Friday 11 January 2019

ईश्वर और देशप्रेम


आरफा खानम शेरवानी, राज्य सभा टीवी पर काम कर चुकी हैं, आज कल 'द वायर' की सीनियर एडिटर हैं, 
विदुषी हैं, मैं उनका सम्मान करता हूँ। उन्होने ट्वीट किया है की भारत माता की जय कहना सांप्रदायिक 
(कम्यूनल) है। क्योंकि इससे इस अवधारणा को बल मिलता है की भारत माता 'देवी' हैं। वे कहती हैं की वे इसका
विरोध इसलिए करती हैं क्योंकि वे इस्लाम मे विश्वास करती हैं और कहती हैं की ईश्वर एक है। वे कहती हैं की 
उन्हे यह स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए की वे अपने देश को माँ -पिता-भाई या बहन न कहें ।

मेरी समझ मे 'भारत माता की जय' के  विवाद को तूल देकर आरफा जी बड़ी सफाई से खुद को मुसलमानों का 
हितचिंतक साबित करना चाहती हैं। वे कहती हैं की ईश्वर एक है। सनातन धर्म भी यही कहता है , 
'एको अहम द्वितीयों नास्ति' यानि ईश्वर एक है। सीख धर्म भी यही कहता है एक ही ओंकार की बात करता है।
 मुझे आरफा जी के देश प्रेम पर किंचित भी संदेह नहीं है। परंतु वे धर्म को देश प्रेम के सामने खड़ा करके जो 
राजनीति कर रही हैं उससे मैं किंचित भी सहमत नहीं हूँ। यहाँ मैं बहादुरशाह जफर से सहमत हूँ, जिन्होने 
कहा था;
'नाहक ही तेरे दिल मे भटकाव पड़ गया
काबे मे जो है शेख, वही बुतकदे मे है।'

मेरी समझ मे यहाँ बहादुरशाह जफर भी एकेश्वरवाद की बात कर रहे थे, जो आरफा जी कर रहीं है, जो सनातन 
धर्म करता है, जो ईसाई और सीख धर्म करते हैं। परंतु बहादुरशाह जफर जहां जोड़ने की बात करते नज़र आते थे
 वहीं आरफा जी दिलों मे दूरियाँ पैदा करने की बात करती नज़र आती हैं। 

हम जब भारत माता की जय कहते हैं तो कहीं भी अपनी मातृभूमि को ईश्वर नहीं कहते हैं बल्कि उसे माँ का दर्जा
 देते हैं। उसकी जय कहना उसे ईश्वर कहना नहीं है। मेरी राय मे माँ की जय करने मे आरफा जी को कोई परेशानी
 नहीं होनी चाहिए।  'जय हिन्द' और 'भारत माता की जय' मे सिर्फ शब्दों का फर्क है, दोनों का भाव एक ही है। 
दोनों मातृभूमि के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। जब भारत का मुसलमान गर्व से 'जय हिन्द' कह सकता है तो 
उसे उतने ही गर्व से 'भारत माता की जय' बोलने मे कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। 

यूरोप मे देश को मदर लैंड कहा गया। भारत मे हम इसे 'जन्म भूमि' कहते थे। सनातन धर्म मे  'जननी 
जन्मभूमिश्च -स्वर्गादपि गरीयसी' कहा गया है। जब हम भारतमाता की जय कहते हैं तो अल्लाह, खुदा , ईश्वर,
 गॉड  के सामने एक और परमात्मा को खड़ा करने की बात नहीं करते। 

इस देश के मुसलमान ने इस देश की स्वतन्त्रता के लिए, इसके पुनर्निर्माण के लिए, इसकी रक्षा के लिए उतना 
ही बलिदान दिया है जितना किसी हिन्दू, सीख, ईसाई, पारसी या अन्य ने।  इस मुल्क का मुसलमान इस देश से
 उतनी ही मोहब्बत करता है, जितना अन्य भारतीय। ऐसे मे अपनी संकुचित विचारधारा से हिन्दू और 
मुसलमानो मे दुई का निर्माण करना एक बेहद गलत और चिंताजनक बात है। हमे इससे बचना चाहिए और 
अपनी क्षमताओं का उपयोग राष्ट्र निर्माण मे करना चाहिए। 
' धर्म- मजहब -जातियाँ सब काम हैं शैतान के
आँख के आँसू -मोहब्बत नाम है इंसान के। 
चाहे माथे पर तिलक हो या निशान नमाज़ के
सब मुहाफ़िज़ हैं हमारे अपने हिंदुस्तान के। '
नमन 

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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