देश के नवनिर्माण में
कांग्रेस का अवदान
हमारे
स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान से 15 अगस्त 1947 को भारत में स्वतंत्रता
का नया सूर्य उदय हुआ। १८५७ से १९४७ तक के ९० वर्ष के संघर्ष के बाद हमें स्वतंत्रता मिली।
कंठ भलेहों कोटि-कोटि तेरा स्वर उनमें गूंजा
हथकड़ियों को पहन राष्ट्र ने पढ़ी क्रांति की पूजा।
सदियों से गुलामी
की त्रासदी झेलते आए भारत के लगभग 35 करोड अवाम ने अपने सुंदर भविष्य के सपने
देखने शुरु किए।
गुलामी
ने भारतीय अर्थव्यवस्था को जर्जर बना दिया था। अंग्रेजों ने हमारे उद्योग नष्ट कर
दिए और हमारा लगभग 200 वर्षों तक आर्थिक शोषण किया। 1947 आते आते अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में
कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत का हिस्सा मात्र 2% रह गया था जो मुगल काल
में लगभग 25% था।
पं.
जवाहरलाल नेहरू,
सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि सक्षम नेताओं
के कंधो पर स्वतंत्र भारत के पुनर्निर्माण का गुरुतर भार आ पड़ा था.
एक तरफ
डॉ. राजेंद्र प्रसाद,डॉ.
भीमराव आंबेडकर ,पंडित नेहरू और संविधान सभा के उनके
सहयोगी सदस्य भारत के संविधान के निर्माण में रात दिन एक कर रहे थे, वही दूसरी तरफ
सरदार पटेल और पंडित नेहरू लगभग 555 स्वतंत्र रियासतों को जोड़कर भारत को एक मजबूत
राष्ट्र बनाने की दिशा में काम कर रहे थे।
कांग्रेस
के सामने न केवल भारतीय रियासतों को जोड़ने का गुरुतर कार्य था बल्कि पांडिचेरी और
गोवा जैसे फ्रांस और पुर्तगाल शासित राज्यों को आज़ाद करा कर भारत में शामिल करने
का भी था।
स्वतंत्रता
के तुरंत बाद भारतीय सेना जहाँ एक तरफ पंजाब में हो रहे हिन्दू –मुस्लिम कत्लेआम
से निपट रही थी वहीँ उसे कश्मीर पर पाकिस्तान समर्थित कबायली हमले के कारण कश्मीर
में जाकर लड़ना पड़ा।
कांग्रेस
के नेता विभिन्न मोर्चों पर लगातार दिन-रात श्रम कर रहे थे ताकि एक मजबूत और सक्षम
भारत की नींव रख सकें, वहीं आरएसएस जैसे संगठन देश में भय ,भ्रम और धार्मिक उन्माद
को बढ़ावा देने में लगे थे।
कश्मीर
में पाकिस्तान समर्थित कबायलियों से लड़ना और उन्हें पीछे धकेलना,पाकिस्तान से भारत आए लाखों हिंदू और सिख
शरणार्थियों को हिंदुस्तान में बसाना उनके रहने खाने और सुरक्षा की व्यवस्था करना,संविधान निर्माण में लगातार ढील ना आने
देना और निश्चित समय में संविधान बना कर देश को समर्पित करना जैसे कामों के लिए हम संविधान सभा के सदस्यों और तत्कालीन
भारत के निर्माताओं को जितना भी श्रेय दें वह कम ही होगा।
चुनौती
सिर्फ संविधान बनाने की नहीं थी बल्कि पूरे के पूरे संवैधानिक ढांचे को खड़ा करने
की थी,जो संविधान को लागू कर सके। योजना आयोग, न्यायपालिका, कार्यपालिका, केंद्र -राज्य संबंध, विदेश नीति आदि कितने ही काम हमारे
राष्ट्र निर्माताओं के सामने थे।
इसी
बीच सांप्रदायिक शक्तियों ने देश की पीठ में वह खंजर भोंका जिसका दर्द आज तक ताजा
है। इन कायर ताकतों ने राष्ट्रपिता महात्मा
गांधी की तब हत्या कर दी जब देश को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।
महात्मा
गांधी के हत्या के पीछे उनकी मंशा देश को सांप्रदायिक आधार पर बांट कर उस के
टुकड़े-टुकड़े करने की थी। परंतु भारतीय
जनता ने उन सांप्रदायिक ताकतों का मुंहतोड़ जवाब दिया और वह पूरी क्षमता से
कांग्रेस के पीछे खड़ी रही।
महात्मा
गांधी की हत्या एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, वह हत्या थी सत्य की, प्रेम
की, मानवता की। ईश्वर उन्हें माफ करना क्योंकि उन्हें खुद नहीं
