Monday 15 October 2018


धीर वीर गंभीर सब बैठे हैं चुपचाप 
कायरता करती रही चारों तरफ प्रलाप। 

मेरे कुछ विद्वान मित्र सावरकर का नाम भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथ लिख देते हैं. ऐसा करना सरदार भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों का अपमान करना है. 
सावरकर एक कायर क्रांतिकारी रहे जिन्होंने अपनी जान बचाने के लिए लगभग 10 बार अंग्रेजों से माफी मांगी और 1925 से 1947 तक अंग्रेजों की पेंशन पर पले.
एक तरफ जहाँ सावरकर अंग्रेज़ों को माफ़ीनामें  लिख रहे थे, वहीँ दूसरी तरफ भगत सिंह अंग्रेज़ों से कह रहे थे की उन्हें सशस्त्र क्रांति के लिए गोली मार दी जाये. 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार यह कु-प्रचार करता रहा है की आजादी महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन की वजह से नहीं मिली बल्कि सिर्फ सशस्त्र क्रांतिकारियों के वजह से मिली.
सशस्त्र क्रांतिकारियों को पूरी विनम्रता से प्रणाम करते हुए यह सत्य बताना जरूरी है कि हमारे सशस्त्र क्रांतिकारियों ने जितनी शहादत दी हैं उससे हजार गुना ज्यादा शहादत हमारे गांधीवादी अहिंसा वादी क्रांतिकारियों ने दी है.
सशस्त्र क्रांतिकारियों के जितने नाम आप पूरे देश में पाएंगे उससे ज्यादा अहिंसावादी क्रांतिकारियों के नाम आपको देश के हर जिले में मिल जाएंगे.
सशस्त्र क्रांतिकारियों ने भी आजादी के लिए ही हथियार उठाए और अहिंसक स्वतंत्रता सेनानियों ने भी आजादी के लिए ही फांसी की रस्सी चूमी, अंडमान निकोबार जैसी जेलों में रहे ,लाठियां -गोलियां खाई, शहादत दी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जब अहिंसा वादी स्वतंत्र सेनानियों को कायर कहता है तो वह उनका अपमान कर रहा होता है.
जिस संगठन ने अंग्रेजो के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया, अंग्रेजों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई, अंग्रेजों पर एक पत्थर तक नहीं फेंका, उस कायर और नपुंसक संगठन को कोई हक नहीं बनता कि वह शहीदों को गाली दें.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता सशस्त्र क्रांतिकारियों और असहयोग आंदोलन के अहिंसक क्रांतिकारियों को बांट देना चाहते हैं , जबकि ऐसा नहीं है.
चंद्रशेखर आजाद ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेते हुए कोड़े खाए , भगत सिंह ने लाला लाजपत राय के साथ अहिंसक प्रदर्शन में भाग लिया और लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए बंदूक उठाई, बाबू सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष रहे , कांग्रेस में रहे और जब अंग्रेजों ने उन्हें घर में नजरबंद रखा तो वे देश से भागकर यूरोप चले गए और वहां से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए महात्मा गांधी को ही अपना नेता माना और आजाद हिंद फौज को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत की धरती पर पैर रखते ही आजाद हिंद फौज के कमांडर इन चीफ महात्मा गांधी होंगे , सुभाष चंद्र बोस नहीं.
आज की नौजवान पीढ़ी से विनती है की वह कृपया भगत सिंह द्वारा लिखा गया साहित्य पढ़ें, बाबू सुभाष चंद्र बोस की जीवनी ढंग से पढ़ें और उन्होंने कब क्या वक्तव्य दिए हैं उनका अध्ययन करें, चंद्रशेखर आजाद के विषय में और जानकारी प्राप्त करें और यह देखें कि चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों को उनकी क्रांति का दीपक जलाये रखने के लिए धन कौन देता था?
आजाद हिंद फौज के अफसरों और सिपाहियों को छुड़ाने के लिए मुकदमा किसने लड़ा, भगत सिंह और उनके साथियों का मुकदमा किसने लड़ा, किसने वायसराय से लेकर लंदन तक उन्हें फांसी ना दिए जाने की शिफारस की?
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सावरकर और नाथूराम गोडसे जैसे लोग तब कहां थे ? इन कायरों को किसने मना किया था कि वह आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का मुकदमा न लडें या भगत सिंह और उनके साथियों का मुकदमा न लड़े.
अहिंसक आंदोलन और सशस्त्र क्रांति दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू थे.
सावरकर, नाथूराम गोडसे, आरएसएस , डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे कायर जब स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध कर रहे थे, 'भारत छोड़ो आंदोलन'  का विरोध कर रहे थे , आजाद हिंद फौज के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय युवकों को ब्रिटिश फौज में भर्ती करा रहे थे रहे थे , धर्म के आधार पर देश के विभाजन की बात कर रहे थे, तब यह सशस्त्र क्रांतिकारी और अहिंसावादी स्वतंत्रतासेनानी स्वतंत्रता आंदोलन की अग्नि को प्रज्वलित रखने के लिए अपनी आहुतियां दे रहे थे.
मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मित्रों से पूछना चाहूंगा की डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता को 'सर' और उनकी मां को 'लेडी' की उपाधि क्यों दी गई ? उन्होंने ब्रिटिश सरकार की ऐसी क्या सेवा की थी कि उनके पिता और मां दोनों को उपाधियां मिली?
मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अपने मित्रों से पूछना चाहूंगा की अंग्रेजों ने 1925 से 1947 तक सावरकर को प्रतिमाह पेंशन क्यों दी?
सावरकर ऐसा क्या काम कर रहे थे जिसकी वजह से अंग्रेजों उन्हें  लगातार पेंशन दे रहे थे? अंडमान निकोबार जेल से सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने उनकी किन सेवाओं के लिए रिहा किया था ?
देश की जनता के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा देने वाले नेहरू गांधी परिवार पर प्रतिदिन झूठे आरोप लगाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मेरे मित्र देश का विभाजन करवाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के परिवार पर 1947 से लेकर 2018 तक एक शब्द क्यों नहीं बोले. मोहम्मद अली जिन्ना का पूरा परिवार स्वतंत्रता के बाद भी मुंबई में रहता है और कई हजार करोड़ की संपत्ति का मालिक है. 

क्या मेरे आर एस एस के मित्र मोहम्मद अली जिन्ना के परिवार की चाटुकारिता से सहमत हैं?
आज,
ए कैसा मुल्क में मंजर दिखाई देता है
हर एक हाथ में खंजर दिखाई देता है. 
अतः सावरकर का नाम सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, अशफाकुल्ला खान, चंद्रशेखर आज़ाद के साथ लिखना बंद होना चाहिए. जिन आरएसएस के लोगों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ एक पत्थर तक नहीं फेंका, न तो सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक आंदोलन, भारत छोडो आंदोलन आदि में भाग लिया, उल्टा इनका विरोध करते रहे, ऐसे लोगों का महिमा मंडन नहीं होना चाहिए. 


No comments:

Post a Comment