Monday, 10 July 2017

याद


याद इतना भी आना ठीक नहीं
बेवजह दिल जलाना ठीक नहीं.


अब तो बाहों में मेरी आ जाओ 
सब्र को आजमाना ठीक नहीं.


जब मोहब्बत करो तो खुलके करो

छिपके मिलना मिलाना ठीक नहीं.

और कितनी सजा दोगे हमको
रूठ कर यूं सताना ठीक नहीं.


अब यह दूरी सही नहीं जाती 

दूर रहकर रुलाना ठीक नहीं.
नमन


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उनकी आस्तीनों में सांप पलते हैं
वो खंजर छिपा के गले मिलते हैं.

ए कैसा वक़्त आ गया है की 

अपने अपनों का क़त्ल करते हैं.

कैसे भगवान् हैं वह जिनके भक्त 

फांसी लगा के मरते हैं.

लूट कर हमें  हमारे कारिंदे 

मेरी पैसों से मदद करते हैं.

रीढ़ में हड्डियाँ नहीं जिनके

वो जंगजू होने का दम भरते हैं.

जो जलते बुझते हैं जुगनुओंकी तरह 

वो सूरज होने की डींग मारते हैं . 

नमन

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