पता था कि उन्होंने देश पर कितनी बड़ी आपदा लाई थी।
राष्ट्रपिता की हत्या के बाद उनके
हत्यारों का आरएसएस का संबंध होने के लिए देश के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल
ने आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
भारत
की स्वतंत्रता के बाद भारत का पहला सालाना बजट मात्र 294 करोड़ का था। बिखरे हुए
हिंदुस्तान को समेटकर भूख, गरीबी
और अशिक्षा जैसी समस्याओं से लड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का
काम कांग्रेस ने शुरु किया।
२ वर्ष
११ महीने में संविधान सभा ने भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान दिया जिसने
भारत में प्रजातंत्र की नींव को हमेशा के लिए सुदृढ कर दिया।
गुलामी
की जंजीरों को तोड़ कर कांग्रेस ने देश की सदियों से शोषित और प्रताड़ित जनता को 'प्रजातंत्र' नाम का नया धर्म दिया।
26
नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को देश को समर्पित करते हुए कांग्रेस ने देश की जनता
को देश का राजा घोषित किया।
यहां
एक बात जो गौर करने लायक है वह यह है कि संविधान सभा में अधिकांश सदस्य कांग्रेस
के थे। कांग्रेस अगर चाहती तो देश में एक
पार्टी वाले शासन की नींव रख सकती थी। ऐसा
संविधान बना सकती थी जिस तरह का संविधान सोवियत रूस या हमारे पड़ोसी चीन में है।
परंतु कांग्रेस के नेताओं में सत्ता के प्रति रंचमात्र भी मोह नहीं था। उन्होंने
देश कि सत्ता आम आदमी के हाथ में सौंप दी।
डॉ
राजेंद्र प्रसाद,पं.
नेहरु,डॉ भीमराव आंबेडकर,सरदार पटेल,मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि संविधान सभा
के सदस्यों को बार बार प्रणाम करते हुए किसी कवि की यह पंक्तियाँ बरबस याद आ रही हैं.....
"तुमने
दिया देश को जीवन देश तुम्हे क्या देगा
अपनी
आग तेज रखने को नाम तुम्हारा लेगा"
1950
में सरदार पटेल की लंबी बीमारी से मृत्यु के बाद पंडित नेहरू अकेले पड़ गए थे। फिर
भी राष्ट्र को जोड़ने की उनकी यात्रा लगातार जारी थी।
एक तरफ
आरएसएस
और जनसंघ अल्पसंख्यकों के खिलाफ विष उगल
रहे थे, दूसरी तरफ विघटनकारी सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ते हुए कांग्रेस लगातार
देश को जोड़ने का काम कर रही थी।
भारत
का लगातार 200 साल शोषण करने के बाद अंग्रेज जाते-जाते
अपने पीछे एक भूखा और नंगा भारत छोड़ गए थे जहां लगभग 50% आबादी के पास ना तो 2 जून की रोटी थी न 2 जोडा कपड़ा।
पंडित
नेहरू और कांग्रेस ने कभी इन परिस्थितियों का रोना नहीं रोया और नए और समृद्ध भारत
के निर्माण में रात दिन एक कर दिया।
हम सब
इतिहास पढ़ते हैं, कुछ
लोग इतिहास लिखते भी हैं , पतन्तु महान वे होते हैं जी इतिहास बनाते हैं।
पंडित
नेहरू ने न केवल इतिहास पढ़ा, इतिहास
लिखा, बल्कि इतिहास बनाया भी ।
सऊदी
अरब की यात्रा के दौरान पंडित नेहरू को "रसूल- अस - सलाम" यानी शांति का
संदेश वाहक कह कर पुकारा गया था। उर्दू
में यह शब्द पैगंबर मोहम्मद साहब के लिए भी प्रयुक्त होता है।
प्रसिद्ध
शायर रईस अमरोहवी का एक मिसरा कराची से निकलने वाले अखबार डॉन में उस समय प्रकाशित
हुआ था,
"
जप रहे माला एक हिंदू की अरब
बरहमनजादे
में शान ए दिलबरी ऐसी तो हो।
हिकमत
ए पंडित जवाहरलाल नेहरु की कसम
मर
मिटे इस्लाम जिस पर काफिरी ऐसी तो हो।"
मुझे
बरबस बिनोवा भावे जी का, The Nehru Legacy - Democratic Socialism नामक लेख याद आ जाता है जिसमें उन्होंने लिखा है कि,
"
I think of Asoka the Great when I ponder over the life and work of Nehru."
