Friday, 16 August 2019

कायर हूँ मैं



नफ़रत की सियासत का ए सारा तमाशा है
हर शख़्स परेशान है हर दिल में हताशा है।


दुश्मन से लड़ सके वो उसमें नहीं है जिगरा 
वह शख़्स मगर अपनों के खून का प्यासा है।


मंदिर और मस्जिदों में लाखों का चढ़ावा है
सीढ़ी पर बैठे भक्तों के हाथ में कासा है।


वो मुल्क की खिदमत में अंगुली नहीं हिलाता
हर रोज़ मगर देता वह झूठा दिलासा है।



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-कायर हूँ मैं-
कई दशक पहले
जब मेरी आँखों के सामने
एक बाहुबली ने 
गर्म लोहे की छड़ों से दागा था
एक गरीब ब्राह्मण लडके को
जो मेरा मित्र भी था
विरोध नहीं कर पाया था मैं
आज भी वह ज़ख्म
हरा है मेरे सीने में


उन दलित औरतों के
आंसुओं को
कैसे भुला सकता हूँ मैं
जिनकी बेटियों के साथ
की जाती थी जबरदस्ती
बार -बार लगातार
और असहाय मैं
नहीं कर सका था उसका विरोध .
उम्र बढ़ रही थी मेरी
और बढ़ रही थी
मेरी कायरता और नपुंसकता

देखा है मैंने
ईंट के भट्ठे के मालिक को
जो सुला लेता था
भट्ठे पर काम करने वाली
लड़कियों को
अपने बिस्तर में
मैं देखता रह गया
जब दरोगा ने
दोनों भाइयों को
डकैती के झूठे इलज़ाम में
बंद कर दिया था थाने में
क्योंकि वह नोचना चाहता था
उनकी बहन का जवान शरीर

तब भी कुछ नहीं बोल पाया मैं
जब मेरी जायदाद पर
कब्ज़ा कर लिया था
मेरे ही अपनों ने
धन और राजनैतिक पहुँच के बल पर
गिरफ्तार कर लिया गया था
मेरा पढ़ा लिखा पिता
झूठे आरोप में

लगातार
हारता और हारता चला गया मै....
अब सोचता हूँ की काश!
पहले दिन ही प्रतिरोध करता
और शायद क़त्ल कर दिया जाता
उस प्रतिरोध के लिए
तो ठीक ही होता....
'नमन'

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