किसान और सरकार
मोदी जी की अनुभवहीनता और एकला चलो कार्यपद्धती के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं.
देवेगौडा के बाद मोदी जी देश के दूसरे सबसे कम अनुभवी प्रधानमंत्री हैं. राजीव गांधी में भी प्रशासनिक अनुभव की कमी थी पर उसे नरसिम्हाराव, प्रणव मुखर्जी, कमलापति त्रिपाठी, शंकर राव चव्हाण जैसे वरिष्ठ नेता पूरा कर देते थे.
मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनते ही लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी ,जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा जैसे वरिष्ठ सहयोगियो को किनारे कर दिया.
सारे निर्णय पीएमओ के अधिकारी लेते हैं और कैबिनेट में सिर्फ उस पर मुहर लगाई जाती है, जो एक गलत परंपरा है .
एक तरफ जहां कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि हर निर्णय के लिए कई कई मीटिंग में कई कई बार चर्चा के बाद और कई मामलों में तो तो महीनों विचार-विमर्श होने के बाद निर्णय लिए जाते थे ........
वही मोदी जी के कुछ वरिष्ठ आईएएस अधिकारी मोदी जी को एक प्रेजेंटेशन देते हैं और मोदी जी उनसे प्रभावित होकर बिना अपने दूसरे वरिष्ठ सहयोगियो को विश्वास में लिए निर्णय ले लेते हैं. जिनका दुष्परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है.
एक तरफ जहां कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि हर निर्णय के लिए कई कई मीटिंग में कई कई बार चर्चा के बाद और कई मामलों में तो तो महीनों विचार-विमर्श होने के बाद निर्णय लिए जाते थे ........
वही मोदी जी के कुछ वरिष्ठ आईएएस अधिकारी मोदी जी को एक प्रेजेंटेशन देते हैं और मोदी जी उनसे प्रभावित होकर बिना अपने दूसरे वरिष्ठ सहयोगियो को विश्वास में लिए निर्णय ले लेते हैं. जिनका दुष्परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है.
मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनते ही योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया. नाम बदलने के अलावा योजना आयोग के पूरे ढांचे में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं किया गया.
तो फिर नाम बदलने की इतनी क्या जल्दी थी कि कुर्सी पर बैठते ही नाम बदलो मोहिम शुरू करें.
तो फिर नाम बदलने की इतनी क्या जल्दी थी कि कुर्सी पर बैठते ही नाम बदलो मोहिम शुरू करें.
ऐसे ही नोटबंदी का निर्णय लिया गया.
नोट बंदी बुरी नहीं थी, इसके पहले की सरकारों ने भी कई कई बार नोटबंदी की.
पर जिस ढंग से उसको लागू किया गया उसने पूरे सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया .
अदूरदर्शिता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है जिसकी वजह से 60 दिनों में लगभग 60 बार सरकार को अपने नियम बदलने पड़े. यह स्वयं दिखाता है कि मोदी जी ने आनन-फानन में यह निर्णय लिया था.
नोटबंदी से न तो नक्सलवाद बंद हुआ ना आतंकवाद. ना तो कालाधन ही पकड़ा गया.
हद तो यह है कि सरकार आज तक नहीं बता पा रही है कि नोटबंदी के बाद कितने 500 और 1000 के नोट रिजर्व बैंक में वापस आए.
नोटबंदी की वजह से न केवल करोड़ों नौकरिया गई बल्कि सरकार को लाखों करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा वह अलग से.
बैंक की लाइन में कितने लोग मरे , कितनी शादियां रद्द हुई , कितने लोग पैसा ना दे पाने की वजह से बिना इलाज के मर गए, उनकी गणना होना अभी बाकी है.
नोट बंदी बुरी नहीं थी, इसके पहले की सरकारों ने भी कई कई बार नोटबंदी की.
पर जिस ढंग से उसको लागू किया गया उसने पूरे सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया .
अदूरदर्शिता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है जिसकी वजह से 60 दिनों में लगभग 60 बार सरकार को अपने नियम बदलने पड़े. यह स्वयं दिखाता है कि मोदी जी ने आनन-फानन में यह निर्णय लिया था.