अपने
अगले पैराग्राफ में बिनोवा भावे लिखते हैं,
"
Nehru had a mind as large as this universe."
इसी
पैराग्राफ में आगे वे लिखते हैं,
"
Verily I say, Nehru has mingled with the people of India and will live with
them forever."
देश के
सामने तमाम समस्याएं सर उठाए खड़ी थी. उसी दौर में किसी शायर ने कहा,
"अभी तो सुबह के माथे का रंग काला है
अभी
फरेब न खाओ बड़ा अंधेरा है"
-विदेश नीति
-
यह
पंडित नेहरू की प्रभावी विदेश नीति की विजय थी कि 28 मई 1956 को फ्रांस के आधिपत्य
वाले कारिकल,
माहे
व पांडिचेरी आदि को स्वतंत्र करा कर पंडित नेहरु ने उन्हें भारत का
अविभाज्य अंग बना दिया.
पंडित
नेहरु ने अपनी सेना भेज कर 6 जून 1962 को आधिकारिक रूप से पुर्तगाल शासित गोवा,दमन , दीव आदि का भारत में विलीनीकरण कर लिया।
नाटो
और वारसा संधियों से जुड़े देशों ने कोल्ड वार के ज़माने में पूरे विश्व को दो भागों
में बाँट दिया था. पंडित नेहरु ने युगोस्लाविया के प्रेसिडेंट टीटो, मिस्र के
प्रसीडेंट नासेर, इंडोनेशिया के प्रेसिडेंट सुकर्णो और घाना के प्रेसिडेंट न्कृमाह
के साथ मिल कर गुट निरपेक्ष देशों के संगठन की नींव रखी. लगभग १२० देश आज इस संगठन
के सदस्य हैं और इस संगठन ने भारत की विदेश नीति को नयी दिशा दी.
-औद्योगिक
विकास और हरित क्रांति-
योजना आयोग की नींव , पंचवर्षीय योजनाओं की
शुरुआत, भाखड़ा और रिहंद जैसे ३२०० से ज्यादा
बांधों और नहरों के निर्माण का कार्य,भारत की नवरत्न कंपनियों की नींव इसी काल में रखी गई, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नयी
दिशा दी . भूमि प्रबंधन , सहकारिता आन्दोलन और कृषि विश्वविद्यालयों की नींव भी
इसी काल में रखी गयी.
IIT,IIM,AIIMS,HAL,BHEL,HMT,ISRO,BARC,TAPS,HSL,IFCO जैसी संस्थाओ की नींव भी इसी काल में रखी
गयी.
15
मार्च 1950 को योजना आयोग की स्थापना की गई। देश के आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय
योजनाओं का खाका तैयार करने का काम शुरू हुआ। स्वतंत्रता
से आज तक भारत की चहुमुखी आर्थिक , औद्योगिक , कृषि , शैक्षणिक और वैज्ञानिक प्रगति का आधार
यही पंचवर्षीय योजनाएं बनी।
यह
कांग्रेस की आर्थिक नीतियों का ही परिणाम है कि
स्वतंत्र
भारत का पहला वार्षिक बजट जहां मात्र 294 करोड रुपए का था,वही आज हमारा वार्षिक बजट 20 लाख करोड
रुपए के ऊपर पहुंच गया है। यह सरकार की
दूरदृष्टि और भारतीय जनता के अथक परिश्रम से ही संभव हो पाया है।
स्वतंत्रता
से पहले 1946 -1947 में जहां देश की प्रति
व्यक्ति वार्षिक आय 62. 30 रू मात्र थी और सकल घरेलु उत्पाद मात्र 2524 करोड़ रू
था।
वही
2014 आते-आते जहाँ प्रति व्यक्ति आय लगभग 80,000 रू प्रतिवर्ष और सकल घरेलु उत्पाद
लगभग 1,13,550.73 अरब रू तक पहुंच गया है।
60 और
70 के दशक में देश में सिंचाई की सुविधाओं का सर्वथा अभाव था। किसान सिंचाई के लिए पूरी तरह बारिश पर निर्भर
करता था। बड़े बड़े बांधों,
नहरों के जाल से पूरे देश को जोड़ने का
काम कांग्रेस की सरकारों ने किया। जिससे
सिंचित क्षेत्र कई गुना बढ़ गया।
स्वतंत्रता
के बाद जहां हमारी आबादी लगभग 4 गुना बढ़ी है वही खाद्यान्न उत्पादन लगभग 5 गुना
से ज्यादा बढ़ा है।
1947-
48 में जो भारत अपनी 35 करोड़ की आबादी को 2 जून की रोटी उपलब्ध नहीं करा पाता था,वह भारत आज अपनी 130 करोड़ की आबादी को
पर्याप्त खाद्यान्न मुहैया करने के बाद लाखों करोड़ रुपए का खाद्यान्न निर्यात
करता है। यह पंचवर्षीय योजनाओं और हरित
क्रांति की सफलता का एक उत्तम उदाहरण है।
2013 -
14 तक भारत कृषि उत्पादों का विश्व का छठवां सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका है.
