-- भरत का खुला पत्र --
हे प्रधानमंत्री
मुख्यमंत्री
अर्थ और अनर्थ मंत्री
विपक्ष के नेताओं
मंत्रियों और संत्रियों
जय हिन्द !
मैं भरत
बकलम खुद
लिख रहा हूँ
यह खुली चिठ्ठी
स्वतंत्र भारत के
तमाम नपुंसक -नाकारा- नापाक
जन प्रतिनिधियों के नाम....
गरीब माँ
और शराबी पिता की
एक मात्र संतान मैं
पूरा का पूरा भारतीय हूँ
यह मैं इसलिए बता रहा हूँ
की कहीं कल मुझे
पाकिस्तानी -अफगानिस्तानी
बांग्ला देशी या नेपाली कह कर
प्रताड़ित न किया जाये
राजनीती न की जाये
मेरी राष्ट्रीयता के नाम पर....
मैं नहीं चाहता
कल कोई हिंदूवादी
मुस्लिमवादी
दलित या ईसाई संगठन
मेरे लिए आवाज़ उठायें
आप मुझे
मनुष्य ही रहने दें
भारतीय ही रहने दें.....
मैं अपने
राज्य, भाषा, जाति या धर्म का
उल्लेख नहीं कर रहा हूँ
नहीं चाहिए मुझे
किसी धार्मिक संगठन
या
किसी आरक्षण का लाभ
नहीं है मेरे पास
गरीबी की रेखा के नीचे का
तहसीलदार से ख़रीदा गया
कोई प्रमाणपत्र। .....
मेरी टीबी ग्रस्त माँ
और सरकारी ठेके की
दारू पी कर मर गए पिता की
एक मात्र औलाद मैं
आरोप लगाता हूँ
तुम सब पर
तुम हो
मेरे पिता के हत्यारे
कुछ हज़ार करोड़ के
आबकारी कर के लिए
मेरे जैसे लाखों बच्चों को
अनाथ बनाते हो तुम ....
तुम्हारी धन पिपाशा
छीन लेती है प्रतिवर्ष
मुझ जैसे
हज़ारों -लाखों बच्चों से
पिता का स्नेह
सर की छत
पेट की रोटी
तन का कपडा
हमारे सपने
हमारा सर्वस्व ......
तुम पर केस करने तो क्या
दो जून की रोटी के लिए भी
पैसे नहीं हैं मेरे पास
वर्ना तुम सबको दिलवाता फांसी
अदालत से
तुम सब हो
सीरियल किलर
सभ्य समाज में
रहने योग्य नहीं हो तुम...... ! 'नमन '
हे प्रधानमंत्री
मुख्यमंत्री
अर्थ और अनर्थ मंत्री
विपक्ष के नेताओं
मंत्रियों और संत्रियों
जय हिन्द !
मैं भरत
बकलम खुद
लिख रहा हूँ
यह खुली चिठ्ठी
स्वतंत्र भारत के
तमाम नपुंसक -नाकारा- नापाक
जन प्रतिनिधियों के नाम....
गरीब माँ
और शराबी पिता की
एक मात्र संतान मैं
पूरा का पूरा भारतीय हूँ
यह मैं इसलिए बता रहा हूँ
की कहीं कल मुझे
पाकिस्तानी -अफगानिस्तानी
बांग्ला देशी या नेपाली कह कर
प्रताड़ित न किया जाये
राजनीती न की जाये
मेरी राष्ट्रीयता के नाम पर....
मैं नहीं चाहता
कल कोई हिंदूवादी
मुस्लिमवादी
दलित या ईसाई संगठन
मेरे लिए आवाज़ उठायें
आप मुझे
मनुष्य ही रहने दें
भारतीय ही रहने दें.....
मैं अपने
राज्य, भाषा, जाति या धर्म का
उल्लेख नहीं कर रहा हूँ
नहीं चाहिए मुझे
किसी धार्मिक संगठन
या
किसी आरक्षण का लाभ
नहीं है मेरे पास
गरीबी की रेखा के नीचे का
तहसीलदार से ख़रीदा गया
कोई प्रमाणपत्र। .....
मेरी टीबी ग्रस्त माँ
और सरकारी ठेके की
दारू पी कर मर गए पिता की
एक मात्र औलाद मैं
आरोप लगाता हूँ
तुम सब पर
तुम हो
मेरे पिता के हत्यारे
कुछ हज़ार करोड़ के
आबकारी कर के लिए
मेरे जैसे लाखों बच्चों को
अनाथ बनाते हो तुम ....
तुम्हारी धन पिपाशा
छीन लेती है प्रतिवर्ष
मुझ जैसे
हज़ारों -लाखों बच्चों से
पिता का स्नेह
सर की छत
पेट की रोटी
तन का कपडा
हमारे सपने
हमारा सर्वस्व ......
तुम पर केस करने तो क्या
दो जून की रोटी के लिए भी
पैसे नहीं हैं मेरे पास
वर्ना तुम सबको दिलवाता फांसी
अदालत से
तुम सब हो
सीरियल किलर
सभ्य समाज में
रहने योग्य नहीं हो तुम...... ! 'नमन '
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