Monday 22 August 2016

अपना बोझ




ये अपना बोझ अपने सिर पे ले के चला है
चाहे गरीब है मगर इंसान भला है.


आँखों में इसके आंसू हैं दिल में तूफान है
जो हारता नहीं वो मेरा हिंदुस्तान है.


पत्थर का कलेजा है ज़ख्म ज़ख्म है सीना
पर जिद है उसकी है यहीं जीना-यहीं मरना.

बेशर्म है सरकार और बेशर्म व्यवस्था
मेरे हिन्द की ये हो रही है कैसी अवस्था?

जी में ये आता है की ये तंत्र जला दूँ
जो है निकम्मा ऐसा यह गणतंत्र जला दूँ.

इन भ्रष्ट अफसरों का बोझ अब न उठाओ
यदि हो सके तो इनको इस धरती से उठाओ.
'नमन'

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