देश की
कुल जीडीपी का 13.7 % कृषि क्षेत्र से आता है. देश के कुल रोजगार का लगभग 50%
रोजगार कृषि क्षेत्र में उपलब्ध होता है.
आर्थिक
प्रगति और बेहतर स्वास्थ्य प्रबंधन की वजह से भारतीयों की औसत आयु लगभग 2 गुनी हो
गई है। पूरे देश में सरकारी अस्पतालो का
जाल बिछाने का काम कांग्रेस ने अपने ७० साल के कार्यकाल में किया।
1947
में भारतीयों की औसत आयु मात्र 32 वर्ष 6
महीने थी।
आज
भारतीय पुरुष की औसत उम्र 64 वर्ष 2 महीने और भारतीय स्त्री की औसत उम्र 68 वर्ष 5
महीने हो गई।
देश
में ६०५ जिला अस्पताल और ३०,००० से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए।
सरकारी
क्षेत्र में आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस और टाटा कैंसर अस्पताल जैसे
अस्पताल इसी काल में खुले हैं.
बिज़ली
उत्पादन
स्वतंत्रता
के बाद से वर्ष 2014 तक भारत ने अपनी बिजली की उत्पादन क्षमता में लगभग 1784 गुना
की वृद्धि की है।
स्वतंत्रता
के समय हमारे देश की बिजली उत्पादन क्षमता केवल 1362 मेगावाट थी वह 2014 में बढ़कर 2,43,000 मेगावाट हो चुकी है।
स्वतंत्रता
के समय देश के मात्र ३,000 गांव में बिजली के कनेक्शन उपलब्ध थे।
2014
आते आते देश के 5,50,000 से अधिक गांवों में बिजली के कनेक्शन दिए जा चुके हैं.
आज
भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश है।
1947
में जहां प्रति व्यक्ति 16.3 किलो वाट बिजली उपलब्ध थी ,
वहां
आज प्रति व्यक्ति 1010 किलो वाट बिजली उपलब्ध है।
तेजी
से बढ़ रहे हैं उद्योगीकरण और शहरीकरण से बिजली की खपत कई गुना बढ़ी है.
