Sunday 30 June 2019

                                                                          
                                                                      कांग्रेस 

28 दिसम्बर 1885 , बॉम्बे का गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय साक्षी बना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नामक उस संगठन की स्थापना का जिसने आगे चल कर गुलाम भारत की दशा और दिशा बदल दी । 

दिनशा वाचा , ए ओ हयूम और दादा भाई नौरोजी के आवाहन पर देश भर से आए 72 प्रतिनिधियों ने व्योमेशचन्द्र मुखर्जी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अध्यक्ष चुना। 

1885 से 1910 के दशक तक यह संगठन अधिकतर समय भारत पर शासन कर रहे ब्रिटिश शासको से भारतीय नागरिकों के हितों की बात करता रहा था । इस बीच गोपालकृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक और विपिंचन्द्र पाल जैसे नेताओं ने कांग्रेस की बागडोर संभाली । 

बाल गंगाधर तिलक के उद्घोष " स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं वह लेकर रहूँगा"  और 1915 मे महात्मा गांधी के भारत आगमन ने कांग्रेस की दिशा और दशा बदली ।  जलियावाला बाग के नरसंघार के बाद अंग्रेजों के खिलाफ जो गुस्सा देश की जनता मे उबला उससे पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने और ज़ोर पकड़ा ।  कांग्रेस ने लाहौर अधिवेसन मे रावी नदी के तट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता मे 31 दिसंबर 1929 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित किया और इसके ठीक 26 दिन बाद 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कर दी । 

ऐसे वक़्त मे भी आरएसएस , हिन्दू महासभा के कुछ घटकों , डॉ श्यामप्रसाद मुखर्जी और सावरकर जैसे नेताओं के द्वारा "भारत छोड़ो आंदोलन" का विरोध जारी था ।  आज़ाद हिन्द फौज के खिलाफ बर्मा बार्डर पर लड़ने के लिए डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी और आरएसएस द्वारा पूरे देश मे कैंप लगाकर भारतीय युवकों की ब्रिटिश सेना मे भर्ती करवाने के बावजूद देश के आंदोलनकरियों का जुनून बढ़ता गया और देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। 

संविधान सभा के अधिकांश सदस्य(डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी और डॉ बाबा साहब अंबेडकर के अलावा)  कांग्रेस के सदस्य थे। कांग्रेस के अधिकांश सदस्य साम्यवाद की कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित भी थे और सोवियत रूस और चीन की तर्ज़ पर भारत मे एक पार्टी वाला संविधान बना सकते थे। परंतु यह पंडित नेहरू ही थे जिन्होने भारत मे बहुदलीय प्रजातन्त्र  की स्थापना के लिए संविधान सभा के सदस्यों को लगातार प्रेरित किया और उन्हे इसमे डॉ बाबा साहब अंबेडकर जैसे विद्वानो का सहयोग मिला। 

1948 मे महात्मा गांधी की कायरतापूर्ण हत्या और 1950 मे सरदार पटेल की मृत्यु से पंडित नेहरू अकेले पड़ गए थे फिर भी स्वतंत्र भारत के नव निर्माण मे उन्होने और उनके कांग्रेस के सहयोगियों ने रात दिन एक कर दिया । 

महात्मा गांधी की इच्छा के अनुसार पंडित नेहरू ने स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस से अलग हट कर स्वतन्त्रता के बाद की चुनावी राजनीति मे भाग लेने के लिए खुद को तैयार कर रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नया संविधान बनवाया । 
स्वतन्त्रता के बाद की कांग्रेस और स्वतन्त्रता के पहले की कांग्रेस के ध्येय , नियम , आकांक्षाएँ और कार्यप्रणाली एकदम अलग हैं । 

स्वतन्त्रता के बाद देश की जनता ने अब तक कांग्रेस के 6 और विपक्ष के 8 प्रधानमंत्रीयों को चुना है और उन्हे देश चलाने का मौका दिया। 

स्वतन्त्रता के बाद कांग्रेस ने 550 रियासतों को जोड़ कर देश बनाया, कश्मीर को जोड़ा, 1955 मे फ्रांस से पॉन्डिचेरी को देश मे जोड़ा, 1961 मे पुर्तगाल से छीन कर गोवा और दमन दीव को देश मे जोड़ा, 1974 मे सिक्किम को देश मे जोड़ा और देश की सीमाओं को आज का स्वरूप दिया । 

आज संघ परिवार हमारे उन पुरखों पर मिथ्या दोषारोपण करके उनका चरित्र हनन करने मे दिन रात एक कर रहा है  जिन्होने अपने त्याग और बलिदान से न केवल देश को स्वतंत्र कराया बल्कि आज के आधुनिक भारत का निर्माण किया । 
संघ परिवार ने देश को बताना चाहिए की 1925 मे आरएसएस की स्थापना के बाद से 94 वर्षों मे आज तक संघ परिवार ने और संघ परिवार द्वारा समर्थित दल के प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने देश के लिए क्या किया ?
और नहीं किया तो क्यों नहीं किया?

संघ परिवार से हमारी विनती है की हमारे सारे महानायकों को कलंकित करने का जो घृणित कार्य लगातार कर रहा है उसे वह रोके और देश के उत्थान मे अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करे ।
नमन  

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