सरकारी आंकड़ों की माने तो आज भारत की लगभग 45% आबादी शहरों में रहती है । इस आबादी में से अधिकांश ने ग्रामीण भारत को न तो देखा है न समझा है ।
किसानो , भूमिहीनो, खेत मजदूरों और आदिवासियों की समस्याओं से यह शहरी आबादी अनभिज्ञ है और उसे भ्रम है कि यह 55% ग्रामीण आबादी शहरी आबादी द्वारा दिए जा रहे टैक्स से पोषित है और शहर पर बोझ है, जबकि सच्चाई इसके एकदम विपरीत है ।
पहले गुजरात , कर्नाटक और अब उसके बाद हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में शहरी आबादी और ग्रामीण आबादी एक दूसरे के खिलाफ मतदान करते दिखाई पड़ रहे हैं. देश की शहरी आबादी का भी 70% से अधिक अर्ध शिक्षित है । यह अर्ध शिक्षित वर्ग टीवी समाचार और अखबार की नज़रों से देश को देखता है. कम पढ़ी लिखी शहरी महिलाओं जिनमें घरेलू महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा है टीवी समाचारों से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
शहरों में रहने वाली घरेलू महिलाएं और 35 वर्ष से कम आयु का युवक जिसने सिर्फ टीवी और अखबार में भारत को देखा है, जिसके 10वीं तक के पाठ्यक्रम में सिर्फ उसके राज्य का थोड़ा सा इतिहास पढ़ाया गया है, जिसे अपने देश का भौगोलिक ज्ञान नहीं है परंतु वह डॉक्टर , इंजीनियर और एमबीए की डिग्रियां लेकर मल्टीनेशनल कंपनियों की गुलामी कर रहा है वह भ्रम का शिकार है।
शहरी युवा वर्ग को न तो देश की प्राचीन संस्कृति का ज्ञान है, न प्राचीन इतिहास का. शहरी युवा को न तो देश की भौगोलिक स्थितियों का ज्ञान है, न ग्रामीण भारत के अर्थतंत्र का. बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती भी यही है कि हमारे देश का युवक चाकर बनकर रह जाए और अपने ही देशवासियों का शोषण करके उनके लिए धन अर्जित करता रहे। यह वह दौर है जब बहुराष्ट्रीय कंपनियां विदेशी निवेश के नाम पर हमारी सरकारों के साथ मिलकर हमारे देश को लूट रही हैं और उसे अंदर ही अंदर खोखला कर रही हैं ।
टीवी , व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दुष्प्रचार से प्रभावित होकर यही शहरी वर्ग, देश की गंगा जमुनी संस्कृति को तबाह करते हुए धार्मिक कट्टरता की तरफ बढ़ रहा है। जो हिंदू धर्म मुस्लिम शासकों और मुगलों के राज्य में खतरे में नहीं पड़ा, अंग्रेजों के राज्य में खतरे में नहीं पड़ा, उसे आज खतरे में बताया जा रहा है जबकि देश में आज प्रजातंत्र है और देश में 100 करोड़ हिंदुओं द्वारा चुनी गई सरकार है. देश का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री तक सारे हिंदू हैं। संघ परिवार मुसलमानों का भूत खड़ा करके हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करता है ।
मोदी सरकार ने एक तरफ कत्लखानो को टैक्स मे छूट देकर भारत को विश्व का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक बना दिया है , दूसरी तरफ संघ परिवार के संगठनो की वजह से किसान अपना पशुधन खरीद -बेंच नहीं पा रहा है। इससे किसानों को दोहरी मार पड़ी है। आज ग्रामीण भारत मे बूढ़ी गाय और बछड़ों का कोई खरीददार नहीं रह गया है अतः ये झुंड मे खुले घूम रहे हैं और फसलों का नुकसान कर रहे हैं।
शहर में रहने वाली देश की 45% आबादी का 30% आज भी अपने गांव से जुड़ा हुआ है। गांव में वह किसान है और शहर में मजदूर या व्यापारी। इस तरह आप पाएंगे कि देश की कुल आबादी का 70% या तो गांव में रह रहा है या शहर में रहते हुए भी गांव से जुड़ा हुआ है।
