Friday 24 April 2015

अन्नदाता

अन्नदाता 

जनता के सेवक
मंच पर विराजमान थे 
और राजा
जमीन पर
बर्दाश्त नहीं था उसे
अन्नदाता का यह अपमान
सो पेड पर चढ कर
जनता के सेवकों से 

उपर जा बैठा वह
नहीं गिरा अन्नदाता
सेवकों के चरणों में... .

विरोध प्रकट करना ही था उसे
सो चुना उसने
तरीका महात्मा गाँधी का
भगत सिंह का
फाँसी लगाते हुए भी
वाह उँचाई पर रहा 

अपने सेवकों से
नहीं गिरने दी उसने
अस्मिता किसान की
दाता की
धरती के राजा की
अन्नदाता प्रणाम तुम्हे!
प्रणाम तुम्हारे बलिदान को!

थूकता है इस देश का किसान 
अमानवीय व्यवस्था पर
अंधे बहरे जनप्रतिनिधियों पर
हजारों किसानों की हत्यारी
सरकारों पर।
'नमन'

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