जंग जायज़ है अगर है वो मुल्क की खातिर
जान अगर चली भी जाये तो क्या गम है।
मैं सिर उठा के अगर आज तलक जिंदा हूँ
इसका कारण है की मेरी ज़रूरत कम है।
वो और हैं जिन्हें चाहिए दौलत- शोहरत
मैं मोहब्बत हूँ मेरा सब कुछ मेरा जानम है।
ये मेरा देश है राधा का और कान्हा का
यहाँ फहरा रहा मोहब्बत का परचम है।
बस्तियां जिसने जलाई हैं सियासत के लिए
आने वाला कल उनके घरों में भी मातम है।
नमन
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विषैली नागिने फुफकारती हैं टीवी पर
और अखबारों में विषधर तमाम बैठे हैं।
अगर हो सके तो इनसे दूर ही रहना
ये मेरे देश को करने गुलाम बैठे हैं।
हवा में फ़ैल चुका है नफरतों का ज़हर
मंदिर बनाने साधू और इमाम बैठे हैं।
ये न हिन्दू हैं, न मुस्लिम हैं, न ईसाई हैं
ये लेने तुमसे अपना इंतकाम बैठे हैं।
दिल्ली की गलियों में कोठियां नहीं कोठे हैं
देश को बेचने वहां नेता तमाम बैठे हैं।
नमन
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