Thursday 25 June 2015

रीढ़ विहीन नेताओं का देश

                                                     
                                                      - रीढ़ विहीन नेताओं का देश –


इमरजेंसी को लगे ४० साल हो गए है और हटे ३८ साल ६ महीने. आज भी बीजेपी के नेता डेढ़ साल जेल में बिता कर खुद को बहुत बड़ा देश भक्त साबित करने पर लगे हैं. जबकि असलियत यह है की वह पूरा आन्दोलन जेपी का था, विद्यार्थियों का था, साम्यवादियों/समाजवादियों के कंधे पर खड़ा था. बीजेपी(तत्कालीन जनसंघ) नेता तो जेपी के कंधे पर सवार होकर वैतरणी पार करने चले थे. 
सन 1977, इमरजेंसी ख़त्म होती है, चुनावो की घोषणा हो जाती है और १७ वर्ष कुछ महीने उम्र का अलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम वर्ष का यह छात्र अटलबिहारी जी को सुनने सिविल लाइंस, इलाहाबाद की आम सभा मे हाजिरी देता है. अटलबिहारी बाजपेयी बोलने के लिए खड़े होते हैं। कमर पर हाथ रख कर खड़े होने की चिर परिचित मुद्रा। बहुत कुछ कहा। इमरजेंसी के खिलाफ, इन्दिरा गांधी के खिलाफ। एक बात आज भी याद है मुझे- उन्होने कहा था की जेल मे इन्दिरा जी ने उनकी रीढ़ की हड्डी का एक मनका कटवा कर निकलवा दिया। जबकि इमरजेंसी में बाजपेयी जी को गेस्ट हाउस में पूरी सुविधा के साथ रखा गया था. यहाँ बाजपेयी रीढ़ विहीन भारतीय नेताओं की अगली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। ये भारतीय राजनीति मे झूठ बोलने और असत्य या अर्ध सत्य को सत्य बना कर पेश करने की परंपरा की शुरुवात थी। 
इमरजेंसी के बाद विपक्ष के सब नेता जेल से छूटे थे। रीढ़ वाले भी और रीढ़ विहीन भी। राजनारायन भी उनमे एक थे। ये रीढ़ वाले नेता थे। पूरी ज़िंदगी अपनी रीढ़ नहीं खोयी। उन्हे जो सच लगा कहा, किया और अपनी शर्तों पर जिया। 
पंडित नेहरू, सरदार पटेल और लालबहादुर शास्त्री की पीढ़ी के बाद, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी और कुछ चुनिन्दा नेताओं के अलावा सत्ता और प्रतिपक्ष मे एक भी रीढ़ वाला नेता पैदा नहीं हुआ। मोरारजी भाई प्रधानमंत्री बनते ही पाकिस्तान के सामने ऐसे झुके की रॉ की ऐन्टी टेररिस्ट विंग को बंद कर दिया। हमारे एजेन्टों के नाम की लिस्ट पाकिस्तान को देकर बदले मे ‘निशाने पाकिस्तान’ लेकर लौटे। बाजपेयी जी ने तो पाकिस्तान के सामने इतनी बार घुटने टेके की घुटने बदलवाने पड़े। मनमोहन सिंह जी बहुत विद्वान व्यक्ति हैं और विद्वान व्यक्ति बड़ा भीरु होता है। सो इनसे कुछ उम्मीद रखना बेकार है? 
हम एक डरे सहमे राष्ट्र हैं जो अपना डर छिपाने के लिए वीरता के गीत गाता रहता है। 
कुछ लोग अपनी रीढ़ मजबूत करने के लिए सरदार पटेल के नाम पर पूरे देश से लोहा मांग रहे हैं। अब इन्हे कौन बताए की लोहा खून मे होना चाहिए। जो लोहा सरदार पटेल के खून मे था। वो लोहा उनके नाम पर लोहा मांगने से आपके चरित्र मे नहीं आएगा। 
जो लोहा पंडित नेहरू के खून मे उबला जब उन्होने भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ लार्ड माउंटबेटन के विरोध और सरदार पटेल की हिचकिचाहट के बावजूद सेना को कश्मीर भेजा और उसे कबायलियों से मुक्त कराया। या जब उन्होने 1960 मे पूरे पश्चिमी देशों की परवाह न करते हुये गोवा को पुर्तगीज से छीन लिया। 
जो लोहा इन्दिरा जी के खून मे था जब उन्होने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये और एक नया राष्ट्र बना दिया। अमेरिका और ब्रिटेन की परवाह न करते हुये 1974 मे परमाणु विस्फोट करके देश को परमाणु सत्ता सम्पन्न देशों की सूची मे ला खड़ा किया। 
जो लोहा राजीव गांधी के खून मे था जब उन्होने LTTE के खिलाफ भारतीय शांति सेना को लंका भेजा। अगर वे उस समय अपनी फौज श्रीलंका न भेजते तो चीन की फौज श्रीलंका सरकार की विनती पर वहाँ जाने को तैयार बैठी थी। आज हमारी नाक के नीचे चीनी फौज की छावनियाँ होती। 
यहाँ मैं हमारी सेना के बहादुर सिपाहियों को कोटी कोटी प्रणाम करना चाहूँगा जिन्होने देश के लिए अनंत बलिदान दिये। राजीव गांधी के निर्देश पर श्रीलंका मे हमारी फौज अपना एक हाथ पीछे बांध कर लड़ी ताकि निरपराध तमिल भाइयों की जान खतरे मे न पड़े। 
उन्ही राजीव गांधी को कुछ कायरो ने धोखे से मार दिया और हमारे रीढ़ विहीन नेता, रीढ़ विहीन ब्यूरोक्रेट्स और रीढ़ विहीन न्यायालय उन कायरो की तरफ हैं। कायरता हमारे देश के खून मे एड्स की तरह समा गई है। शर्म आती है मुझे। घिन आती है इनसे। इतने लिजलिजे हैं ये सब। 
और अब ५६ इंची सीना होने का दावा करते एक नेता को भारत की जनता ने देश की बागडोर सौंप दी है. १ ही वर्ष में यह सीना सिकुड़ कर १६ ईंच का हो गया है. रीढ़ तो दिखाई ही नहीं पड़ रही है अब तक. 
आगे आगे देखते हैं की क्या होता है. 
‘नमन’

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