राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अपनी स्थापना से आज तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार देश को कमजोर करने वाली गतिविधियों में संलग्न रहा है. १८५७ की क्रांति में जब बंगाल रेजिमेंट और पूर्व एवं उत्तर भारत के किसानो ने (जिनमे अधिकांश ब्राह्मण, राजपूत और मुसलमान थे) बहादुरशाह ज़फर के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली मशाल जलाई, तभी अंग्रेजों की समझ में आ गया था की अगर भारत पर राज्य करना है तो हिन्दुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाना होगा.
यहाँ मैं दो बाते स्पष्ट करना चाहूँगा और अगर मेरे विद्वान् मित्र मुझसे असहमत हो तो जरूर मुझे दुरुस्त करने की कोशिश करेंगे. पहली बात यह की १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में सिख बटालियन और हमारे सिख भाईयों ने अपने उत्तर और पूर्व भारत के किसान भाईयों का साथ नहीं दिया और अंग्रेजों की तरफ से लडे. अगर उन्होंने अपने किसान भाईयों का साथ दिया होता तो शायद १८५७ में ही अंग्रेजों का सफाया हो जाता. दूसरी बात की यह की दिल्ली से शुरू होकर उत्तर और पूर्वोत्तर भारत तक में ही यह क्रांति सीमित रही. बाकी पूरा देश मूक दर्शक बना देखता रहा.
एक बात और कहना चाहूँगा और वह यह की मैं रानी लक्ष्मी बाई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का सिपहसालार या सिपाही नहीं मानता. रानी लक्ष्मी बाई अपने राज्य की रक्षा और अपने दत्तक पुत्र को गद्दी का वारिस बनाने के लिए लड़ रही थी न की अंग्रेजों से देश को स्वतंत्र करने के लिए. एक तरफ जहाँ उत्तर और पूर्वोत्तर भारत का सिपाही, किसान और आदिवासी देश के लिए बिना किसी ताजो तख़्त की इच्छा के, बिना किसी अपेक्षा के लड़ रहा था दूसरी तरफ रानी लक्ष्मी बाई सिर्फ अपने राज्य के लिए.
अपनी जीत के बाद अंग्रेजों ने इतनी बर्बरता से हमारे किसानो और १८५७ के स्वतंत्रता सेनानियों का दमन किया की कानपुर, अलाहाबाद से लेकर पूर्वांचल की सारी सडकों के किनारे का कोई पेड़ नहीं बचा था जिस पर लाशें महीनों तक नहीं लटकी रहीं. इन शहादतो को 'संघ' का कोई कार्यकर्ता याद नहीं करता.
इस पहली क्रांति से सबक लेकर अंग्रेजो ने आर्थिक सहायता देकर मुस्लिम लीग और संघ को मजबूत किया. संघ के कार्यकर्ता स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अग्रेजों के लिए जासूसी करते थे. इनकी पोशाक तक अंग्रेजों के सिपाहियों जैसी है. १९२५ में अपनी स्थापना से लेकर १९५० तक संघ के पास अपना संविधान तक नहीं था. सरदार पटेल द्वारा मजबूर करने पर इन्होने अपना संविधान बनाया. यह जनता में लगातार प्रचार करते रहे की कांग्रेस देश को स्वतंत्र नहीं करा सकती अतः स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है. श्री लालकृष्ण अडवानी ने अपने ब्लॉग में खुद लिखा है की १९४६ में भी संघ के प्रचारक यही कहते थे की देश अभी स्वतंत्र नहीं होगा, इसे हम बाद में स्वतंत्र कराएँगे. इस तरह ये जनता के मनोबल को तोड़ रहे थे.
