Wednesday, 3 May 2017

वजह


यूँ बेवजह न प्यार से हमको पुकारिए
है प्यार अब गुनाह सियासत की नजर में. 

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हमने बरसों से मोहब्बत को खुदा माना है 
अपने महबूब की बातों को दुआ माना है.
इश्क मजहब है और ग़ज़लें ही भजन है मेरा
हमने दुनिया के रिवाजों को कहाँ माना है?

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मरने की मनाही है जीने भी नहीं देते
हाथों में जाम है पर पीने भी नहीं देते.
मैं जिसको चाहता हूँ जो है मेरा मुकद्दर
कैसे उसके ख्वाब देखूं सोने भी नहीं देते. 

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तमाम रात अंधेरे से जंग जारी थी
हर जुगनू की मर मिटने की तैयारी थी.
सुबह हुई तो जुगनुओं का कहीं पता न था 
सुबह की रात में सोए हुओं से यारी थी.


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दर्द हैं , आंसू हैं, गम है और तन्हाई है 
जिंदगी हमें ए किस मोड़ पर ले आई है.
मैं तेरे गम में शामिल तो नहीं हो सकता 
तेरे ग़म में मगर आंखें मेरी भर आई है.

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--खबरें रखैल है--
खबरें रखैल हैं
सत्ताधीशों की
पूंजी पतियों की 
भ्रष्ट अफसरों की...
रोज ब रोज
काला होता है
अखबारों का
मुख (पत्र )
बदनाम
बिकी हुई खबरें
फैलाती हैं सनसनी...
संपादक
बदनाम गली के बाहर
तैनात
वह पुलिसिया है
जो मजबूरी में
दूसरी तरफ देखते रहता है
आखिर उसका भी पेट है...
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
इस धंधे को
ले आया है
पांच सितारा
संस्कृति तक
वहां खबरें
चमकती हैं
मटकती हैं
बिकती हैं
उंचे भाव में
इज्जत से ....
'नमन'

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