:अयोध्या अध्यादेश १९९४: (२९ अक्टूबर २०१९ की फेसबुक पर लिखी गई पोस्ट)
कमजोर, कायर और विवेकहीन शासक सदियों से अपनी कमजोरी और कायरता छिपाने एवं सत्ता पाने के लिए धर्म का उपयोग करते रहे हैं। अयोध्या का राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद उसी सत्ता लोलुप, मर्यादाहीन राजनीती का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
पिछले २७० वर्ष से हम यह तय नहीं कर पा रहे हैं की ५०० वर्ष पूर्व मुग़ल शासकों ने बाबरी मस्जिद राम मंदिर तोड़ कर बनायीं थी या किसी और जगह बनायी थी। परन्तु एक बात तय है की ऐतिहासिक तथ्यों पर खरा उतरे या न उतरे परन्तु आम भारतीय यह मानता आया है की राम अयोध्या में प्रकट हुए थे और जिस अयोध्या पर उन्होंने राज किया था वह यही आज की अयोध्या है।
मुग़ल काल में भरत खंड में हिन्दुओं की आबादी २० करोड़ से कम थी जो अंग्रेजों के राज़ में ३० करोड़ तक पहुँच गई। यह ऐतिहासिक तथ्य है की मुग़ल और अँगरेज़ दोनों मिल कर भी "सनातन धर्म" का खात्मा नहीं कर पाए। आज हमारे देश में लगभग १०० करोड़ सनातन धर्मी है जिन्हें सरकार और समाचार माध्यमों द्वारा पिछले ६ वर्षों से लगातार डराया जा रहा है की १०० करोड़ "सनातन धर्म" में आस्था रखने वाली यह आबादी खतरे में है और देश की १४% ( लगभग १७ करोड़) मुस्लिम आबादी उन्हें ख़त्म करने पर आमादा है।
हमारे देश के सनातन धर्म में आस्था रखने वाले हिन्दू और इस्लाम में आस्था रखने वाले मुसलमान पिछले १००० वर्ष के इतिहास में कभी इस तरह आमने -सामने नहीं खड़े थे जैसे पिछले कुछ वर्षों में खड़े हो गए हैं। ओवैसी -आज़म खान जैसों की राजनीती ने संघ परिवार की नफरत की राजनीती को मजबूत किया है। सच तो यह है देश के तथाकथित हिन्दू और मुस्लिम नेता एक दूसरे की राजनीति के पोषक हैं और देश की जड़ों में लगे हुये घुन की तरह हैं। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए इन्होने देश का अपरमित नुकसान किया है और खुद हज़ारों करोड़ की संपत्ति के मालिक बन बैठे हैं।
जिस इस्लाम धर्म में मृत हुए व्यक्ति की फोटो लगाकर उसपर माल्यार्पण करने से भी मनाही है, जिस इस्लाम धर्म में बुत पूजा की मनाही है, मस्जिद को नहीं पूजा जाता, वहां उसकी उपयोगिता सिर्फ उस मकान जैसी है जहाँ नमाज़ पढ़ी जाती है, जिस इस्लाम धर्म के वर्तमान शासकों ने अरब देशों में विकास के लिए सैकड़ों मस्जिदें तोड़ कर सड़क और अस्पताल बनाये और मस्जिद को वैकल्पिक जगह पर स्थानांतरित कर दिया गया , उसी इस्लाम धर्म के मानने वाले अपने हिन्दू भाइयों के लिए जब एक विवादित मस्जिद/मंदिर , उसे चाहे जो कह लें...... छोड़ने को तैयार नहीं होता तो वह शुद्ध रूप से राजनीति कर रहा होता है।
अब बात आती है संपत्ति की। एक बार यह मान भी लें की विवादित संपत्ति सुन्नी वक्फ बोर्ड की है तो सुन्नी वक्फ बोर्ड उस संपत्ति के बदले उससे दुगुनी कीमत की दूसरी संपत्ति सरकार से मांग ले और अपने हिन्दू भाइयों की आस्था के लिए बिना शर्त अपना मुक़दमा वापस लेकर एक मिसाल कायम करे। परन्तु वे भी राजनीती कर रहे हैं। जिस स्थान पर पिछले ७० वर्ष से जादा समय से किसी मुसलमान ने नमाज़ नहीं पढ़ी हो उस जगह के लिए हमने देश की १२५ करोड़ जनता को जिस तरह ब्लैक मेल किया है वह धर्म नहीं, बल्कि राजनीती कर रहा है।