स्वतंत्रता के समय देश के विभाजन को रोकने के लिए जहाँ महात्मा गाँधी दिन रात एक कर रहे थे, पंडित नेहरु सिख नेताओं के साथ बैठ कर उन्हें अलग खालिस्तान की मांग न करने के लिए मना रहे थे, डॉ बाबा साहब आंबेडकर को मनाने और अलग दलित राष्ट्र के निर्माण को रोकने के लिए महात्मा गाँधी पूना में आमरण अनशन कर रहे थे, कांग्रेस लगातार मुस्लिम लीग और उनके नेताओं को मनाने में लगी थी वहीँ ‘संघ’ के प्रचारक विष वमन कर रहे थे. संघ का कहना था की स्वतंत्र हिंदुस्तान में हम मुसलमानों को न तो वोट का अधिकार देंगे न सत्ता में उनकी भागीदारी होगी. स्वतंत्र भारत ने मुसलमान दुय्यम दर्जे के नागरिक होंगे. संघ की इसी कट्टरवादिता ने देश के विभाज़न को अमली जामा पहनाया . देश के विभाजन के असली ज़िम्मेदार मुस्लिम लीग और आरएसएस थे, और यह दोनों ही अंग्रेजों द्वारा पोषित थे.
आरएसएस ने देश के विभाजन को रोकने के लिए कभी कोई आन्दोलन नहीं किया, न तो इनके नेता कभी जेल गए. ये लगातार अंग्रेजों की भाषा बोलते रहे. स्वतंत्रता के बाद लगातार बड़े ही सुनुयोजित ढंग से आरएसएस देश के राष्ट्र गीत, राष्ट्र पिता, राष्ट्रीय स्मारकों और राष्ट्रीय धरोहरों के खिलाफ अपनी मुहिम चलाये हुए है. स्वातंत्रता सेनानियों का चरित्र हनन उनके इस निंदनीय प्रयास का ही एक अंग है. ये लोग लगातार देश के इतिहास को बदलने का कुचक्र चला रहे हैं.
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के नेता राजनीती में इतने व्यस्त हैं की उन्हें आरएसएस का यह कुचक्र दिखाई नहीं दे रहा है, न वे इसे रोकने का किंचित भी प्रयास कर रहे हैं. आरएसएस एक ही झूठ को पिछले ७० सालों से लगातार दोहरा कर उसे सच साबित करने में लगी है. देश की पिछली पीढ़ी को दिग्भ्रमित करने में आरएसएस नाकामयाब रहा था क्यों की उस पीढ़ी ने सब कुछ अपनी आँखों से देखा था. पर नयी पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं है. वे न केवल इनसे प्रभावित हो रहे हैं बल्कि इनके सफ़ेद झूठ को ही सच मान कर उसके प्रचार में लग गए हैं. ऐसा सुनने में आया है की सोशल मीडिया पर इस दुष्प्रचार के लिए संघ प्रतिवर्ष लगभग २०० करोड़ रु खर्च कर रहा है.
'नमन'
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के नेता राजनीती में इतने व्यस्त हैं की उन्हें आरएसएस का यह कुचक्र दिखाई नहीं दे रहा है, न वे इसे रोकने का किंचित भी प्रयास कर रहे हैं. आरएसएस एक ही झूठ को पिछले ७० सालों से लगातार दोहरा कर उसे सच साबित करने में लगी है. देश की पिछली पीढ़ी को दिग्भ्रमित करने में आरएसएस नाकामयाब रहा था क्यों की उस पीढ़ी ने सब कुछ अपनी आँखों से देखा था. पर नयी पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं है. वे न केवल इनसे प्रभावित हो रहे हैं बल्कि इनके सफ़ेद झूठ को ही सच मान कर उसके प्रचार में लग गए हैं. ऐसा सुनने में आया है की सोशल मीडिया पर इस दुष्प्रचार के लिए संघ प्रतिवर्ष लगभग २०० करोड़ रु खर्च कर रहा है.
'नमन'
भाई सा़. आपने ना जाने धन के लालच मे या किसी को खुश करने के लिये यह लेख लिखा है पर आप इतिहास की बात कर रहै है तो इतिहास के पन्नो से कुछ हिन्दुओ की दुर्दशा करने वाले लोगो इतिहासकारो के लिये भी कुछ लिख दिजिये जिन्होने विदेशी अकमाण कारी अकबर को महान बता दिया ओर हिन्दुओ के वीर शिवाजी को पहाडी चुहा बता दिया किसने भारत के मान बिन्दुओ पर घात किया किसने मन्दिरो का विनाश किया किसके कारण बाल विवाह होना शुरु हुये किसनै इस देश की पुजी लुटी आदी के बारे मे लेख लिखे खाली संघ की विरोधी बाते लिख कर उसे नेट पर डाल कर आप आपने आप को खुश कर सकते है समाज को नही
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