काशी ने नारा दिया,
हर हर मोदी- घर घर मोदी।
गंगा पुत्रों ने मोदी को बैठा दिया प्र.मं.की कुर्सी पर।
सरकार बनते ही उमा भारती बना दी गई गंगा सफाई मंत्री। 100करोड के बजट की खैरात भी दे दी गई।
हर हर मोदी- घर घर मोदी।
गंगा पुत्रों ने मोदी को बैठा दिया प्र.मं.की कुर्सी पर।
सरकार बनते ही उमा भारती बना दी गई गंगा सफाई मंत्री। 100करोड के बजट की खैरात भी दे दी गई।
अपनी काशी यात्रा में मोदी जी ने कहा- काशी वाले पान खाकर यहाँ वहाँ थूकना बंद करें, कचरा यहाँ वहाँ डालना बंद करें, काशी को साफ सुथरा रखें।
काशी की ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी की सफाई का भार काशी वालों को सौंप कर वे ... दिल्ली प्रस्थान कर गए।
सुना है कि मोदी जी के कथनानुसार काशी वालों ने पान खाकर थूकना बंद कर दिया है, अब कोई कचरा सडक पर नहीं डालता। सडक के किनारे खडे होकर तनाव मुक्त होना भी काशी वालों ने बंद कर दिया है। अब काशी दुनियां के सबसे साफ शहरों मे से एक हो गया है।
खैर, उमा जी ने मंत्री बनते ही ऐलान किया कि जो गंगा में थूकेगा उस पर 1000 रू जुर्माना लगाया जाएगा, ताकि काशी वाले थूक थूक कर गंगा सफाई अभियान में अपना सहयोग दे सकें। ए बात अलग है विरोध होने पर वे अपनी बात से पलट गई।
ए तो रही बीजेपी नेताओं की लंपटई।
अब यथार्थ की बात करें। भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी की तीन धाराओं से मिल कर बनी गंगा मैया गंगोत्री से गंगा-सागर तक लगभग 2525 किमी लंबी और भारत के 5 राज्यों की अपनी यात्रा पूरी करते हुए भारत के लाखों किमी भूभाग को सिंचित करती हैं।
RSS और BJP के कुछ विद्वान मोदी भक्त गंगा की तुलना मात्र 371 किमी लंबी साबरमती से करते हैं जो राजस्थान के उदयपुर जिले से निकल कर गुजरात के अहमदाबाद और गाँधीनगर शहरो से होकर खंबात की खाडी मे अपनी यात्रा समाप्त कर देती है। साबरमती विकास के नाम पर नर्मदा बाँध का किसानों के लिए आरक्षित पानी साबरमती नदी मे छोड कर और कुछ घाट बना कर मोदी जी ने स्वयं को महिमा मंडित कर लिया।
खैर हम गंगा मैया की बात करें । भारत के लाखों किमी भू भाग के किसानों की भूख और प्यास का ध्यान रखती हैं गंगा , तभी हम उन्हे सदियों से गंगा मैया कहते आए हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार से कानपुर, प्रयाग, काशी, पटना से गंगसागर तक गंगा के किनारे सैकडों बडे- छोटे शहर, कस्बे, गाँव बसे हुए है।
60 और 70 के दशक मे तेजी से हुए शहरीकरण ने गंगा मैया को बडी तेजी से दूषित किया। सन् 1986 में तत्कालीन प्र.मं. राजीव गाँधी ने गंगा की सफाई के लिए गंगा ऐक्शन प्लान बनाया। लगभग 5000 करोड की राशि (आज की कीमत के अनुसार लगभग 40,000 करोड) खर्च करके कानपुर, काशी जैसे शहरों मे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए ताकि शहर का गंदा पानी और कचरा गंगा मे प्रवाहित होने से रोका जा सके।
ए बात और है कि इन संयत्रों के रखरखाव की राज्य सरकारों ने लगातार अनदेखी की। काँग्रेस सरकार ने NGRBA(National Ganga River Basin Authority) के माध्यम से इस दिशा मे और अधिक काम करने की दिशा मे पहल की। गंगा भारत के 5 राज्यों से होकर गुजरती है और इन राज्य सरकारों के सहयोग के बिना कुछ भी कर पाना बडा मुश्किल है।
अलाहाबाद से कलकत्ता तक गंगा मे बडी नावों से परिवहन की योजना भी शुरू की गई और 2012-13 से गंगा का उपयोग परिवहन के लिए होना शुरू भी हो गया है। सामान ढोने के लिए गंगा का उपयोग करनेवाले उद्योगों को सबसिडी भी दी जाती है।
