इधर कई दिनों से तबियत कुछ
नरम चल रही है। डॉ दिल से लेकर पेट तक में झांकने की कोशिश करते रहे की गड़बड़
कहाँ है पर कुछ मिला नहीं। मैंने सोचा क्यों न मैं भी कोशिश करूँ और मैंने दिल के
अन्दर दूर तक नजर दौडाई।
देखा अन्दर खूब रोशनी है, सितारे झिलमिला रहे हैं। खूब चाक चौबंद है मेरा दिल। अन्दर
दोस्तों की बैठक है, दुश्मनों
का ज़मघट है, प्रेमिकाएं
हैं, आकांक्षाएं
हैं, बीबी का
शासन है, बच्चों
का अनुशासन है।
एक मेला सा लगा है दिल में। एक तरफ भजन तो दूसरी तरफ भोजन का आयोजन
है। एक तरफ नई कल्पनाएँ हैं तो दूसरी तरफ अधूरी कामनाएं हैं जो एक तरफ
बैठी सिसक रही हैं।
फिर थोडा दूर नज़र दौडाई तो दूर कोने में एक कब्रगाह नज़र आई। और ध्यान से देखा तो पता चला वह प्रेमिकाओं की कब्रगाह है। अब यह मत
पूंछियेगा की किसकी प्रेमिकाएं?
अरे भाई जिंदा या मुर्दा, मेरे दिल में बसी हैं तो मेरी ही होंगी, पडोसियों की प्रेमिकाओं का
मेरे दिल में क्या काम ?
मैंने सोचा की लगे हाथ उनका हाल चाल भी लेता चलूँ। सबसे पहले जिस कब्र पर नज़र पड़ी वह कब्र लगभग ४० साल पहले मेरे पहले प्रेम की साक्षी उस लड़की की यादों की है
जिसकी एक झलक पाने के लिए मैं उसके घर के सामने के विशाल वट वृक्ष के चारों तरफ
सायकल सीखने के बहाने चक्कर लगाया करता था। उसकी मुस्कराहट ने कई बार मेरे
पैर के घुटनों और हाथ की केहुनी को चोट पहुंचाई। उसे ताकने के चक्कर में मैं सायकल से
गिरा और वह खिलखिलाई। दो चोटियों वाली वह लड़की स्कूल ड्रेस में परी सी लगती थी। दुनियां की सबसे खूबसूरत लड़की। उसकी आँखों ने मुझे सपना देखना सिखाया। उसके
प्रेम की दीवानगी ने मुझे कवि बनाया। वह १२वी कक्षा में मुझे कम नंबर मिलने का
कारण भी बनी। तब वह पढाई से जादा महत्वपूर्ण लगती थी। उसकी शरारती आँखों ने मुझ जैसे सीधे लड़के को आवारगी सिखाई।
फिर जैसे ही मैं आगे की पढाई के लिए विश्वविद्यालय गया, उसके माँ बाप ने उसकी शादी
कर दी और वह रोती बिलखती पिय के देश जा पहुंची। उसकी यादें आज भी मेरे दिल
के इस कोने में दफ़न हैं। मैंने अपने आंसुओं से उसकी कब्र पर ज़मी मिटटी को साफ़ किया, उसकी यादों को सहलाया और
उसके पास ही ठहर गया।
तभी मेरी निगाह बगल वाली कब्र पर पड़ी। कब्र पर लताएँ उग आयी थी। तब याद आया ये तो घुंघुराले बाल वाली 'अनु जी ' की यादों
की कब्र है। बड़ी दी की मित्र थी वह। यूनिवर्सिटी में मुझसे कुछ साल
सीनियर। उन्हें देखने के बाद ही पता चला की कोई लड़की इतनी सुन्दर भी हो
सकती है। मैं कब उनके स्वप्न देखने लगा मुझे पता ही न चला। कालिदास के
मेघदूत की नायिका के सामान सर्वांग सुन्दर। मेरे जैसे कितने ही नवयुवकों के
आकर्षण का केंद्र थी वह। उसके इंतज़ार में मैं रोज संस्कृत विभाग के सामने
धूनी रमाता था। डिपार्टमेंट के सामने जब वे सायकल रिक्शा से उतरती तो कितने ही
जवान दिल जोर से धड़कने लगते।
कभी कभार जब वे मुझे देख कर मुस्करा देती थी तो मैं धन्य हो
जाता था। उनकी वही मुस्कराती छबि अपने ह्रदय में बसाये मैं पूरे दिन
विश्वविद्यालय परिसर में घूमता रहता। पागल मन गीत गुनगुनाता, गज़लें लिखता, वे भी क्या दिन थे। रेखा, हेमामालिनी, राखी आदि हीरोइने उनके पैर
की जूतियाँ लगती। सर्दियों में अलग अलग रंगों के स्वेटर, लाल इमली की ऊनी शाल, कंधे पर लहराती जुल्फें , अलग अलग रंग के बेलबाटम, मैचिंग जूतियाँ। गर्मियों
में उसका शिफोन की साडी पहनकर आना, कोहनी तक का ब्लाउज,
गालों को चूमती बड़ी बड़ी बालियाँ और ऊँची हील की सैंडल।
फिर एक दिन दीदी से ही पता चला की वे आगे की पढाई के लिए यूएस जा रही
हैं। दीदी की इस सूचना के बाद कई दिनों तक मैं सो नहीं पाया और एक दिन वे
मेरे अरमानों को क़त्ल करके मुझसे हजारों मील दूर उड़ गयी। अब उनकी यादों के कब्र पर
बैठा मैं सोच रहा हूँ कि बिना किसी से बातचीत किये, बिना किसीके साथ समय बिताये, बिना किसी को जाने कैसे कोई
किसी से इतना प्यार कर सकता है ?