१९८६ में राजिव गाँधी के प्रधानमंत्री काल में अदालत के आदेश द्वारा रामलला पूजा के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए गए थे और २४ घंटे राम लला का दर्शन और आरती शुरू हो गई। जहाँ राम की मूर्ति स्थापित हो वह स्थान सिर्फ और सिर्फ राम मंदिर ही हो सकता है , मस्जिद तो कदापि नहीं। परन्तु देश की विघटनकारी ताक़तों को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने विवादित ढांचे को ध्वस्त करके देश में हिन्दू -मुस्लिम वैमनस्य को बढाने के लिए एक षड्यंत्र रचा।
६ दिसंबर १९९२ को विवादित ढांचा गिराने वाले लोग देश के दुश्मन थे, उन पर देशद्रोह का मुक़दमा चलना चाहिए था न की ढांचा गिराने का। वह हमारे देश के खिलाफ रची गई एक बहुत बड़ी साजिश थी जिसका फल हम आज भी भोग रहे हैं।
इस आग में घी डालने का काम जिन हिन्दू और मुसलमान नेताओं ने किया है उन्हें चिन्हित करके उनपर देश द्रोह का मुक़दमा चलाना चाहिए या उन्हें सीधे -सीधे देश से निष्कासित कर देना चाहिए।
हमारा देश वह पुण्य भूमि है संतों और सूफियों का देश है जहाँ रहीम और रसखान हुए, जहाँ दाराशिकोह वेदों का अध्ययन और अनुवाद करता है, औरंगजेब जैसे कट्टर मुसलमान शासक द्वारा मंदिरों के निर्माण का साक्ष उपलब्ध हैं, छत्रपति शिवाजी औरंगजेब से लड़ते हैं पर उस लडाई में उनके अंगरक्षक मुसलमान हैं, महाराणा प्रताप जब अकबर के खिलाफ हल्दी घाटी की लडाई लड़ते हैं तब जहाँ एक तरफ अकबर की फौज के सेनापति राजपूत हैं और महाराणा प्रताप के सगे भाई स्वयं अकबर की तरफ से लड़ रहे होते हैं वही महाराणा की फौज के सिपहसालार हाकिम खान सूर होते हैं, जो १०,००० अफगानी योद्धाओं की फौज के साथ अकबर से मुकाबला करते हैं।
ऐतिहासिक बातें मैं इसलिए लिख रहा हूँ ताकि आप को याद दिलाया जाये की भरत खंड में भले लड़ाइयाँ दो राजाओं -दो शासको के बीच हुई पर दो धर्मों के बीच कभी नहीं हुई। बाबर को महाराणा प्रताप के दादा वीर राणा सांगा ने इब्रिहीम लोधी के खिलाफ लड़ने के लिए भारत बुलाया था, वह स्वयं भारत नहीं आया।
विवादित ढाँचे को गिराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने एक अध्यादेश लाकर विवादित ज़मीन के लगी हुयी अतिरिक्त लगभग ६३ एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण राम मंदिर बनाने के लिए किया। तत्कालीन गृहमंत्री शंकरराव चव्हाण द्वारा यह अध्यादेश प्रस्ताव लोकसभा में रखकर उसे पारित कराया गया।
यहाँ यह बात याद रखने योग्य है की बीजेपी ने राम मंदिर बनाने के इस अध्यादेश का १९९३-९४ में लगातार विरोध किया था और राम मंदिर निर्माण में बाधा डाली थी। अन्यथा हो सकता था की उसी समय राम मंदिर का निर्माण हो गया होता।
उसी समय सुप्रीम कोर्ट के ५ जजों की बेंच ने सुनवाई करते हुए सरकार को यह आदेश दिया की जब तक हाई कोर्ट द्वारा पौने तीन एकड़ विवादित ज़मीन के मालिकाना हक का फैसला नहीं हो जाता , विवादित स्थल पर कोई निर्माण नहीं किया जाए। इस आदेश की वजह से राम मंदिर का निर्माण अनिश्चित काल के लिए रुक गया और तथाकथित हिन्दू एवं मुसलमान नेताओं को अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने का अवसर मिला।
संघ परिवार और उनके मुस्लिम मित्रों द्वारा मुसलामानों को यह बताया गया की कांग्रेस मुसलमानों के खिलाफ है और जबरन अध्यादेश द्वारा मंदिर बनाना चाहती है। साथ-साथ हिन्दुओं को यह बात समझाई गई की कांग्रेस हिन्दुओं के खिलाफ है और नहीं चाहती की मंदिर बने। कुछ हिन्दू तो यह मानने लगे हैं की बाबर ने कांग्रेस के कहने पर ५०० वर्ष पूर्व मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनायी थी।
जब हाई कोर्ट का फैसला आया की विवादित ज़मीन को तीनों पक्षों में तिहाई तिहाई बाँट दिया जाए तब उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई , जिसका फैसला प्रतीक्षित है।
