दिल में ज्वाला आँखों में अंगारे होने चाहिए
जय जय वीर जवानों के जयकारे होने चाहिए.
कश्मीर से केरल तक ये भारतवर्ष हमारा है
इसकी खातिर मर मिटने के नारे होने चाहिए।
पुलवामा में पकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा CRPF की टुकड़ी पर हुआ आतंकी हमला देश के आत्मसम्मान पर हुआ हमला है। इस हफ्ते लगभग ५० जवानों और अफसरों की शहादत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। पूरे देश में पकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है। दुखद यह भी है की बीजेपी के कुछ नेता जनता के इस गुस्से को पकिस्तान की तरफ से मोड़ कर कश्मीरी मुसलमानों की तरफ करने की कोशिश में लगे हैं, ताकि चुनाव में भुनाया जा सके।
पुलवामा की आतंकी घटना के तुरंत बाद जम्मू में जबरन न केवल बंद कराया गया बल्कि एक धर्म विशेष के व्यापारिक प्रतिष्ठानों और गाड़ियों को जलाया और तोडा गया। देश के कई भागों से कश्मीरी छात्रों के भागने की खबर आई है, कहीं -कहीं कश्मीरी मूल के लोगों की दुकाने तोड़ने के भी समाचार मिले हैं। परन्तु देश की जनता इनके बहकावे में नहीं आई है और कुछ एक घटनाओं को छोड़ कर पूरे देश में शान्ति है।
जम्मू कश्मीर की जनता मूलतः शांति और सद्भाव में विश्वास में रखने वाली जनता है।
यहाँ की सूफ़ी-परम्परा बहुत विख्यात है, जो कश्मीरी इस्लाम को परम्परागत शिया और सुन्नी इस्लाम से थोड़ा अलग और हिन्दुओं के प्रति सहिष्णु बना देती है। कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीरी पंडित कहा जाता है और वो सभी ब्राह्मण माने जाते हैं। सभी कश्मीरियों को कश्मीर की संस्कृति, यानि कि कश्मीरियत पर बहुत नाज़ है।
स्वतंत्रता के बाद १९८९ तक कश्मीर में आतंकवाद की कोई घटना नहीं हुयी थी। कश्मीर घाटी में आतंकवाद १९८९ में पनपा। जनवरी १९९० में कश्मीर घाटी से लगभग ३ लाख कश्मीरी ब्राह्मण भगा दिए गए, या भागने पर मजबूर किये गए। यह वह समय था जब केंद्र में बीजेपी के समर्थन से बनी वी पी सिंह की सरकार थी और जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था। कश्मीर के राज्यपाल बीजेपी के वरिष्ठ नेता श्री जगमोहन थे।
यह वह काल था जब राजीव -लोंगोवाल समझौता करके राजीव गाँधी ने पंजाब में पकिस्तान समर्थित आतंकवाद का लगभग खात्मा कर दिया था। पाकिस्तान ने ऐसे समय में अपना ध्यान काश्मीर पर अपना ध्यान केन्द्रित किया और कश्मीर की अलगाववादी ताकतों को पैसा और हथियार मुहैया करने शुरू किये। केंद्र में कमजोर सरकार होने का फायदा पकिस्तान को मिला और उसने अमेरिका से मिले मुफ्त के हथियार और सऊदी अरब जैसे देशों से मिले पैसे का उपयोग कश्मीर में आतंक फ़ैलाने में किया।
तब से लेकर आज तक देश की सारी सरकारें इस पकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से लड़ रहीं हैं। कभी आतंकवाद की घटनाएँ कुछ कम हो जाती हैं , कभी बढ़ जाती हैं। बीजेपी देश की एक मात्र ऐसी पार्टी रही है जिसने कश्मीर के आतंकवाद का राजनैतिक लाभ लेने की लगातार कोशिश की है। जब लगभग ६ साल अटल जी देश के प्रधान मंत्री थे तब भी कश्मीर में आतंकवाद था पर किसी पार्टी ने अटल जी को कटघरे में खडा नहीं किया। करगील युद्ध भी अटल जी के कार्यकाल में हुआ और देश पर आई उस आपदा के पोस्टर लगाकर अटल जी ने उसका पूरा लाभ चुनाव में लिया।
