चूल्हा सोया हफ्ते भर से
कृष्णा भूखा सोया है
कई दिनो से घर के बाहर
काला कुत्ता रोया है।
गाय बैल सब भेंट चढ़ गए
सूखा लंगर डाले है
भूख-गरीबी और बेबसी
घर मे डेरा डाले है।
सूखा कूंआ, सूखी तलैया
आँख के आँसू सूखे हैं
फटा पड़ा धरती का सीना
इंद्र देवता रूठे हैं।
सब किसान मजदूर हो गए
मालिक से मजबूर हो गए
सावन के अंधे अधिकारी
जिला कलक्टर सूर हो गए।
बैठ बहुरिया रोये घर मे
हा-हा करे अकाल है
अंतड़ी सूखी ठठरी बाजे
जीना हुआ मुहाल है।
मँडराते है गिद्ध गगन मे
घर-घर मौत बरसती है
दरवाजे का पीपल सूखा
रात को नीम सिसकती है।
दिल्ली का दिल मरा हुआ है
शासक हुआ निठल्ला है
ईश्वर-अल्लाह, वाहे गुरु ने
हमसे झाड़ा पल्ला है।
‘नमन’
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