नोटबंदी से न तो नक्सलवाद बंद हुआ ना आतंकवाद. ना तो कालाधन ही पकड़ा गया.
हद तो यह है कि सरकार आज तक नहीं बता पा रही है कि नोटबंदी के बाद कितने 500 और 1000 के नोट रिजर्व बैंक में वापस आए.
नोटबंदी की वजह से न केवल करोड़ों नौकरिया गई बल्कि सरकार को लाखों करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा वह अलग से.
बैंक की लाइन में कितने लोग मरे , कितनी शादियां रद्द हुई , कितने लोग पैसा ना दे पाने की वजह से बिना इलाज के मर गए, उनकी गणना होना अभी बाकी है.
मोदी जी की अदूरदर्शिता की वजह से कश्मीर में आतंकवाद ने पुन: सर उठा लिया है.
जिस आतंकवाद को कांग्रेस के अथक प्रयत्नों की वजह से घाटी के 4 जिलों तक सीमित कर दिया गया था वह पूरे जम्मू कश्मीर में फैल चुका है.
जिस आतंकवाद को कांग्रेस के अथक प्रयत्नों की वजह से घाटी के 4 जिलों तक सीमित कर दिया गया था वह पूरे जम्मू कश्मीर में फैल चुका है.
प्रधानमंत्री मोदी का बिन बुलाए बिरयानी और केक खाने पाकिस्तान चले जाना, विदेशों में गार्ड ऑफ ऑनर के समय राष्ट्रगीत चालू रहने पर भी मोदी जी का चल देना, कोड ऑफ कंडक्ट का पालन न करना, अपनी फोटो खिंचवाने के लिए दूसरों को बगल में कर देना जैसे अपने कार्यों के वजह से मोदी जी ने पूरे विश्व में भारतीय प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को कम किया है.
अभी 2 साल बाकी है . मोदी जी को चाहिए कि बीजेपी के अपने सभी वरिष्ठ सहयोगी राजनाथ सिंह ,मुरली मनोहर जोशी ,लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज ,वेंकैया नायडू आदि के साथ बैठकर चर्चा करके सरकार के आगे के फैसले लें ताकि उन्हें सब बाद में शर्मिंदा ना होना पड़े.
साथ ही जो गलत फैसले वे ले चुके हैं उन्हें वापस लेने में कोई बुराई नहीं है , इससे उनका बड़प्पन ही होगा.
पंडित नेहरू से प्रभावित होकर मोदी जी ने खुद को चौकीदार घोषित किया, पंडित नेहरू संसद को प्रजातंत्र का मंदिर कहते थे , उनसे प्रभावित होकर मोदी जी ने संसद की सीढ़ी पर माथा टेका. पंडित नेहरू रेडियो पर भारत की जनता को संबोधित करते थे , उनसे प्रभावित होकर मोदी जी ने प्रति माह भारत की जनता से मन की बात की.
अत: मोदी जी से विनम्र अनुरोध है कि पंडित नेहरू की एक और बात का अनुसरण करें.
पंडित नेहरु संसद में और संसद से बाहर विरोधी पक्ष के नेताओं को उनकी बात कहने का न केवल पूरा मौका देते थे बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करते थे कि वह अपनी बात करें.
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय.
आदरणीय मोदी जी अगर विपक्ष के नेताओं की बात सुनेंगे तो शायद अपनी कुछ कमियों का परिमार्जन कर पाएंगे.
पंडित नेहरु संसद में और संसद से बाहर विरोधी पक्ष के नेताओं को उनकी बात कहने का न केवल पूरा मौका देते थे बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करते थे कि वह अपनी बात करें.
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय.
आदरणीय मोदी जी अगर विपक्ष के नेताओं की बात सुनेंगे तो शायद अपनी कुछ कमियों का परिमार्जन कर पाएंगे.
आशा करता हूं कि इसके आगे प्रधानमंत्री जी सामूहिक नेतृत्व को स्थान देंगे और BJP के सारे नेता मिलकर देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने में मदद करेंगे.
नमन
नमन
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