Wednesday 21 October 2015

निंदक नियरे राखिये



निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय 
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय...


यह दोहा भारतीय संस्कृति और सभ्यता का आईना है, जो कहता है की जो आपकी आलोचना करते हैं उन्हें आप नज़दीक रखें, क्योंकि यही वह लोग हैं जो आपको निरंकुश होने से रोकते हैं, गलतियों से दूर रहने में आपकी मदद करते हैं और आपमें निरंतर सुधार लाते हैं।   


संसद के अन्दर और बाहर पंडित नेहरु के सबसे बड़े आलोचक रहे डॉ राम मनोहर लोहिया के खिलाफ पंडित नेहरु चुनाव प्रचार से बचते थे, यहाँ तक की डॉ लोहिया को राज्य सभा में चुन कर आने में पंडित नेहरु ने  मदद भी की थी।  

इमरजेंसी और उसके बाद इंदिरा जी के प्रखर आलोचक और विरोधी रहे बाबा नागार्जुन का सम्मान इंदिरा जी ने अपने हाथों किया और सकुचाते हुए बाबा नागार्जुन ने उसे स्वीकार भी किया।  
तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी की टेलिकम्युनिकेसन और कंप्यूटर क्रांति का संसद पर बैलगाड़ी मोर्चा निकल कर विरोध करने वाले अटलबिहारी बाजपेयी जी का इलाज़ करने के लिए राजीव गाँधी विदेश जाने वाले प्रतिनिधि मंडल में उन्हें शामिल कर ण केवल उन्हें विदेश भेजते हैं बल्कि उनके इलाज़ की व्यवस्था करते हैं. बाजपेयी जी ने खुद स्वीकार किया है की आज वे राजीव गाँधी की वजह से ही जिंदा हैं।  

आज मोदीजी और भक्तों का बौद्धिक और मानसिक स्तर इतना गिर गया है उसका एक उदाहरण - मोदी जी ने आम सभा में प्रश्न किया की सोनिया जी कौन सी बीमारी का इलाज़ कराने विदेश गयी हैं ?

 मोदी जी जैसे लोगों को यह ज्ञान कौन दें की माँ, बहनों और बेटियों की अनेक बिमारियों सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जा सकती।  

आज राजनीती में संस्कृति और संस्कार विहीन ओछे लोगों का साम्राज्य है जिनका विचारों से कुछ लेना देना नहीं है।  न तो इनके पास देश के विकास की योजना या दूर दृष्टि है।  ऐसी परिस्थियां देश को एक ऐसे अंधे कुंवे की तरफ धकेल रही हैं जहाँ विनाश के अलावा कुछ नहीं है।  नेता और भक्तो की हालत कुछ इस दोहे सी है----

जाका गुरु हो आंधला चेला खरा निरंध 
अंधे अँधा ठेलिया दोनों कूप परंत।

राजनेताओं का लगातार गिरता हुआ बौद्धिक और वैचारिक स्तर चिंता का विषय है।  स्वार्थ की राजनीती में देश और देश की जनता के लिए कोई स्थान नहीं है।  डपोरशंखी नेता झूठ, जुमलो और झूठे वादों के सहारे कुर्सी पर काबिज़ होता है।  


विनोबा जी ने कहा था की कुछ लोग राजनीती से अलग दीप स्तंभ की तरह हों जो राजनेताओं को दिशा दिखाएँ और उनपर अंकुश रखें। अंकुश का काम पिछले दशक तक कुछ हद तक समाचार माध्यम भी करते रहे हैं।  

आज परिस्थियाँ बदल गयी हैं।  आज अधिकांश समाचार पत्र और  टीवी चैनेलों के मालिक व्यापारी हैं जो सिर्फ लागत और लाभ की भाषा सुनते और जानते हैं।  अपने काम कराने के लिए ये सब सरकारों की चाटुकारिता करते हैं। सत्य से इनका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है।  

महात्मा गाँधी के सिद्धांतों पर बना हमारा देश आज सैद्धांतिक दिवालियेपन का शिकार है। जहाँ साधू और बाबा बलात्कारी हैं, मुल्ला मौलवी धार्मिक नशे के व्यापार में लिप्त हैं, नेता जाती और धर्म के नाम पर देश को बाँट रहे हैं, आज जब साहित्यकारों, विचारकों, लेखकों की आवाज़ दबायी जा रही है, जब हर उस चिराग को बुझाने की कोशिश हो रही है जो सत्य को उजागर करता है, जब धर्मान्धता अपनी चरम सीमा पर है, राजनीती विवेकहीन नेताओं के हाथ की कठपुतली बन गई है, सत्य की हत्या की जा रही है, कौन दिखायेगा हमें मार्ग ? कौन ?

'नमन'



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