Saturday 21 March 2015

डी के रवि की आत्म हत्या

सुप्रभात ! चैत्र नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये! 
राक्षसों और असुरों का समूल नाश करनेवाली माँ दुर्गा से प्रार्थना की हमारे देश को आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाएं।  

 आज गाल बजाने वाले कर्महीन राजनेताओं की फौज देश को जोंक बन कर चूस रही है, सरकारी अफसर घुन बन कर सब कुछ चाटने में व्यस्त हैं, जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है।  
प्रजातंत्र  के वे दो स्तम्भ न्यायपालिका और पत्रकारिता जिनसे थोड़ी बहुत उम्मीद बाकी थी, उनमे भी सड़न  और गलन शुरू हो गयी है।  पत्रकार १००-१०० करोड़ की राशि की मांग करते टीवी पर देखे गए हैं।   कुछ पत्रकारों के पास पिछले १० सालों में सैकड़ों करोड़ की संपत्ति कहाँ से आ गई ? किसी को नहीं पता। न्यायपालिका का स्तर भी लगातार गिर रहा है।  यह चिंता का विषय है और चिंतन का भी। 
प्रशासन तो बहुत पहले से  भ्रष्टाचार के दलदल में धंस चुका था।  मालदार पोस्टिंग की  बातें प्रशासनिक गलियारों में आम थी।  
जनता समय समय पर भ्रष्ट, अकर्मण्य और अक्षम राजनेताओं को उनकी जगह दिखाती रही है।  परन्तु इस सड़े गले प्रशासनिक ढाँचे का, भ्रष्ट और घटिया अफसरों का वह कुछ नहीं बिगाड़ पाती।  अफसर अपने धन बल और रसूख से इतने घमंडी हो गए हैं की अपने आप को भगवान समझने लगे हैं।  
आज जो लोग एक आई ए एस अफसर डी के रवि की आत्म हत्या/ हत्या को लेकर इतने व्यथित हैं, वे आत्मावलोकन करें तो पाएंगे की जैसे-जैसे सरकारी अमले के इस सर्वश्रेष्ठ तबके  में भ्रष्टाचार का दीमक लगा, पूरा सिस्टम सड़ता चला गया।  पैसे के लालच में राजनेताओं और माफिया के तलवे चाटने वाले अफसर ओहदेदार और मालदार होते चले गए।  आज ७५% से अधिक 
अफसर या तो भ्रष्ट हैं या हालात से समझौता कर बैठे हैं. ऐसे में डी के रवि जैसे ईमानदार लोगों के पास क्या रास्ता बचता है? 
कई बार राजनेता इन अफसरों को सार्वजानिक रूप से बेइज्ज़त करने से भी नहीं चूकते। भ्रष्टाचार का दीमक प्रधानमंत्री कार्यालय तक में विद्यमान है।  अटल जी के प्रधान मंत्री कार्यालय से फाइल लीक होने की वजह से नेसनल हाईवे के इंजिनियर दुबे की हत्या हुई थी ।  वह एक शुरुवात भर थी। 
 तब से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र आदि कई राज्यों के आईपीएस  और आईएएस अधिकारीयों की हत्या और आत्म हत्या की खबरे आ चुकी हैं। 
गुजरात की हालत तो इतनी बुरी है की जिला कलक्टर राजनेताओं के पैर के पास बैठे देखे गए हैं।  जिन अधिकारिओं ने अपने आकाओं का कहा नहीं माना वे सस्पेंड कर दिए गए और कई तो जेल तक भेजे गए। गृह मंत्री तक की हत्या करा दी गयी।  
रीढ़-विहीन अफसर चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी जैसी पोस्ट पर बैठ कर अपने आकाओं के तलुए चाट रहे हैं। जिन अफसरों में लड़ने का माद्दा है उनकी कोई सहायता नहीं कर रहा।  इन्ही अफसरों के लिए कुछ दिनों पहले मैंने एक शेर कहा था---
बहुत ज़ज्बा था अपने देश पर मर मिटने का जिसमे
वो अफसर क्या बना बलिदान की बातें नहीं करता।  

भारतीय समाज ने पैसे को इतना महिमा मंडित कर दिया है की सारे दुर्गुणों से युक्त गुंडा, राजनेता , धनवान आज समाज में पूजित है।  शिक्षक, वैज्ञानिक , साहित्यकार , कलाकार आदि हमारे देश में दुय्यम दर्ज़े के नागरिक हैं। ऐसे में युवा प्रशासनिक अधिकारिओं को अपना झंडा खुद उठाना होगा, खुद को बुलंद करना होगा।  देश के इन युवा अधिकारियों को आज के पावन दिन पर ये पंक्तियाँ समर्पित करता हूँ.…
'जिओ तो ऐसे जिओ ज़िन्दगी मिसाल बने 
मौत आये तो इंक़िलाब का आगाज़ बने। 
तुम अगर चाहो ज़माने को बदल कर रख दो 
आदमी क्या है खुदाई भी कर्ज़दार बने। '

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