Saturday 12 September 2015

बाबू सुबाषचन्द्र बोस और उनकी शहादत

बाबू सुबाषचन्द्र बोस और उनकी शहादत


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष नेता और दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे बाबू सुबाषचन्द्र बोस की १८ अगस्त १९४५ को एक विमान हादसे में ताइवान में हुई मृत्यु के बारे संदेह उत्पन्न कर कुछ लोग और राजनैतिक पक्ष,  जिनके अपने किन्ही नायकों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग नहीं लिया सुबाष बाबू विरुद्ध पंडित नेहरु, इस ढंग का वातावरण बनाकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और पंडित नेहरु को नीचा दिखाने की कोशिश पिछले ६ दशकों से लगातार करते रहे हैं.

ऐसी अफवाहें फ़ैलाने की कोशिशे होती रही हैं की जैसे सुबाष बाबू की असामयिक मृत्यु के जिम्मेदार पंडित नेहरु थे. जब सुबाष बाबू और आज़ाद हिंद फौज जर्मनी और जापान की सहायता से देश की आज़ादी के लिए  ब्रिटिश शासन से लड़ रहे थे तब पंडित नेहरु भारत छोडो आन्दोलन में जेल में बंद थे.

१८ अगस्त १९४५ को जिस दिन सुबाष बाबू की विमान दुर्घटना में ताइवान में मृत्यु हुयी, उस समय और उसके २ साल बाद तक भारत पर अंग्रेजों का राज्य था. द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी और जापान लगातार हार रहे थे और लगभग पूरे विश्व पर मित्र सेनाओं का वर्चस्व था. अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ़्रांस आदि मित्र राष्ट्र एक होकर जर्मनी, इटली और जापान के खिलाफ लड़ रहे थे. अगर सुबाष बाबू जिंदा होते तो मित्र राष्ट्रों की सेनाएं उन्हें गिरफ्तार करने में ज़मीन आसमान एक कर देती. जो लोग १८ अगस्त १९४५ को हुयी सुबाष बाबू की मृत्यु पर संदेह करते हैं वे दर असल मित्र सेनाओं और अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ़्रांस सहित अन्य मित्र राष्ट्रों की सामूहिक क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे होते हैं. इन परिस्थितियों में कोई मूर्ख ही पंडित नेहरु को सुबाष बाबू की मृत्यु के लिए जिम्मेदार ठहरा सकता है?

१९५६ में गठित शाहनवाज़ कमीसन और १९७० में गठित जी.डी. खोसला कमीसन ने विमान हादसे में सुबाष बाबू की मृत्यु की पुष्टि की थी. बाद में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार द्वारा १९९९ में गठित मुखर्जी कमिसन ने कहा की ताइवान की दुर्घटना में सुबाष बाबू की मृत्यु पर उन्हें संदेह है और हो सकता है की उनकी मृत्यु बाद के दिनों में हुयी हो.

 कुछ लोग लगातार उनकी मृत्यु पर संदेह प्रकट करते रहे हैं और सुबाष बाबू के जिंदा रहने की अफवाहें फैलती रही. खुद सुबाष बाबू के परिवार के सदस्य उनकी मृत्यु पर लगातार संदेह करते रहे हैं.

यही वे लोग हैं जो लगातार केंद्र सरकार के पास सुरक्षित १३० फाईलो और पश्चिम बंगाल सरकार के पास सुरक्षित ६४ फाईलों को सार्वजनिक करने की मांग करते रहे हैं. आरोप लगते रहे हैं की कांग्रेस पार्टी इन फाईलों को सार्वजनिक नहीं होने देना चाहती. जैसे इन फाईलों के सार्वजनिक होते ही कांग्रेस पार्टी के पांव के नीचे की ज़मीन खिसक जाएगी.

लोग यह भूल जाते हैं की केंद्र में १९७७ में सबसे पहली गैर कांग्रेसी सरकार मोरारजी भाई के नेत्रित्व में बनी. इस सरकार में अटल जी विदेश मंत्री थे और अडवानी जी भी कैबिनेट मंत्री थे. तबसे मोदीजी आठवे गैर कांग्रेसी प्रधान मंत्री हैं, इन लोगों ने सुबाष बाबू से संबंधित फाईलें क्यों सार्वजनिक नहीं की ?

पश्चिम बंगाल में १९७७ के बाद लगातार गैर कांग्रेसी सरकारें रही हैं, उनमे से किसी ने भी फाईलों को सार्वजनिक नहीं किया.

अब जब सुबाष बाबू से संबधित ६४ फाईलों को सार्वजनिक करने की घोषणा पश्चिम बंगाल शासन ने की तो बीजेपी ने इसे तुरंत पब्लिसिटी स्टंट करार दे दिया. कोई भी व्यक्ति अगर पूरे घटनाक्रम को तर्क की कसौटी पर कसे तो सच्चाई सूर्य के सामान सामने आ जाएगी.

अब चूंकि चर्चा सुबाष बाबू की हो रही है तो यहाँ मै एक सच और आप सबको याद कराना चाहूँगा. सुबाष बाबू अपने घर में नज़र बंद थे और ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंक कर ज़र्मनी पहुंचे थे. वहां से बर्लिन रेडिओ से दिए गए अपने पहले वक्तव्य में सुबाष बाबू ने  महात्मा गाँधी को ‘राष्ट्र पिता’ कहा. बाद में जब उन्होंने आज़ाद हिंद फौज बनायी तो उसमे तीन ब्रिगेड बनायीं. १- महात्मा गाँधी ब्रिगेड २- पंडित नेहरु ब्रिगेड ३- रानी लक्ष्मीबाई ब्रिगेड ...

उपरोक्त २ घटनाये यह सिद्ध करती हैं की सुबाष बाबू महात्मा गाँधी और पंडित नेहरु का कितना सम्मान करते थे.


आज जो लोग  इतिहास को तोड़ मरोड़ कर परोसने में लोग दिन रात एक कर रहे हैं उनसे इसी एक प्रश्न के साथ मैं अपने लेख को विराम देना चाहूँगा की, अगर सुबाष बाबू के मन में महात्मा गाँधी और पंडित नेहरु के प्रति जरा भी अनास्था होती तो क्या वे बर्लिन रेडिओ से महात्मा गाँधी को ‘राष्ट्र पिता’ का संबोधन देते या आज़ाद हिंद फौज में महात्मा गाँधी ब्रिगेड और पंडित नेहरु ब्रिगेड बनाते ?

'नमन'

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