Monday 15 October 2018

----   चौकीदार सोया है   --- 

हर तरफ नफरत ही नफरत हर तरफ चिनगारियाँ 
जिस तरफ देखो उधर ही लुट रही हैं नारियाँ ।
आबरू खतरे में है और जान खतरे में यहाँ 
सो रहा है वो थी जिस पर सारी जिम्मेदारियाँ ।  

नफरत की राजनीती ने हमें उस मोड़ पर ला दिया है जहाँ हमारा अपना दाहिना हाथ बाए हाथ पर भरोसा नहीं कर पा रहा है। पिछले तीन -चार दशकों से सत्ता की लालच में देश की नसों में नफरत का इतना जहर भरा गया है की हर आदमी दूसरे को अपना दुश्मन समझने लगा है।

नाग-पुर से सुनुयोजित ढंग से घृणा और नफरत का जो विष पूरे हिन्दुस्तान में पिछले कई दशकों से फैलाया गया है उसका असर दिखाई पड़ने लगा है। हिन्दू विरुद्ध मुसलमान, सवर्ण विरुद्ध दलित, गुजरात विरुद्ध उत्तर भारत,  ओबीसी विरुद्ध सवर्ण, स्त्री विरुद्ध पुरुष,  पूरे देश को बाँट कर एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर देने में यह संगठन सफल रहा है।  

१२ अक्टूबर को सुभाषचंद्र मेडिकल कॉलेज, जबलपुर में दो सवर्ण महिलाओं का इलाज़ कर रहे डॉ. से महिला के संबंधियों ने उसकी जाति पूँछी और जब उसने कहा की वह पिछड़ी जाती का आदिवासी है तो महिला के संबंधियों ने डॉ को इतना पीटा की वह डॉ ICU में भर्ती है।  

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में दलितों ने ब्राह्मणों के घर में घुस कर उन्हें और उनकी महिलाओं को इतना पीटा की कई लोग अस्पताल में भर्ती हैं।  

US , अटलांटा में वैज्ञानिक करण जानी को यह कह कर गरबा में भाग लेने से रोका गया की वे पहले खुद के हिन्दू होने का सबूत दें तभी उन्हें नवरात्री के गरबा में भाग लेने दिया जायेगा।

खेरागढ़(मध्य प्रदेश) , के सरेंधी में एक ४० वर्षीय किसान को २.५ लाख के लोन की वसूली के लिए तहसील कार्यालय के कर्मचारियों ने पूरे गांव के सामने इतना बेइज़्ज़त किया की उसने फांसी लगा कर आत्म हत्या कर ली।  

हिमांचल प्रदेश में धर्मशाला डिग्री कॉलेज में ४ सीनियर छात्रों ने एक प्रथम वर्ष की छात्रा के साथ दुष्कर्म करके उसे मरने के  लिए सड़क के किनारे फेंक दिया। उस छात्रा ने छेड़छाड़ करने के लिए उन चारों छात्रों के खिलाफ प्रिंसिपल से शिकायत की थी और उसी का बदला लेने के लिए यह दुष्कर्म किया गया। 

परसों गुड़गांव  में एक जज की बीबी और बेटे को उसके अपने गार्ड ने गोली मार दी। 

इस तरह की खबरे बताती हैं की हमारा समाज किस अराजकता की तरफ बढ़ रहा है।  यह समाज में एक दूसरे के प्रति पनप रहे अविश्वास, असहिष्णुता , घृणा और गुस्से का परिणाम है। अगर यह गुस्सा इसी तरह बढ़ता रहा तो यह देश और समाज के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होगा। इन प्रवृत्तियों को रोकने की ज़िम्मेदारी सरकारों की है।  

समाज के विभिन्न घटकों में आपस में सद्भाव का निर्माण देश की एकता और अखंडता के लिए उतनी ही जरूरी है जितना सांस के लिए ऑक्सीजन। अगर शासक ही अपने चुनावी स्वार्थ के लिए जनता को विभाजित करने लगे तो फिर देश को पतन के गर्त में जाने से कोई रोक नहीं सकता। 

जागो चौकीदार -जागो !





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