- जागो भारत जागो-
धर्म- मजहब- जातियां सब काम है शैतान के
आँख के आंसू मोहब्बत, नाम है इंसान के.
चाहे माथे पर तिलक हो या निशान नमाज के
सब मुहाफिज हैं हमारे अपने हिंदुस्तान के.
हमारे देश को धर्म और मजहब में बांट कर अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक हम पर शासन करते हुए हमारा आर्थिक शोषण किया.
मुगल सल्तनत के आखिरी दिनों में जहां हमारे देश का जेडीपी पूरे विश्व की जीडीपी का लगभग 24.5% था, वह 200 साल के अंग्रेजों के शासन के बाद विश्व के जीडीपी का मात्र 2% रह गया.
1947 में जब देश को स्वतंत्रता मिली तब हमारे देश का पहला बजट मात्र 294 करोड़ रुपए का था. 33 करोड़ की भूखी नंगी जनता, विभाजन की त्रासदी, राष्ट्रीय संपत्तियों का पाकिस्तान और भारत के बीच बंटवारा, 1947-48 का भारत-पाक युद्ध , 550 से अधिक स्वतंत्र रियासतों को जोड़ना, पाकिस्तान से आए करोड़ों हिंदुओं को हिंदुस्तान में बसाने और उनकी आजीविका की व्यवस्था करने जैसी सैकड़ों समस्याएं हमारे राष्ट्र निर्माताओं के सामने थी.
अंग्रेज और उनके साथ- साथ यूरोप और अमेरिका के अन्य देश लगातार यह भविष्यवाणी कर रहे थे कि भारत टूट कर बिखर जाएगा. यूरोप के कितने ही राष्ट्राध्यक्षों ने पंडित नेहरू को सलाह दी कि हिंदुस्तान अभी प्रजातंत्र के लिए तैयार नहीं है. फिर भी पंडित नेहरू और उनके मित्रों ने अपनी पूरी क्षमता देश को एक सक्षम प्रजातंत्र बनाने में लगा दी और विश्व का सर्वोत्तम संविधान 3 वर्षों से भी कम समय में हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने रचा.
यह संविधान आधुनिक भारत की गीता भी है- रामायण भी, कुरान भी है और बाइबिल भी, गुरु ग्रंथ साहब भी है और कबीर वाणी भी.
प्लानिंग कमीशन , पंचवर्षीय योजनाएं, बांधों- नहरों और सड़कों का निर्माण, बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर और इसरो जैसे संस्थानों का खड़ा करना, HAL, BHEL, HSL, HMT, DRDO, IIT, IIM, AIMS, केंद्रीय विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय, योग विश्वविद्यालय जैसे हजारों सार्थक संस्थान स्वतंत्रता के बाद के पहले 4 दशकों में हम ने खड़े किए.
इन सब ने मिलकर भारतीय लोकतंत्र की नींव को और मजबूत किया. इस बीच हमने चार युद्ध भी लड़े. इन युद्धों ने हमारी अर्थव्यवस्था को अपरिमित नुकसान पहुंचाया फिर भी हमारे राष्ट्र निर्माता अडिग रहें और देश के विकास की प्रक्रिया निरंतर जारी रही.
यूरोपीय और अमेरिकी अर्थ विशेषज्ञों, रक्षा विशेषज्ञों और राजनेताओं के अधिकतर अनुमानों को हमने बार-बार गलत साबित किया.
21वीं शताब्दी के पहले दशक में जब यूरोप और अमेरिका के बाजारों में मंदी थी उद्योग बंद हो रहे थे तब भी भारत आर्थिक रूप से लगातार प्रगति कर रहा था.
भारत की प्रगति यूरोप और अमेरिका के औद्योगिक राष्ट्रों को खल रही थी. वे लगातार भारत की विकास के खिलाफ षड़यंत्र कर रहे थे. स्वतंत्रता के बाद पहले तीन- चार दशकों तक जो भारत यूरोप और अमेरिका में बने सामानों का उपभोक्ता था, वहां के उद्योगों को लाभ पहुंचा रहा था, वह भारत अब उनकी बराबरी में खड़ा हो गया था.
भारतीय उद्योग यूरोप और अमेरिका के उद्योगों से प्रतिस्पर्धा करने लगे थे. भारत 125 करोड़ उपभोक्ता वाला भारत न रहकर 125 करोड़ की आबादी वाला निर्यातक भारत हो गया था. भारत की युवा आबादी और पढ़ा-लिखा युवक यूरोप और अमेरिका को खटकने लगा था.
देश की तमाम सरकारों ने चाहे वह कांग्रेस की रही हो या अन्य दलों की, हमारे नवयुवकों को जो कालांतर में इंजीनियर, डॉक्टर या साइंटिस्ट बने, न तो भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास पढ़ाया था, न भारत का प्राचीन इतिहास.
देश की तमाम सरकारों ने चाहे वह कांग्रेस की रही हो या अन्य दलों की, हमारे नवयुवकों को जो कालांतर में इंजीनियर, डॉक्टर या साइंटिस्ट बने, न तो भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास पढ़ाया था, न भारत का प्राचीन इतिहास.
हमने नवयुवकों की एक ऐसी पीढ़ी खड़ी कर दी थी जो तांत्रिक रूप से विश्व में सर्वश्रेष्ठ थे , परंतु अपने देश का, अपने देश की जड़ों का , अपनी संस्कृति का और अपने इतिहास का ज्ञान उन्हें न के बराबर था. इस अज्ञान की वजह से इस पीढ़ी में राष्ट्राभिमान की भी कमी आई.
