Wednesday 8 July 2015

-- प्रीति --

--  प्रीति --

मेरी शिराओं मे भरा
अनंत प्रेम का 
उबलता लावा
निकल आता है बाहर
तोड कर सारी सीमाएं
बहता है कलम की नोंक से
बन कर कविता, गीत, गजल
नहीं रुकता उसका प्रवाह
मेरे लाख रोकने से भी
जब छू लेता है कोई
मेरे हृदय की सुलगती भट्ठी को
शब्द से, संगीत से
या फिर उफनती प्रीति से
उफनती प्रीति से।
'नमन' 


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हम तो सहते रहे हर सितम् गुनहगारों के
वो चीखते रहे जो लैस थे हथियारों से। नमन
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लोग मरते रहे गलियों और चौबारों में
कोई हलचल न हुई सत्ता के गलियारों में। 'नमन'


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एहतियातन फकीर हूँ यारों
दिल का बेहद अमीर हूँ यारों।
जिंदगी चाहे जहाँ ले जाए
मैं तो बहता समीर हूँ यारों। 'नमन'


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जान की छोडिए ईमान तलक दे डाला,
फिर भी उस बुत को हमपे भरोसा न हुआ। 'नमन'


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हर एक लम्हा मैं तुम्हारा ही तलबगार रहा
हुस्नवाले मैं तेरा उम्र भर बीमार रहा। 
जाने कैसे किया ए जादू और टोना तुमने
मेरा दिल तेरी ही जुल्फों में गिरफ्तार रहा। 'नमन'



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