Sunday 12 April 2015

सीता हरण

  सीता हरण 
सीना थाम कर
बैठ गया था दशानन
असह्य वेदना
बर्दाश्त नहीं कर पाया
जगत-जेता बाहुबली रावण
अपनी बहन का अपमान...

नाक कटी सूपर्णखा को
सामने खड़ी देख
चेहरा तमतमा गया उसका
भुजाएं फड़क रही थी 
क्रोध से काँप रहा था लंकेश
अपराध ही क्या था उसकी बहन का
प्रणय निवेदन ही तो किया था उसने
वनवासी राम से
क्या इतना बड़ा अपराध है   
प्रेम की याचना .....

जिसके पिता की
तीन तीन रानियाँ हों
उस दशरथ पुत्र से
उसकी दूसरी पत्नी बनने का आग्रह
क्या पाप था
कुलीन ब्राह्मण कुल में जन्मी
परम सुंदरी
महापराक्रमी रावण की बहन थी वह
गर्व से ऊँचा था मस्तक उसका ...

स्त्री पर
न केवल हाथ उठाया
मर्यादाहीन लक्ष्मण ने
बल्कि नाक काट कर
नष्ट कर दिया उसका सौन्दर्य
जिस पर उसे गर्व था
नाक सिर्फ उसकी ही नहीं कटी
कट गई थी नाक पूरे पुलस्त्य कुल की
बताया था उसने सुमित्रानंदन को
बहन है वह लंकेश की
फिर भी उसका यह दुस्साहस ....

रावण की आँखों से
निकल रही थी चिंगारियां
बदला लेगा वह
इस अन्याय का 
सिखाएगा सबक
वनवासी राम और उसके भाई को
बैठा नहीं रख सका लंकेश
अपने सिंहासन पर
मेरी बहन की यह दुर्दशा
समस्त नारी जाति का अपमान किया था
दशरथ पुत्रों ने ...

उसी क्षण
तय कर लिया था उसने
चुप नहीं बैठेगा वह
करेगा इस अन्याय का प्रतिकार
करेगा सीता का अपहरण
देगा चुनौती दोनों भाईयों को
युद्ध की
दिखायेगा उन्हें वह
अपना बल अपना ऐश्वर्य
जिन्होंने साधारण समझ
किया था उसकी बहन का अपमान ...

सोच रहा था
वेदों का मर्मग्य
महान पंडित
खुद को नरों मे श्रेष्ठ समझने वाला रावण
क्या जवाब देगा वह
स्वर्ग में बैठे अपने पुरखों को
रक्षा नहीं कर सका था वह
अपनी बहन के मान की
अपने कुल की मर्यादा की
खुद अपने आत्मसम्मान की ....

धिक्कार है उसे
धिक्कार है महाबली कुम्भकर्ण को
धिक्कार है इन्द्रजित मेघनाथ को
धिक्कार है पुलस्त्य कुल को
धिक्कार है उसके जीवन को ...

आत्म सम्मान को खोकर 
जीना भी कोई जीना है 
अगर वह वनवासी 
हैं स्वयं विष्णु 
तो करेगा वह 
अपने परिवार रिश्तेदारों सहित 
मृत्यु का वरण उसके हाथों 
कुछ भी हो 
करना ही होगा उसे सीता हरण...

 करना ही होगा उसे सीता हरण...
'नमन'

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