अन्नदाता
जनता के सेवक
मंच पर विराजमान थे
और राजा
जमीन पर
बर्दाश्त नहीं था उसे
अन्नदाता का यह अपमान
सो पेड पर चढ कर
जनता के सेवकों से
उपर जा बैठा वह
नहीं गिरा अन्नदाता
सेवकों के चरणों में... .
विरोध प्रकट करना ही था उसे
सो चुना उसने
तरीका महात्मा गाँधी का
भगत सिंह का
फाँसी लगाते हुए भी
वाह उँचाई पर रहा
अपने सेवकों से
नहीं गिरने दी उसने
अस्मिता किसान की
दाता की
धरती के राजा की
अन्नदाता प्रणाम तुम्हे!
प्रणाम तुम्हारे बलिदान को!
थूकता है इस देश का किसान
अमानवीय व्यवस्था पर
अंधे बहरे जनप्रतिनिधियों पर
हजारों किसानों की हत्यारी
सरकारों पर।
'नमन'
जनता के सेवक
मंच पर विराजमान थे
और राजा
जमीन पर
बर्दाश्त नहीं था उसे
अन्नदाता का यह अपमान
सो पेड पर चढ कर
जनता के सेवकों से
उपर जा बैठा वह
नहीं गिरा अन्नदाता
सेवकों के चरणों में... .
विरोध प्रकट करना ही था उसे
सो चुना उसने
तरीका महात्मा गाँधी का
भगत सिंह का
फाँसी लगाते हुए भी
वाह उँचाई पर रहा
अपने सेवकों से
नहीं गिरने दी उसने
अस्मिता किसान की
दाता की
धरती के राजा की
अन्नदाता प्रणाम तुम्हे!
प्रणाम तुम्हारे बलिदान को!
थूकता है इस देश का किसान
अमानवीय व्यवस्था पर
अंधे बहरे जनप्रतिनिधियों पर
हजारों किसानों की हत्यारी
सरकारों पर।
'नमन'
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