गांव में वह दो रुपए किलो लहसुन और प्याज बेच रहा है और शहर में रु 25 किलो लहसुन और प्याज खरीद रहा है। गांव में उसके गेहूं और चावल की कीमत 16 या 17 रुपए किलो मिल रही है और शहर में वह वही गेहूं और चावल 30 से 35 कहीं-कहीं रु 40 किलो के भाव में खरीद रहा है ।
सरकारी नीतियां बड़े व्यापारियों के पक्ष में है और किसानों के खिलाफ हैं । सरदार पटेल शुगर मिल को बंद कर दिया जाता है और लगभग 75000 ग्रामीणों को विस्थापित करके सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति बना दी जाती है।
विकास के नाम पर किसानों की जमीन अधिग्रहित करके कभी कौड़ियों के भाव अदानी को पोर्ट बनाने के लिए दे दी जाती है , कभी टाटा को नैनो कार बनाने के लिए तो कभी अंबानी को राफेल हवाई हवाई जहाज बनाने के लिए जमीन दे दी जाती है. किसानों का यह शोषण शहरी युवा वर्ग को दिखाई नहीं पड़ रहा है ।
अगर पिछले कुछ वर्षों के चुनावी समीकरणों की बात करें तो हम पाते हैं कि देश का शहर बीजेपी को और गांव विपक्ष को वोट कर रहा है। बढ़ती हुई शहरी आबादी के साथ साथ बीजेपी का राजनीतिक कद भी बढ़ा है. एक तरफ जहां ग्रामीण भारत सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण उसके खिलाफ वोट कर रहा है वहीं दूसरी तरफ शहर अपनी पूरी ताकत से बीजेपी के साथ खड़ा है।
पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव संपन्न हो रहे हैं। जिनमें 3 राज्यों के विधानसभाओं के वोट पड़ चुके हैं और दो के मतदान 7 दिसंबर को होने है। इन पांच राज्यों के चुनाव में भी अगर शहर पूरी तरह से बीजेपी के साथ खड़ा रहा तो बीजेपी सत्ता में वापस आ जाएगी ।
शहरी मतदाता को अपनी तरफ करने के लिए कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया , राजस्थान में पायलट और तेलंगाना में अजहरुद्दीन जैसे नेताओं को आगे किया है जिसका फायदा अगर कांग्रेस को मिला तो कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकती है । राहुल गांधी खुद युवा हैं और पिछले कुछ महीनों में उनका राजनीतिक कद बढ़ा है जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है ।
इन चुनावों में अंधाधुंध धन का उपयोग और ईवीएम भी बड़ा मुद्दा है । अमित शाह ने इन चुनावों में अपनी पूरी आर्थिक ताकत झोंक दी है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ईवीएम के भटकने की जो खबरें मिली हैं, वह प्रजातंत्र के लिए एक अशुभ संदेश हैं। चुनाव के 48 घंटे बाद ईवीएम मशीन गोडाउन में नहीं पहुंची है, मतदान का प्रतिशत अलग अलग बताया जा रहा है, ईवीएम के गोडाउन में लगे सीसीटीवी कैमरे का बंद हो जाना इत्यादि ने चुनाव आयोग की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है।
पांच राज्यों के यह चुनाव 2019 के आम चुनाव की दिशा निर्धारित करेंगे। व्यापम घोटाला, ख़ान घोटाला, राफेल घोटाला , और नोटबंदी घोटाला आदि घोटालों से घिरी बीजेपी सरकार इन चुनावों में अपना बचाव कैसे करेगी और कर भी पाएगी कि नहीं वह कुछ दिनों में सामने आ जाएगा।
दूसरी तरफ विपक्ष के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। अगर इन पांच राज्यों के चुनाव में विपक्ष मजबूत होकर उभरा तो 2019 के आम चुनाव में मोदी जी की राह आसान नहीं रह जाएगी।
2019 के आम चुनाव देश में किसान और मजदूर विरुद्ध अदानी और अंबानी होंगे।
एक तरफ देश के कुछ दर्जन औद्योगिक घराने खड़े होंगे और दूसरी तरफ देश का किसान और मजदूर।
नमन
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