शिक्षा
स्वतंत्रता
के बाद मौलाना आज़ाद के कुशल नेतृत्व में
देश ने शिक्षा के लिए अनेक महत्वपूर्ण
कदम उठाए। स्वतंत्रता के समय देश में
जहां केवल 4 करोड लोग शिक्षित थे 2011 आते-आते यह संख्या 96 करोड़ तक पहुंच गई।
1956
में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की स्थापना हुई और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी
तेजी से कार्य हुआ।
1947 में देश में मात्र 2लाख प्राइमरी स्कूल
थे,2014 में देश में 20 लाख से ज्यादा
प्राइमरी स्कूल हैं।
1947
में जहां साक्षरता की दर मात्र 12% थी,वही 2014 में 74 प्रतिशत पर
पहुंच गई है।
1950
में देश में मात्र 20 विश्वविद्यालय थे।
आज देश
में 45 सेंट्रल विश्वविद्यालय, 367 स्टेट विश्वविद्यालय और 123 डीम्ड
विश्वविद्यालय हैं।
आज 23 IIT,31 NIT,23 IIIT,7 AIIMS के साथ-साथ 10,000 से ज्यादा इंजीनियरिंग
कॉलेज और लगभग 450 मेडिकल कॉलेज देश में
है, जो कांग्रेस की नीतियों और शिक्षा के
प्रति कांग्रेस के समर्पण का परिणाम है।
युद्ध, उसके परिणाम और भारतीय सेना की गौरव गाथा
स्वतंत्रता
के बाद हुए 4 युद्धों ने भारतीय
अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी थी।
1947,1962 ,1965 और 1971 के 4 युद्ध भारत ने अपनी स्वतंत्रता के पहले 24 वर्षों
में लडे़। इन 4 युद्धों ने देश के पुनर्निर्माण को अत्यधिक क्षति पहुंचाई। इससे विकास की गति प्रभावित हुई।
जब देश
में आधारभूत ढांचे के निर्माण के लिए संसाधनों की अत्यंत आवश्यकता थी उस समय इन
युद्धों ने भारत को सेना की जरूरतों के लिए हथियार और संसाधन खरीदने पर मजबूर
किया।
1965
में जब पाकिस्तान ने जबरन युद्ध भारत पर लादा और अमेरिका ने भारत को गेहूं और अन्य
खाद्यान्न देने से मना कर दिया ,तब
हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने "जय जवान- जय किसान" का नारा
देते हुए विश्व की महाशक्तियों को ललकारा।
भारतीय
सेनाओं ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए ना केवल पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह
पछाड़ा बल्कि देश के किसानों ने देश को खाद्यान्न के बारे में आत्मनिर्भर बनाने का
जो व्रत लिया,उसकी परिणति यह हुई कि 1974-75 आते-आते
भारत खाद्यान्न के उत्पादन के बारे में आत्मनिर्भर हो चुका था।
1971
की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को वह शिकस्त दी कि तब से आज तक पाकिस्तान भारत से
आमने - सामने की लड़ाई की हिम्मत नहीं कर सका।
सिर्फ
15 दिन के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और पूर्वी पाकिस्तान
को बांग्लादेश बना कर पाकिस्तान से हमेशा के लिए अलग कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार हुआ था
कि किसी देश ने दूसरे देश की सेना के 93000 सैनिक गिरफ्तार किए हों।
युद्ध
के बाद में शिमला समझौते में इंदिरा गांधी ने जुल्फिकार अली भुट्टो से यह
सुनिश्चित करा लिया कि इसके बाद भारत पाक संबंधों में किसी तीसरे देश का कोई
हस्तक्षेप नहीं होगा और न तो संयुक्त राष्ट्र संघ ही हमारे आपसी मसलों में कोई
हस्तक्षेप करेगा। शिमला समझौता भारतीय
कूटनीति की एक बहुत बड़ी जीत थी।
भारत
ने अपनी सेना के आधुनिकीकरण का काम लगातार जारी रखा था। आज भारतीय वायुसेना विश्व
की सर्वश्रेष्ठ वायु सेनाओं में से एक है।
आज भारतीय
नौसेना अपने लिए फ्रिगेट, डिस्ट्रॉयर जहाजों से लेकर विमान वाहक जहाज, पनडुब्बियां और परमाणु पनडुब्बी तक खुद
बना रही है।
शुरुआती
दिनों में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने भारत में नेट विमान, किरण जेट ट्रेनर विमान,
चेतक
और ध्रुव हेलीकॉप्टर आदि बनाने में सफलता हासिल की।
आज हम
भारत में विकसित किया गया तेजस विमान बना रहे हैं जो विश्व के सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू
विमानों में से एक है।
भारतीय
