Wednesday 7 March 2018

झूठ पुराण

भारतीय संविधान की अलिखित, असंकलित, अस्पष्ट धारा में सभी जन-प्रतिनिधियों को झूठ बोलने का महान अधिकार दिया गया है. नेताओं को संसद से लेकर सडक तक झूठ ही झूठ बोलने की परम छूट है.
झूठ के इसी उर्जा स्रोत पर चढ़ कर, झूठ का मनन और विष वमन करते हुए नेतागण सत्ता सुंदरी का वरण करते हैं.
सत्य शर्मिंदा है और छिप कर आत्महत्या की तैयारी कर रहा है.

सीमा पर शहीद हो रहे जवानों का सच..
आत्म हत्या कर रहे किसानो का सच..
भूखे मजदूरों का सच..
बेरोजगार नौजवानों का सच..
बलात्कार पीड़ित महिलाओं का सच ..
घर में सताई और जलाई जा रही बहुओं का सच ..
अपने ही वरिष्ठो द्वारा सताए जा रहे सिपाही का सच ..
ऐसे कितने ही सच प्रति दिन आत्म हत्या कर रहे हैं...
जो नहीं मरना चाहता, ऐसे सच का गला व्यवस्था घोंट देती है.

झूठ संविधान द्वारा आरक्षित, सुरक्षित, संरक्षित और प्रतिस्थापित है.
झूठ और अफवाहों पर ही आधुनिक भारत का अस्तित्व टिका हुआ है, वरना अधिकांश नेता जो आज अभूतपूर्व कहे जाते हैं कब के भूतपूर्व हो गए होते.
जो जितना सफाई से जितना जादा झूठ बोले उसका उतना विकसित होना तय है. हम सबको झूठ सुनने की आदत पड़ गई है.

सच बोले तो लात मिलेगी
झूठे को सौगात मिलेगी
चर्चा अगर सत्य की की तो
गोली और हवालात मिलेगी.. . .

सत्य लोगों के कान में गर्म शीशे की तरह उतरता है.
लोग उसे सहन नहीं कर पते और विक्षिप्त हो जाते हैं.

झूठ मधुर है, मनोरम है,
तुम्हारा है, मेरा है,
घरवालों का है, रिश्तेदारों का है,
मित्रो का है, सहयोगियों का है.

अतः सर्वत्र व्याप्त है और सर्व प्रिय है.
बोलो, झूठ की जय हो !
सत्य का नाश हो !
प्राणियों में झूठ की भावना हो!
झूठ का विकास हो !
विश्व में सर्वत्र झूठ व्याप्त हो !

'नमन'

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