Thursday 2 March 2017

सच के पत्थर


उसकी आँखें कमाल करती हैं 
कैसे कैसे सवाल करती है।  
उनमें मोहब्बत ही मोहब्बत है मगर 
मेरा जीना मुहाल करती हैं।
 

---- सच के पत्थर हमें मारो लहूलुहान करो
खुशबु फरेब के फूलों की हमें कबूल नहीं। 


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उनको आईना दिखाने की जुर्रत की है 
उसने सच बोल कर सत्ता से बगावत की है . 
उसको सूली पर चढ़ा दो या बिठा लो सर पर
मुल्क से उसने मोहब्बत की हिमायत की है. 


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लोक तंत्र में
चुनाव वह झुनझुना है
जिसे पकड़ा दिया गया है
जनता के हाथ में
ताकि वह
अपनी तकलीफें भूल कर
उसे बजाने मे मस्त रहे
और माई -बाप 
मालपुवा उड़ाने में 
व्यस्त रहें। 

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तेरी नजरों के एक इशारे पर
हमने बर्बाद कर लिया खुद को.


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तमाम रात रोशनी रही ख्यालों में ,
उसकी यादों ने हमें रात भर सोने न दिया। 


नमन

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