सेना के लिए अर्जुन टैंक, 30 किलोमीटर से ज्यादा दूर तक मार करने वाली धनुष तोप,
पृथ्वी, नाग, त्रिशूल, अग्नि जैसी मिसाइलें आज भारत खुद बना रहा
है।
आज
हमारे पास परमाणु हथियार ले जाने वाले विमान और मिसाइल हैं।
आज अगर
हमारी सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक है और देश की सुरक्षा के लिए
ज्यादा सचेत और सक्षम हैं तो इसका सारा श्रेय कांग्रेस की सरकारों को जाता है
जिन्होंने आर्थिक संसाधनों की कमी के बावजूद भारतीय सेना के लिए संसाधन मुहैया
कराए।
यहां तीन
बातें बहुत महत्वपूर्ण है।
पहली
यह कि, द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान और जर्मनी
के हुए विनाश के बावजूद जर्मनी और जापान में उद्योगों के लिए पर्याप्त तंत्र-ज्ञान
मौजूद था, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय वे
दोनों देश एक विकसित देश थे और कई मामलों में यूरोप और अमेरिका से आगे थे। अतः जापान और जर्मनी के पुनर्निर्माण के समय इन
दो देशों के पास आर्थिक अभाव तो था लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि और तंत्रज्ञान की कहीं
कोई कमी नहीं थी।
दूसरा
महत्वपूर्ण अंतर था "राष्ट्रप्रेम"
आचार्य
विनोबा भावे ने धूलिया में दिए गए अपने एक वक्तव्य में कहा था , जिस समय जर्मनी द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा
रहा था और आक्रांता था, गलती
पर था फिर भी संयुक्त जर्मनी की कुल 6 करोड़ आबादी में से 3 करोड़ आबादी परोक्ष या
अपरोक्ष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल थी।
ठीक
उसी समय भारत अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा था फिर भी भारत की लगभग 35 करोड़ आबादी में से तीन लाख से
भी कम लोग स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे।
यह बताता है की भारत में प्रति १००० व्यक्ति में से १ व्यक्ति से भी कम
लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय भाग लिया।
यह
आंकड़े बताते हैं कि हम भारतीयों में देशप्रेम की कितनी कमी रही है।
आचार्य
विनोबा भावे जी ने कहा था कि अगर स्वतंत्रता आंदोलन में भारत के हर परिवार का एक
व्यक्ति शहीद हुआ होता या शामिल हुआ होता तो भारत जर्मनी या जापान से ज्यादा
विकसित राष्ट्र होता।
राष्ट्रप्रेम
के प्रति यह कमी स्वतंत्रता आंदोलन में भी लोगों को दिखाई पड़ रही थी, जब आरएसएस जैसे संगठन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का
विरोध कर रहे थे।
एक तरफ
कांग्रेस महात्मा गांधी के नेतृत्व में "अंग्रेजों भारत छोड़ो" और
"करो या मरो" का नारा लगाकर देश
से अंग्रेजों को भगाने के लिए प्रयत्नशील थी , कुर्बानियां दे रही थी, हमारे स्वतंत्र सेनानी लाठी और गोलियां खा रहे थे, उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत
छोडो आंदोलन का विरोध कर रहा था और पूरे देश में जगह-जगह शिविर लगाकर भारतीय
युवकों को अंग्रेजों की सेना में शामिल होने की सलाह दे रहा था, ताकि वे बर्मा के बॉर्डर पर जाकर नेताजी
सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज से टक्कर ले सकें।
डॉ
श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता जो
मुस्लिम लीग कि बंगाल सरकार में मंत्री थे, 1946 में बंगाल में बंगाल विभाजन के पक्ष में मतदान करा रहे थे। संघ
के स्वयंसेवक पूरे देश में यह प्रचार करते थे कि अंग्रेज उनके दुश्मन नहीं है उनके
दुश्मन मुसलमान हैं।
अपनी
इसी प्रवृत्ति को जारी रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वतंत्रता के बाद भी
स्वतंत्र भारत की पहली सरकार का विरोध जारी रखा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की देखरेख और मार्गदर्शन में जनसंघ की स्थापना हुई
जिसने 1952 के प्रथम चुनाव में भाग लिया।
इसके नेता डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके सहयोगी हमेशा कांग्रेस की
