Wednesday, 26 December 2018

सलीब







सलीब पर
सिर्फ ईसा ही नहीं
उससे बहुत पहले
भीष्म भी चढे थे
इच्छा मृत्यु के वरदान के बावजूद.


ठोक दी जाती हैं
झूठ- फरेब
नफरत और हिकारत की कीले
हमारी आत्मा में
लटका दिया जाता है
समय के क्रास पर.

आज भी
एक पूरा परिवार
लटका हुआ है सलीब पर
रिस रहे हैं उनके घाव
असह्य पीड़ा के बावजूद
मुस्कुरा रहे हैं वे
तुम शायद नहीं देख पाए
पर देख रहा हूं मैं उन्हें
धीरे-धीरे मरते हुए.

तुम्हारी नफरत की कीलें
पैबस्त हैं उनके सीने में
तुम्हारे झूठ से
लहूलुहान हैं उनके शरीर
तुम्हें बचाने के लिए
उन्होंने सामने कर दिया है
खुद को मौत के
ताकि तुम मुस्कुरा सको
नए वर्ष के स्वागत में.
नमन

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