदेश के अलावा दूसरा कोई आदेश देने का पर्याय ही नहीं बचा था। इन पाँचों विद्वान न्यायाधीशों का यह फैसला न्यायपालिका की इज़्ज़त बचाने की कसरत के रूप में देखा जाए या देश को अस्थिरता की आग में झोंकने से बचाने की कोशिश समझा जाये यह अपने-अपने दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा। 
मेरी समझ में :
यह राम की भी जीत है, रहमान की भी जीत
हिन्दू की जीत है यह मुसलमान की भी जीत।
कानून की भी जीत है संविधान की भी जीत
ये है हमारे प्यारे हिन्दुस्तान की भी जीत।

इतना तय है की आज़ादी के इतने वर्षों बाद देश की न्यायपालिका पहली बार सत्ता का दबाव महसूस कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने जो पंचायत की ( मैं इसे न्याय कहने से बचना चाहता हूँ ) जो फैसला किया वह किसी पक्षकार ने माँगा ही नहीं था।  इस विवाद में जो फैसला आया है वह किसी वादी या प्रतिवादी की मांग नहीं थी बल्कि देश और समाज की मांग थी।  वादी और प्रतिवादी दोनों पौने तीन एकड़ ज़मीन पर अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे थे।

परतु कानून की नज़र में सबसे बड़ा पक्षकार देश और समाज था, जो इस विवाद में पिस रहा था। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या अध्यादेश -९४ और नरसिम्हाराव सरकार द्वारा अधिगृहित लगभग ६७ एकड़ ज़मीन राम मंदिर के निर्माण के लिए सरकार को सौंप दी और तीन महीने में ट्रस्ट बनाने के आदेश सरकार को दिए ताकि मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया जा सके।  साथ ही मुस्लिम बांधवों को नमाज़ के लिए मस्जिद बनाने हेतु  अयोध्या में ही ५ एकड़ ज़मीन देने के आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिए। 

महामहिम न्यायाधीशों ने देश और समाज के साथ न्याय किया, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। इस फैसले के लिए सर्वोच्च न्यायालय का वंदन और अभिनन्दन।

नमन 

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