‘तुम स्वार्थी नहीं थे
रोहित!’
प्रिय रोहित,
तुम्हारा पूरा नाम शायद
रोहित वेमुला था, पर अब वह कोई अर्थ नहीं रखता मेरे लिए. तुम मनुष्य थे पूर्ण
मनुष्य. धर्म, जाति, दलित, सवर्ण, भारतीय, गैर भारतीय जैसी सीमायें तुम्हे नहीं
बांध सकती. तुम्हारे विचारों के अनंत आकाश को कोई बाधित नहीं कर सका, न कर सकता
था.
रविवार, १७ जनवरी २०१६ के
पहले मैंने तुम्हारा नाम भी नहीं सुना था, न मै तुम्हे जानता था. पर तुम्हारे आत्मोत्सर्ग(मैं
तुम्हारी आत्महत्या को आत्महत्या मानने को तैयार नहीं हूँ) के बाद तुम्हारा पत्र
जो मिडिया और संचार माध्यमों से मुझ तक पहुंचा है उसने में मेरे अंतर्मन, मेरी
चेतना को अन्दर तक झकझोर कर रख दिया है.
काश ! मैं तुमसे कभी मिला
होता. पर वह मेरे भाग्य में नहीं था. तुम्हारे आत्मोत्सर्ग से अगर मेरी आँखे नम
हैं, ह्रदय पिघला है तो वहीँ तुम्हारे पत्र ने मुझमे नव आशा का संचार किया है. अगर
मेरा देश आज भी तुम जैसी सोच, तुम जैसे विचार, तुम्हारे जैसे नीर क्षीर विवेक के युवक
पैदा कर रहा है तो मेरे देश का भविष्य अच्छा ही होगा, इस बारे में मुझे किंचित भी
शंका नहीं है.
काश मेरे देश के नियंताओं
का ह्रदय भी तुम्हारे ह्रदय के १०% इतना भी मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत होता!
स्वार्थ, लालच, सत्ता लोलुपता और घृणा के अँधेरे साम्राज्य के बीच ‘प्यार’ के दीपस्तंभ
जैसा था तुम्हारा ह्रदय.
तुम्हारा असमय चले जाना
बहुत अखरेगा रोहित, पर प्रेरणा और नव चेतना भी देगा लाखों युवकों को. सरदार भगत
सिंह ने भी तो यही किया था फांसी की रस्सी चूम कर. अंग्रेजों की दासता और अन्याय
के खिलाफ पूरा देश खड़ा हो गया था सीना तान कर.
आज हम सब खड़े हैं तुम्हारे
विचारों के साथ. आज जब अधिनायकवादी शक्तियां अपने सत्ता और स्वार्थ के लिए कुचल
देना चाहती हैं हर असहमति को , हर उस विचार को जो उन्हें आईना दिखाता है, इस देश
को १ या २ नहीं लाखों रोहित वेमुला जैसे युवकों की आवश्यकता है.
मैं जानता हूँ तुम स्वार्थी
नहीं थे रोहित. तुम स्वार्थी हो भी नहीं सकते थे..
तुम्हे श्रद्धांजलि नहीं
दूंगा.
सारी संवेदनाओं के साथ
तुम्हारा,
‘नमन’
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