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है की सुप्रीम कोर्ट में मुकादमाँ पौने तीन एकड़ ज़मीन के मालिकाना हक का है, राम मंदिर बनाने या न बनाने का नहीं। परन्तु आम जनता में यह भ्रम फैलाया गया है जैसे की मुकदमा राम मंदिर बनाने को लेकर है।
अब कुछ मूर्ख अध्यादेश लाकर मंदिर बनाने की बात कर रहे हैं। वे भूल जाते हैं की कांग्रेस सरकार द्वारा राम मंदिर बनाने के लिए १९९४ में ही अयोध्या अध्यादेश लाया गया था। वह अध्यादेश दोनों सदनों में पारित है अतः राम मंदिर के लिए नया अध्यादेश लाने की जरुरत नहीं है। उस अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने जो स्थगन आदेश दिया है वह अगर सुप्रीम कोर्ट हटा ले तो राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
संघ परिवार की आस्था सत्ता में है , राम में नहीं। वरना कब का राम मंदिर बन गया होता। कोई मुझे बताये की अपने ६ वर्ष के शासनकाल में बाजपेयी जी ने और ५.५ वर्ष के शासन काल में मोदी जी ने राम मंदिर निर्माण के लिए क्या सार्थक कदम उठाये? राम मंदिर का ताला कांग्रेस शासन में खुला, राम मंदिर बनाने के लिए ६० एकड़ ज़मीन कांग्रेस ने अधिग्रहित की, राम मंदिर बनाने के लये अयोध्या अध्यादेश कांग्रेस सरकार लायी, राम मंदिर के निर्माण के लिए चबूतरे का निर्माण कार्य कांग्रेस शासन में शुरू हुआ। बीजेपी तो अध्यादेश से लेकर चबूतरे तक के निर्माण के खिलाफ थी।
राम मंदिर निर्माण के मामले में जो भी प्रगति हुयी थी वह कांग्रेस शासन में हुयी थी। इसीलिए १९९२ से आज तक मुसलमान कांग्रेस को वोट देने से कतराता है। वह सपा, ओवैसी, ममता, लालू, नितीश, किसी को भी वोट दे देगा पर कांग्रेस को वोट नहीं देता , क्यों की बड़ी चालाकी से संघ परस्त मुस्लिम नेताओं ने मुसलमान वोटरों को समझा दिया है की कांग्रेस इस्लाम के खिलाफ है। जब की सत्य यह है की राम मंदिर के निर्माण से देश में अमन और चैन कायम होता और संघ परिवार द्वारा मुस्लिम विरोध के लिए कोई जगह नहीं बचती। सच यही है की राम मंदिर निर्माण मुसलमानों के हित में है उनके हितों के खिलाफ नहीं।
'नमन'
आज दिनांक ९ नवम्बर २०१९ ....
आज अपने ऐतहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने पौने तीन एकड़ विवादित ज़मीन के साथ साथ पूरी ६३ एकड़ ज़मीन जो नरसिम्हाराव सरकार ने अधिगृहित की थी , राम मंदिर बनाने के लिए केंद्र सरकार को सौंप दी और तीन महीने में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाने की आज्ञा दी।
साथ ही सरकार को निर्देश दिया की वह अयोध्या में ही ५ एकड़ ज़मीन मस्जिद बनाने के लिए उपलब्ध कराये।
आज का यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया न्याय न होकर एक समझौता था , जिसमे हिन्दू और मुसलमान दोनों को खुश करने की मंशा है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश महामहिंम रंजन गगोई और उनके सहयोगियों अरविन्द बोबडे, डी वाय चंद्रचूड़ , अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर ने देश की जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए उपरोक्त निर्णय दिया।
आज शाम को प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा की; "लक्ष्य और भी हैं - मंज़िले और भी हैं।" प्रश्न यह उठता है की क्या उनका इशारा मथुरा और काशी की तरफ है? अगर ऐसा है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
फिलहाल आज की शाम - जय सिया राम !
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