Wednesday, 7 December 2016

जानता हूँ


जानता हूँ 
चढा दिया जाऊंगा 
सूली पर
एक दिन
परंतु 
सत्य, प्रेम और उदारता
जैसे मानवीय गुण
नहीं छीन पाएंगे
वे मुझसे...
'नमन'

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अपने लहू से हमने लिखी हैं इबारतें 
लिपटी हुई हैं हर एक लफ्ज में मोहब्बतें। 
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खता गर की है तो सूली पे चढ़ा देना तुम
उसके पहले मेरी गलती तो बता देना तुम। 
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तड़प-तड़प के मरूँगा मुझे पता है ए
मेरी खता ए है की मैंने मोहब्बत की है। 
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बर्बाद मुझे मेरे दोस्तों ने किया है
इल्जाम दुश्मनों पर लगाता रहा हूँ मैं।  

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जब मेरे आँसू से पिघला नहीं वो पत्थर दिल
मेरी आँखों ने तबसे मुस्कराना सीख लिया। 'नमन'
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हमारी जमीन
टाटा, अडानी, अंबानी के लिए छीनी
सड़क, रेल और एअरपोर्ट
के लिए उजाड़े हमारे घर
अपने स्विमिंग पूलो़ के लिए
छीना हमारा पानी
मांगे हमसे
हमारे जवान बेटे
देश पर शहीद होने के लिए
दिया हमने
अपने पसीने से सींच कर
उगाया अन्न
तुम्हारा पेट भरने के लिए
रावण की औलाद तुम
लूटते रहे हमारी बहन बेटियों की इज्ज़त
और अब
हमारी अपनी
खून पसीने की गाढी कमाई के लिए
हम मर रहे हैं लाईनों में...
कहाँ हो विष्णु
कहाँ हो राम
कहाँ हो कृष्ण..
अगर तुमने आने में कर दी देर
तो हो जाएगा अनर्थ
नहीं बचेगा यहाँ कुछ
ऩ सत्ता, न शासक, न देश...
'नमन'


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