गोमुख और गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक अगर गंगा की सफाई करनी है तो इस क्षेत्र के जानकारों के हिसाब से लाखों करोड रू के बजट की जरूरत होगी। बीजेपी सरकार द्वारा घोषित 100 करोड रू की धनराशि तो विभाग के वेतन और भत्तों पर ही खर्च हो जाएगी।
अत: गंगापुत्रों से अनुरोध है की वित्तमंत्री जी से NGRBA के लिए पर्यापत धन देने का अनुरोध करें।
'नमन'
खैर, उमा जी ने मंत्री बनते ही ऐलान किया कि जो गंगा में थूकेगा उस पर 1000 रू जुर्माना लगाया जाएगा, ताकि काशी वाले थूक थूक कर गंगा सफाई अभियान में अपना सहयोग दे सकें। ए बात अलग है विरोध होने पर वे अपनी बात से पलट गई।
ए तो रही बीजेपी नेताओं की लंपटई।
अब यथार्थ की बात करें। भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी की तीन धाराओं से मिल कर बनी गंगा मैया गंगोत्री से गंगा-सागर तक लगभग 2525 किमी लंबी और भारत के 5 राज्यों की अपनी यात्रा पूरी करते हुए भारत के लाखों किमी भूभाग को सिंचित करती हैं।
RSS और BJP के कुछ विद्वान मोदी भक्त गंगा की तुलना मात्र 371 किमी लंबी साबरमती से करते हैं जो राजस्थान के उदयपुर जिले से निकल कर गुजरात के अहमदाबाद और गाँधीनगर शहरो से होकर खंबात की खाडी मे अपनी यात्रा समाप्त कर देती है। साबरमती विकास के नाम पर नर्मदा बाँध का किसानों के लिए आरक्षित पानी साबरमती नदी मे छोड कर और कुछ घाट बना कर मोदी जी ने स्वयं को महिमा मंडित कर लिया।
खैर हम गंगा मैया की बात करें । भारत के लाखों किमी भू भाग के किसानों की भूख और प्यास का ध्यान रखती हैं गंगा , तभी हम उन्हे सदियों से गंगा मैया कहते आए हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार से कानपुर, प्रयाग, काशी, पटना से गंगसागर तक गंगा के किनारे सैकडों बडे- छोटे शहर, कस्बे, गाँव बसे हुए है।
60 और 70 के दशक मे तेजी से हुए शहरीकरण ने गंगा मैया को बडी तेजी से दूषित किया। सन् 1986 में तत्कालीन प्र.मं. राजीव गाँधी ने गंगा की सफाई के लिए गंगा ऐक्शन प्लान बनाया। लगभग 5000 करोड की राशि (आज की कीमत के अनुसार लगभग 40,000 करोड) खर्च करके कानपुर, काशी जैसे शहरों मे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए ताकि शहर का गंदा पानी और कचरा गंगा मे प्रवाहित होने से रोका जा सके।
ए बात और है कि इन संयत्रों के रखरखाव की राज्य सरकारों ने लगातार अनदेखी की। काँग्रेस सरकार ने NGRBA(National Ganga River Basin Authority) के माध्यम से इस दिशा मे और अधिक काम करने की दिशा मे पहल की। गंगा भारत के 5 राज्यों से होकर गुजरती है और इन राज्य सरकारों के सहयोग के बिना कुछ भी कर पाना बडा मुश्किल है।
अलाहाबाद से कलकत्ता तक गंगा मे बडी नावों से परिवहन की योजना भी शुरू की गई और 2012-13 से गंगा का उपयोग परिवहन के लिए होना शुरू भी हो गया है। सामान ढोने के लिए गंगा का उपयोग करनेवाले उद्योगों को सबसिडी भी दी जाती है।
गोमुख और गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक अगर गंगा की सफाई करनी है तो इस क्षेत्र के जानकारों के हिसाब से लाखों करोड रू के बजट की जरूरत होगी। बीजेपी सरकार द्वारा घोषित 100 करोड रू की धनराशि तो विभाग के वेतन और भत्तों पर ही खर्च हो जाएगी।
अत: गंगापुत्रों से अनुरोध है की वित्तमंत्री जी से NGRBA के लिए पर्यापत धन देने का अनुरोध करें।
'नमन'
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