नीतियों का विरोध करते रहे।
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ द्वारा अपने कैडरों और समर्थकों के बीच सावधानीपूर्वक बोए गए
सांप्रदायिक भावनाओं को देखते हुए ही सुप्रसिद्ध पत्रकार कृष्ण भाटिया ने 1971 में
लिखा, "पिछले 30 वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ देश में हुए कुछ सबसे बुरे दंगों के पीछे रही है"
भाजपा
नेताओं की 'ट्यूब लाइट' देर से जलती है-
विपक्षी दलों विशेष करके तत्कालीन जनसंघ और अब
बीजेपी द्वारा सरकार की हर नीति का विरोध करने की परंपरा की वजह से देश की आर्थिक
प्रगति में लगातार अड़चनें आई।
1969
में जनसंघ ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और राजाओं के प्रिवी पर्स रोकने का विरोध
किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1970 के दशक में कांग्रेस सरकार की परिवार
नियोजन योजनाओं का विरोध किया।
एक तरफ
चीन जैसे देश उस समय एक परिवार एक बच्चे की बात कर रहे थे, दूसरी तरफ हमारे देश की
जनसंघ जैसी पार्टियां "बस दो या तीन बच्चे- होते हैं घर में अच्छे" जैसे
कांग्रेस के नारे के खिलाफ भ्रामक प्रचार कर रही थी।
उसका
परिणाम वह यह हुआ कि जहां चीन अपनी जनसंख्या को रोकने में कामयाब रहा वहीं भारत
में भयंकर जनसंख्या विस्फोट हुआ।
1977
के आम चुनाव में कांग्रेस के हारने के बाद किसी राष्ट्रीय दल में यह हिम्मत नहीं
पड़ी कि वह परिवार नियोजन के कार्यक्रम को पूरी हिम्मत से आगे ले जा सके। आज अगर हमारे देश की आबादी 130 करोड़ है तो उसका
सारा श्रेय जनसंघ जैसी पार्टी को जाता है।
1970
के परिवार नियोजन कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया होता तो आज हमारी आबादी 100 करोड़ से कम होती। हर परिवार के पास अपना घर होता, हर आदमी के पास नौकरी होती और कोई बेकार न होता। 30 करोड़ उपभोक्ता कम
होते तो हमारा एक्सपोर्ट आज का दुगुना होता. परंतु जनसंघ की राजनीति में हमें पीछे
धकेल दिया।
स्वर्गीय
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में जब राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर लाने की
बात की तो, अटल बिहारी बाजपेई सहित BJP के सारे नेता संसद पर बैलगाड़ी मोर्चा ले कर गए। पूरे देश में संसद से
सड़क तक उसका विरोध किया गया।
तत्कालीन
प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सैम पिट्रोदा टेलीकम्यूनिकेशन क्रांति की बातें कर
रहे थे। सैम पित्रोदा ने कहा कि अगर भारत
सरकार उन्हें सहयोग दें तो वह कुछ ही वर्षों में भारत के गांव के एक-एक पेड़ पर
टेलीफोन टांग देंगे। उस समय आडवाणी जी
सहित सारे विपक्ष के नेताओं ने न केवल उनकी योजनाओं का विरोध किया बल्कि सैम
पित्रोदा का जगह -जगह मजाक उड़ाया।
1989
के आम चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद देश में कंप्यूटर क्रांति और
टेलीकम्यूनिकेशन क्रांति की योजनाएं धरी की धरी रह गई और चीन आदि देश हम से काफी
आगे निकल गए।
बाद
में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री काल में पुनः कांग्रेस ने देश में
कंप्यूटराइजेशन और टेली कम्युनिकेशन के क्षेत्र में तेजी से काम किया. परंतु तब तक
हम अन्य देशों से काफी पिछड़ चुके थे।
बाद
में 1998- 99 में BJP के
नेताओं की ट्यूबलाइट जली और प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी बाजपेई और प्रमोद
महाजन जैसे नेताओं ने कंप्यूटराइजेशन और टेलीकम्यूनिकेशन के क्षेत्र में किए गए
कांग्रेस के काम की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
वर्तमान
में देखें तो 2004 से 2014 तक एफडीआई, मनरेगा, जीएसटी, आधार जैसी योजनाओं का लगातार विरोध करने
के बाद 2014 में प्रधानमंत्री बनने पर मोदी जी की ट्यूबलाइट अचानक जल जाती है और
वह इन्हीं योजनाओं के प्रशंसा करने लगते हैं।
वित्त