स्थितियां यहां तक बिगड़ी कि हमारे देश के अर्थ तज्ञ , हमारे देश के इतिहासकार, हमारे देश के वैज्ञानिक या हमारे राष्ट्र निर्माता कुछ भी कहें परंतु जब तक उनकी बातों की संस्तुति कोई यूरोप या अमेरिका का विद्वान नहीं कर देता तब तक हम अपने वैज्ञानिकों, अर्थतज्ञ, इतिहासकारों या राष्ट्र निर्माताओं को सही नहीं मानते.
स्वतंत्रता के बाद के पांच दशकों में हमने यूरोप और अमेरिका के जिन अर्थतज्ञ , इतिहासकारों और राजनेताओं को बार- बार गलत साबित कर इतनी आर्थिक और वैज्ञानिक प्रगति की थी, आज हम उन्हीं की तरफ देख रहे हैं कि वह हमारा मार्गदर्शन करें.
हमारे देश की समस्याएं , हमारी संस्कृति , हमारी भौगोलिक स्थितियां, यूरोप और अमेरिका से अलग हैं, अतः यूरोप और अमेरिका का अंधानुकरण करके हम अपने देश को पतन के गर्त में ले जायेंगे यह बात आज के युवाओं को समझ लेनी चाहिए.
खैर मैं अपनी बात पर लौटता हूँ. भारत की अविश्वसनीय आर्थिक और वैज्ञानिक प्रगति ने यूरोप और अमेरिका के राजनेताओं के कान खड़े कर दिए और उन्होंने एक बार फिर भारत के खिलाफ षड़यंत्र रचना शुरू किया.
125 करोड़ उपभोक्ताओं वाला भारत यूरोप और अमेरिका के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है .
भारत कई दर्जन भाषाओं , संस्कृतियों और आधा दर्जन धर्म के लोगों का समूह है. यूरोप और अमेरिका ने भारत के स्वार्थी राजनेताओं, तथाकथित बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को पैसे का लालच देकर देश में धर्म, जाति और भाषा के नाम पर पुन: विष के बीज रोपने शुरू कर दिए, जिसका रिजल्ट अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है. यूरोप और अमेरिका चाहते हैं कि भारत में राजनीतिक अस्थिरता आए, धार्मिक और जातीय संघर्ष हों, भारत की औद्योगिक और आर्थिक प्रगति रुके ताकि भारत की यूरोप और अमेरिका पर निर्भरता बढे और भारत यूरोप और अमेरिका में बने माल का बाजार फिर से बन सके.
भारत की जनता और विशेषकर भारत के नवयुवकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह यूरोप और अमेरिका के इस षडयंत्र के शिकार न बने. भारत की धार्मिक , जातिगत , भाषाई और सांस्कृतिक विविधता ही भारत की ताकत रही है. इसी विविधता में एकता की बात हम पिछले 7 दशकों से करते आए हैं.
यूरोप और अमेरिका हमारे देश में जिस धार्मिक और जातीय अतिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं वह कालांतर में आतंकवाद में परिवर्तित हो सकता है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आतंकवाद और आतंकवादी हमेशा अपने ही धर्म के लोगों के विनाश का कारण बनता है.
पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान, सिरिया, इराक और अरब देशों तक फैले इस्लामिक आतंकवाद में 99% जानें मुसलमानों की ही गई है . हजारों मस्जिदे, स्कूल , संग्रहालय और अस्पताल तोड़े गए हैं.
हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान का ही उदाहरण लें तो पाएंगे कि आतंकवादी वहां स्कूलों में घुसकर एक एक बार में 200-200 बच्चों की जान ले ले रहे हैं, मस्जिदों में बम विस्फोट करके एक एक बार में सैकड़ों नमाजियों की हत्या कर दी जा रही है , वायुसेना और नौसेना अड्डों पर घुसकर उनके शस्त्रागारों में आग लगा दी जा रही है, राजनेताओं को सड़कों पर मार दिया जा रहा है. कहने का मतलब है कि पाकिस्तान से लेकर अरब देशों तक मुसलमान ही मुसलमान को ही मार रहा है, किसी दूसरे को नहीं.
हम सब जानते हैं कि इस इस्लामिक आतंकवाद की जड़ में अमेरिका और यूरोप है. मुस्लिम देश तबाह हो रहे हैं और यूरोप एवं अमेरिका व्यापार कर रहे हैं.
भारत में यूरोप और अमेरिका इसी अतिवाद की जड़े रोपने में लगे हुए हैं.
125 करोड़ की आबादी वाला भारत उन्हें ललचा रहा है. भारत में पनपता हुआ अतिवाद अगर आतंकवाद में परिणित हो गया तो यूरोप और अमेरिका को एक बहुत बड़ा बाजार भारत में मिल जाएगा.
याद रखिए आतंकवाद दुनिया का सबसे बड़ा व्यवसाय है.
भारत के नौजवान पीढ़ी को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह धार्मिक अतिवाद और जातिवाद के झांसे में न आए और राष्ट्र निर्माण के लिए लगातार प्रयत्नशील रहे.
आज देश के सामने दो सबसे बड़ी चुनौती है, एक धर्मांधता और दूसरा भ्रष्टाचार.
भ्रष्टाचार मे लिप्त राजनेता अपनी अक्षमताओं से आपका ध्यान हटाने के लिए आपको धर्म की अफीम खिला रहे हैं.
धर्म के संगठित गिरोह पूरे देश में सक्रिय हैं.
टीवी चैनलों पर लगातार जहर बोया जा रहा है. नफरत का बाजार गर्म है और प्रेम अस्पृष्य हो गया है.
गंदा है पर धंधा है ए.
जागो भारत जागो!
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