Friday 24 April 2015

ज़मीन अधिग्रहण कानून

Land Acquisition Amendment act (LARR) 2013 और बीजेपी द्वारा लाये गए Land Acquisition Amendment bill 2015 में ३ महत्वपूर्ण अंतर ...
*२०१३ का एक्ट प्रायवेट प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण करते समय ८०% जमींन मालिकों और पब्लिक प्रायवेट प्रोजेक्ट के लिए ७०% ज़मीन मालिकों की सहमति आवश्यक मानता है..
--- जब की २०१५ का नया बिल   DefenseIndustrial corridorsNational securityRural Infrastructure & electrification और  Housing for the poor ....     इन ५ कामों के लिए किसानो की सहमति आवश्यक नहीं समझता.

१-      Defense और National security के लिए ज़मीन अधिग्रहण का ज्यादा विरोध नहीं होना चाहिए. परन्तु एक बात ध्यान में रखने योग्य है की आज जीतनी ज़मीन रक्षा मंत्रालय के पास उपलब्ध है उसका ५०% से ज्यादा भाग बिना किसी उपयोग के खाली पड़ा है. जब शरद पवार जी रक्षा मंत्री थे तो इस खाली पड़ी ज़मीन को बेंच कर सेना के लिए धन जुटाने की बात भी एक बार सामने आई थी. मुझे नहीं लगता की कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़ कर अगले ३०-४० सालों में सेना को ज़मीन की जरुरत पड सकती है. और विशेष परिस्थितियों में देश का किसान स्वयं आगे आकर सेना को ज़मीन सौपने में कभी नहीं हिचकिचाएगा. अतः रक्षा मंत्रालय के लिए ज़मीन अधिगृहित करने के लिए किसानो की सहमति का clause हटाने की जरुरत नहीं है.
२-      Industrial corridors के लिए ८०% किसानो की सहमति के बिना ज़मीन अधिग्रहण नहीं होना चाहिए. मुझे ठीक से नहीं पता और अगर मैं गलत हूँ तो आप कृपया मुझे दुरुस्त करें. मेरी जानकारी में सरकारों द्वारा Industry के लिए अधिगृहित लगभग ६०००० हेक्टर ज़मीन बिना उपयोग के खाली पड़ी है. ऐसे में बिना ८०% किसान की सहमति ज़मीन उनकी ज़मीन लेना अपराध होगा. वैसे भी अगर ज़मीन बंज़र है तो किसान खुद ज़मीन देने में न-नुकुर नहीं करेगा. सो Industrial corridors के लिए बिना सहमति किसानो की ज़मीन लेने को मैं सही नहीं मानता.
३-      Housing for the poor के लिए किसानो की ज़मीन लेने की कत्तई आवश्यकता नहीं है. जहाँ कहीं गरीब की झोपड़ी है वहीँ उसी जगह में सरकार उसे पक्के घर बना कर दे सकती है. अगर नयी ज़मीन अधिगृहित करके उसमे गरीबों को बसाया गया तो जहाँ वे बसे हुए हैं उस ज़मीन का क्या होगा? वह खाली कराकर बिल्डरों को सौंपी जाएगी? अफसरों के और नेताओं के लिए धन कमाने का जरिया होगी? क्या उपयोग होगा उस ज़मीन का?
४-      Rural Infrastructure & electrification के लिए अगर समझाया गया तो किसान अपनी ज़मीन स्वयं दे देगा. मेरा मानना है की अगर किसानो के भले का ही कोई काम हो रहा है तो ८० क्या १००% किसान सामने से आकर अपनी ज़मीन सरकार को सौंप देंगे, अतः इसके लिए भी ८०% सहमति का clause नहीं हटाया जाना चाहिए.
अब दो और महत्वपूर्ण बदलाव जो बीजेपी सरकार करना चाहते हैं वे हैं....
१-      २०१३ के बिल में स्पष्ट है की अगर ५ साल तक अधिगृहित ज़मीन खाली पड़ी रही और जिस काम के लिए उसका अधिग्रहण हुआ था वाह काम शुरू नहीं हुआ तो वह ज़मीन किसानो को लौटा दी जाएगी. अब बीजेपी सरकार इस नियम को क्यों बदलना चाहती है. यह clause तो उपक्रमों को ज़ल्द पूरा करने का दबाव बनाने वाला clause है. अगर मोदी पूरी ईमानदारी से विकास की गति तेज़ करना चाहते हैं तो यह नियम उनकी मदद करेगा. अतः इसे हटाने का कोई औचित्य नहीं है.
२-      २०१३ के बिल में स्पष्ट है की अगर कोई अधिकारी ज़मीन अधिग्रहण में मनमानी या कानून के विरुद्ध काम करेगा तो उसे सज़ा हो सकती है. अब बीजेपी सरकार यह नियम बदलना चाहती है ? आखिर क्यों यह सरकार भ्रष्ट और अक्षम अधिकारीयों को बचाना चाहती है?

'नमन' 

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