मंत्री जेटली जी संसद में स्वयं कबूल करते हैं कि जीएसटी नहीं लागू होने की वजह से
देश को लगभग ढाई लाख करोड़ प्रतिवर्ष का नुकसान हुआ, यानी भारतीय जनता पार्टी के विरोध की वजह से देश को लगभग 20 लाख करोड
रुपए का नुकसान उठाना पड़ा।
जो
मोदी जी अपने मुख्यमंत्री काल में आधार कार्ड का लगातार विरोध कर रहे थे वह आज देश
की सारी योजनाओं को आधार से जोड़ने में लगे हैं।
वर्ष
2005 में डॉ मनमोहन सिंह के कोयला खानों के नीलामी द्वारा आवंटन का विरोध करने
वाले बीजेपी नेता सत्ता में आते ही कोयला खानों की नीलामी करते हैं।
यह
तमाम बातें बताती हैं और साबित करती हैं कि बीजेपी नेताओं में दूर दृष्टि का
लगातार अभाव रहा है।
उन्हें
बातें 10 से 15 साल बाद समझ में आती है, या आम आदमी की भाषा में कहें तो उनकी ट्यूबलाइट देर से जलती है।
धरा पर
अगर स्वर्ग है तो यहीं है"
यह सच है कि महात्मा गांधी की दूरदर्शिता और
अंग्रेजो के मनोविज्ञान की समझ ने हमें बहुत कम संघर्ष और बलिदान के बावजूद आजादी
दिला दी थी।
मैथिलीशरण
गुप्त ने लिखा था,
"
जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है
वह नर
नहीं, है पशु निरा और मृतक के समान है"
स्वाभिमान
और देश के प्रति अभिमान की यही कमी हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी से जर्मनी के 2015
दौरे में यह कहलवा देती है की,
"
एक समय था जब लोग कहते थे पता नहीं क्या पाप किया था जो हिंदुस्तान में पैदा हो
गए"
चीन दौरे
पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा की, “ पहले भारत की पहचान Scam India की थी.”
ऐसे
वक्तव्य यह साबित करते हैं कि हम अपने देश से कितना प्यार करते हैं। इन प्रवृतियों
ने हमेशा देश को कमजोर किया है।
2015-
16 में भारत के रक्षा मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर जी ने यह कह कर देश पर कुर्बान हुए
उन हजारों सैनिकों का अपमान किया जिन्होंने 1947-48, 1962,1971, और
करगिल के युद्ध में वीरता की मिसाल कायम की कि "हमारे यहां आने के पहले सेना
कमजोर थी उसमें वह जज्बा नहीं था जो अब है"
यही
वजह है कि लौह पुरुष सरदार पटेल की मूर्ति चीन में बनी है, भारतीय प्रधानमंत्री बिन बुलाए बिरयानी
खाने पाकिस्तान चले जा रहे हैं, चीन के
राष्ट्राध्यक्ष को आप झूला झुलाते रहते हैं और डोकलाम में उनकी फौजें घुस आती हैं।
हमें भारतीय
होने पर गर्व है-
हमें
गर्व होना चाहिए कि इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत 1974 में पोखरण बम विस्फोट
करके विश्व की प्रथम पांच परमाणु शक्तियों में शामिल हो गया।
हमें
गर्व होना चाहिए की अपना सैटेलाइट अंतरिक्ष में स्वयं छोड़ने की क्षमता रखने वाले
हम विश्व के पहले 4 देशों में से एक हैं।
हमें
गर्व होना चाहिए की डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल में 'मंगलयान' का प्रक्षेपण किया।
हमें
गर्व होना चाहिए कि पृथ्वी,अग्नि,नाग और त्रिशूल जैसी मिसाइलें हम स्वयं बनाते हैं।
हमें
गर्व होना चाहिए कि अर्जुन टैंक, तेजस विमान, धनुष तोप, हेलीकाप्टर,विमानवाहक
जहाज, परमाणु पनडुब्बी आदि हम स्वयं बनाते हैं।
हमें
गर्व होना चाहिए कि आज विश्व में सबसे ज्यादा सोने का भंडार हमारे पास है।
हमें
गर्व होना चाहिए कि विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में आज हम विश्व के प्रथम 6
देशों में एक है।
हमें
गर्व होना चाहिए कि हम उस देश में पैदा हुए हैं जिस देश में राम और कृष्ण अवतरित
हुए,
जिस
देश में महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर ने जन्म लिया, जिस देश ने महात्मा गांधी को जन्म
दिया।
“ यही
है मेरा देश मुझको यकीन है
धरा पर अगर स्वर्ग है तो यहीं है”
आपका,
ओमप्रकाश
‘नमन’ उर्फ़ मुन्ना पाण्डेय
कल्याण
मो-
९८२०७८७०३४/ ८०८०८८८९८८
e mail- namanom1960@gmail.com
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