मोदी जी एक भारतीय शहीद के बदले दस पाकिस्तानी सिर लाने , लाल लाल आँखे दिखाने, लव लेटर लिखना बंद करने आदि की की सलाह डॉ मनमोहन सिंह को देते हुए , प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठे। यहाँ तक की मोदी जी ने डॉ मनमोहन सिघ को गंवार महिला तक कह डाला था।
जब चुनाव जीतते ही मोदी जी ने पाकिस्तानी प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ को अपनी ताजपोशी पर बुलाया तो ऐसा लगा की वे पकिस्तान से अपने बडबोलेपन की माफ़ी मांग रहे हों। हद तो यह हो गयी की मोदी जी नवाज़ शरीफ को उनके जन्म दिन की बधाई देने बिन बुलाये पकिस्तान पहुँच गए। इससे पकिस्तान में एक गलत सन्देश गया की भारत पर राज करने वाला राजनैतिक दल कमजोर है।
इसके फलस्वरूप कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ अचानक बढ़ गयी। पाकिस्तान से संबंध सुधारने के चक्कर में मोदी जी ने कश्मीर की आतंकवादी घटनाओं का दोष पकिस्तान को न देकर स्थानीय कश्मीरी युवकों को देना शुरू किया। कश्मीरी युवक आतंकवाद का शिकार है।
जम्मू कश्मीर की जनसँख्या लगभग सवा करोड़ है, जिनमे लगभग ९७ % मुसलमान हैं। खुद मोदी सरकार के आंकड़ों में से विश्वास करें तो इन सवा करोड़ में से औसतन ६० कश्मीरी युवक प्रतिवर्ष आतंवादी संगठनों से जुड़ते थे। पिछले २ वर्षों में आतंकी संगठनो से जुड़ने वालों की यह संख्या लगभग २५० युवक प्रतिवर्ष हो गयी है।
पूरे देश के लिए यह एक चिंता का विषय है।
उरी , पठानकोट और अब पुलवामा के बड़े हमलों के बीच बीच और भी सैकड़ों आतंकी घटनाये जम्मू कश्मीर में पिछले ५ वर्षों में हुयी हैं। पहले पठानकोट सैनिक हवाई अड्डे पर ISI के जासूसों का घुमाना और अब पुलवामा हमले को कश्मीरी मुसलमान विरुद्ध भारत के रंग देने का जो काम बीजेपी सरकार ने किया है , उसकी लगातार आलोचना हुयी है।
कश्मीरी मुसलमान चाहे वह जम्मू काश्मीर पुलिस में हो, अर्ध सैनिक बलों में हो, या सेना में हो इस आतंकवाद से पिछले ३० वर्षों से लड़ रहा है। आज भी सेना में हो रही भर्ती के लिए ३००० कश्मीरी जवानों ने आवेदन किया है। अतः कश्मीरी मुसलमान को पाकिस्तानी या देशद्रोही करार देने का जो षड्यंत्र रचा जा रहा है उसे रोकना होगा वरना यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा।
मोदी जी को बीजेपी नेताओं को समझाना होगा की ९९.९० % कश्मीरी आतंकवादी नहीं हैं बल्कि आतंकवाद का शिकार हैं। हमें उनके प्रति संवेदनहीन न होकर उनके साथ मिल कर आतंकवाद से लड़ना होगा। आतंकवाद लाखों करोड़ के टर्न ओवर वाला एक अंतर राष्ट्रीय व्यापार है। इसका सामना पूरे देश को मिल कर करना होगा , वरना कल हमारी हालत पाकिस्तान,अफगानिस्तान, सीरिया या इराक जैसी हो सकती है।
आप सबसे प्रार्थना है, आईये दिलों को जोड़ें, ज़ख्मों पर मरहम लगाएं, देश का विकास करें, मानवता का दीपक जलाये और अंतर राष्ट्रीय आतंकवाद के राक्षस से मिलजुल कर लड़ें।
नमन
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