मैंने शायद एकाध बार ही उनसे बात की होगी वह भी दीदी की उपस्थिति
में। प्रेम प्रदर्शन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। हां, यह हो सकता है की मैं उनके
स्नेह का पात्र रहा होऊ। आज भी उनकी यादें मेरे दिल के एक बड़े हिस्से पर
कब्ज़ा जमाये बैठी हैं।
वहीँ बगल में एक और कब्र पर
नज़र पड़ी और ह्रदय ऐसे कंपा जैसे रिचर स्केल पर ७.५ का भूकंप आया हो। नगमा अंसारी
की खूबसूरत यादें वहां झंडा गाड़े हुए थी। उनका लहराता ज़मीन को छूता गुलाबी
आँचल, दोनों
कन्धों को चूमती काली जुल्फें,
गौरांग बदन जैसे की दूध में केसर मिली हो, बड़ी बड़ी आँखें, उनींदी पलके, चौड़ा माथा, भरे भरे रसीले ओठ , हंसती तो
दोनों गालों में गड्ढे पड़ जाते,
लम्बी पांच फीट आठ इंच की काया, सुडौल गर्दन और उसे सुशोभित करती पतली सी सोने की चेन, कपड़ों को फाड़ कर बाहर निकल
पड़ने को उद्यत उन्नत वक्ष, साडी के
नीचे से झलकती गहरी नाभि, मुट्ठी भर कमर, हाथों में चौकोर सी स्विस घडी, लम्बी पतली
आर्टिस्टिक अंगुलियाँ, खजुराहो की मूर्तियों सा तराशा हुआ बदन, चाल ऐसी
की हर कदम पर दिल बिछा देने को मन कहे, चलती फिरती कविता थीं वे, पूर्ण
स्त्री।
हमारे बैंक में असिस्टंट
मैनेजर होकर ३२ वर्षीया नगमा जी क्या आई, बैंक मैनेज़र से लेकर पूरा स्टाफ सजधज कर बैंक आने लगा। नगमा जी के बैंक में आने के बाद मैं अक्सर बिना कारण भी
बैंक के चक्कर लगाने लगा था। मेरी कितनी ही ग़ज़लों की नायिका बनी वे। शादी सुदा एक
बच्ची की माँ नगमाजी के आने से पूरे बैंक का मिजाज़ बदल गया था। उनकी उपस्थिति में
बैंक में एक अजीब सा नशा छाया रहता था। किसी महिला की खूबसूरती का वातावरण पर इतना
असर मैंने पहली बार महसूस किया।
मुझे पहली बार लगा की मेरी भावी पत्नी ऐसी ही होनी चाहिए। एक दिन उनके
प्रमोशन और ट्रांसफर का पता चला। वे भी अपनी यादें पीछे छोड़ कर चलती बनी।
आप
सोचेंगे की मेरी हर प्रेमिका से मेरा प्यार एक तरफ़ा ही क्यों रहा है ? ऐसा नहीं
हैं, अगली कब्रें उनकी हैं जिन्होंने मुझे मुझसे ज्यादा प्रेम किया, मेरे ह्रदय की
नायिका बनी, जबरन मेरी कविताओं की नायिका बन कर मुझसे बहुत कुछ लिखवाया। मुझे
प्रेम से सराबोर किया, इतना प्रेम किया की आज मुझमे जो कुछ शेष है वह सिर्फ और सिर्फ
प्रेम है। उनके बारे में फिर कभी लिखूंगा। आज आँख नम है, ह्रदय कांप रहा है अतः
प्रेम गली में जादा देर ठहरना उचित नहीं है।
आपका,
नमन
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