Thursday 1 November 2018

अयोध्या राम जन्मभूमि का सच

अयोध्या राम जन्मभूमि का सच--
स्व. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में केंद्र सरकार के प्रयत्नों और अदालत की आज्ञा से राम मंदिर का ताला खुला और 24 घंटे रामलला की पूजा अर्चना शुरू गई.
अगला इलेक्शन राजीव गांधी हार गए और भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थित वी.पी. सिंह की सरकार बनी.
वी.पी.सिंह और बीजेपी ने राम मंदिर बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए.
बाद में पुनः 1991 में कांग्रेस सत्ता में आई और नरसिम्हाराव देश के प्रधानमंत्री बने. पुन: संघ परिवार एवं बीजेपी के नेताओं का घृणित चेहरा सामने आया. पूरे देश में हिंदू मुसलमानों के बीच धार्मिक विद्वेष फैलाने के लिए 6 दिसंबर 1992 को संघ परिवार ने राम का घर गिरा दिया और राम लला को बनवास देने का पाप किया.
राम लला पिछले 27 साल से बनवास झेल रहे हैं.
यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा की मंदिर का अर्थ होता है घर .
जहां राम लला की मूर्ति विराजित थी , जहां उनकी पूजा अर्चना शुरू थी वह राम का मंदिर ही हो सकता है. देश भर से किसी मुसलमान ने राम लला की पूजा-अर्चना का विरोध नहीं किया था.
उसके तुरंत बाद नरसिम्हा राव सरकार ने 1993 में अध्यादेश लाया और 7 जनवरी 1993 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इस अध्यादेश को मंजूरी दी.
बाद में गृह मंत्री एस.बी. चव्हाण ने इसे लोकसभा के पटल पर रखा और लोकसभा ने इसे पारित किया.
इसे अयोध्या अधिनियम कहा जाता है.
नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन के साथ साथ उसके चारों तरफ की 60.70 एकड़ भूमि अधिग्रहित की. कांग्रेस सरकार की योजना इस 64 एकड़ जमीन पर राम मंदिर, मस्जिद , लाइब्रेरी और राम का म्यूजियम बनाने की थी.
बीजेपी ने अयोध्या अधिनियम का पुरजोर विरोध किया था. बीजेपी के उपाध्यक्ष एस.एस. भंडारी ने इस कानून को पक्षपातपूर्ण, तुच्छ और प्रतिकूल बताया था.
विभिन्न मुस्लिम संगठनों भी इस कानून का विरोध किया था.
भारतीय जनता पार्टी के विरोध और दबाव के कारण नरसिम्हा राव ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस विषय में राय मांगी थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से इनकार कर दिया था.
कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या इस जगह पर कोई मंदिर था? परंतु 5 जजों की पीठ जिसमें एम एन वेंकटचलैया, जेएस वर्मा ,जी एन रे, ए एम अहमदी और एसपी भरुचा शामिल थे इस पर विचार करने के बाद भी, इस बारे में अपनी कोई राय नहीं दी.
भारतीय जनता पार्टी और मुस्लिम संगठनों द्वारा अयोध्या अधिनियम का पुरजोर विरोध करने के कारण राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका.
इसके लगभग 16 साल बाद 10 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया. एक हिस्सा जहां रामलला की मूर्ति है, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को देने और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिए जाने का फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया.
इस फैसले के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसकी सुनवाई अभी तक चल रही है.
अगर 1993 में भारतीय जनता पार्टी ने अयोध्या अधिनियम का विरोध नहीं किया होता तो शायद अब तक अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बन गया होता.
राम जन्म भूमि स्थल पर मंदिर का निर्माण हो और उसके साथ-साथ वहां राम का विश्वस्तरीय म्यूज़ियम और पुस्तकालय बनाया जाए इसलिए कांग्रेस सरकार ने राम जन्म भूमि स्थल से सटी लगभग 61 एकड़ जमीन का अधिग्रहण अयोध्या में किया था.
संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी लगातार नफरत की राजनीति करती आ रही है. भारत के नौजवानों को चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान यह तय करना है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नफरत की विचारधारा पर चलना है
या
सकारात्मक सोच के साथ अयोध्या में राम मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण करके भाईचारे की मिसाल कायम करना है और देश में रामराज्य लाना है.
नमन

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