अमानुषिक वृत्तियों के
प्रबल वेग
संस्कारों के क्षय
और प्रेम के अधःपतन की
वीभत्स दास्तान हैं
बलात्कार
जिसे हमारे समय के माथे पर
चिपका दिया गया है
इश्तिहारों की तरह.
नमन
---------
खोद कर छोड़ दी गई
उपेक्षित सड़क सी
उदास जिंदगी
सड़क कूटते हुए
रोलर सी मदमस्त
सबको दबाती कुचलती
अफसरशाही
गिट्टी की तरह
चूर चूर होते
आम आदमी के सपने
ढल रही शाम
खेतों में जी तोड़ मेहनत के बाद
बिखर रहे कल को
मजबूती से अपनी मुट्ठी में दबाए
पगडंडियों से होकर
घर की तरफ लौटते हुए किसानों की
झुकी हुई कमर
और उतरे हुए चेहरे
धीरे-धीरे
चारों तरफ पसरती हुई खामोशी
पसीने से लथपथ
थक कर चूर
काम से लौटते हुए मजदूर की
निस्पृह भाव से
सबको निहारती आँखें
डबडबाई सी आंखों की तरह
झुग्गियों में टिमटिमाती हुई
रोशनी
खुली हुई आंखों से
अच्छे कल के
सपने देखता आदमी
यही है आज के
भारत की कहानी...
नमन
No comments:
Post a Comment