- कांग्रेस का अंग्रेजीकरण -
जो भी मनुष्य या समाज अपनी जड़ों से कट जाता है उसका विनाश हो जाता है। यही बात राजनैतिक दलों पर भी लागू होती है। अपने दून स्कूल और कानवेंट स्कूलों मे पढ़ी तथा-कथित अंग्रेजी पढे लिखे नेताओं की फौज लेकर कांग्रेस पार्टी जैसे जैसे आगे बढ़ी वह अपनी आंचलिक/ क्षेत्रीय सुगंध खोती गई। विशेष करके हिन्दी भाषी राज्यों मे इस पार्टी ने अपना जमीनी आधार तेजी से खोया है। कांग्रेस के नेता इन प्रदेशों की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं से जुडने मे असमर्थ रहे हैं। आम आदमी के दुख दर्द, उनकी समस्याएँ , उनकी आकांक्षा , उनके सपने जाने बिना आप उनके भावनात्मक स्तर पर जाकर उनकी बात नहीं समझ सकते।
यह वही गंगा जमुना का दोआबा है जहां के किसान ने 1857 की क्रांति से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सबसे जादा शहादतें दी। महात्मा गांधी , पंडित नेहरू, सुबासचंद्र बोस, गोपालकृष्ण गोखले, मौलाना आज़ाद इत्यादि कांग्रेस के अधिकतर बड़े नेता विदेशों मे शिक्षित थे पर उन्होने देश के जोड़ने मे हिन्दी के महत्व को पहचाना और वे किसान और आम आदमी को स्वतन्त्रता संग्राम की मुख्यधारा मे ले आए।
कौन कहेगा की लोकमान्य तिलक , डॉ राजेन्द्र प्रसाद और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे नेता बुद्धिमत्ता और आंग्ल भाषा मे किसी से कम प्रवीण थे, पर इन्होने आंचलिक और देशी भाषाओं के महत्व को पहचाना। उससे स्वतन्त्रता आंदोलन मजबूत हुआ।
वही कांग्रेस अपनी हिन्दी और अन्य आंचलिक भाषाओं की दूरी रखने के कारण जनता से जुडने मे आज अपने आपको असमर्थ पा रही है।
कांग्रेस ने 2004 से 2014 के अपने केंद्र के शासन काल मे किसानों, मजदूरों और उद्योग जगत के लिए सैकड़ों उल्लेखनीय काम किए हैं पर वे उसे जनता को समझाने मे असमर्थ रहे हैं।
हम श्रीमती सोनिया गांधी जी के हिन्दी भाषा मे धाराप्रवाह न बोल पाने की कमी को समझ सकते हैं पर डॉ मनमोहन सिंह ने अपने 10 साल के कार्यकाल मे कभी जनता से जुड़ने की कोशिश नहीं की। रक्षा मंत्री एके अंटोनी और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे अपनी सारी अच्छाईयो के बाद भी अपने हिन्दी के अज्ञान की वजह से जनता से नहीं जुड़ सके।
जिस सरकार के 4 मुख्यस्तंभ अपने देश की अवाम/ जनता तक अपनी बात पहुंचाने मे अक्षम रहेगे उसका परिणाम चुनाव मे उस सरकार को भुगतना पड़ेगा। आज 2014 के आम चुनावों मे अगर बीजेपी एक बड़ी पार्टी बन कर उभरती है तो इसका मूल कारण कांग्रेस का जनता से न जुड़ पाना ही होगा।
‘नमन’
जो भी मनुष्य या समाज अपनी जड़ों से कट जाता है उसका विनाश हो जाता है। यही बात राजनैतिक दलों पर भी लागू होती है। अपने दून स्कूल और कानवेंट स्कूलों मे पढ़ी तथा-कथित अंग्रेजी पढे लिखे नेताओं की फौज लेकर कांग्रेस पार्टी जैसे जैसे आगे बढ़ी वह अपनी आंचलिक/ क्षेत्रीय सुगंध खोती गई। विशेष करके हिन्दी भाषी राज्यों मे इस पार्टी ने अपना जमीनी आधार तेजी से खोया है। कांग्रेस के नेता इन प्रदेशों की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं से जुडने मे असमर्थ रहे हैं। आम आदमी के दुख दर्द, उनकी समस्याएँ , उनकी आकांक्षा , उनके सपने जाने बिना आप उनके भावनात्मक स्तर पर जाकर उनकी बात नहीं समझ सकते।
यह वही गंगा जमुना का दोआबा है जहां के किसान ने 1857 की क्रांति से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सबसे जादा शहादतें दी। महात्मा गांधी , पंडित नेहरू, सुबासचंद्र बोस, गोपालकृष्ण गोखले, मौलाना आज़ाद इत्यादि कांग्रेस के अधिकतर बड़े नेता विदेशों मे शिक्षित थे पर उन्होने देश के जोड़ने मे हिन्दी के महत्व को पहचाना और वे किसान और आम आदमी को स्वतन्त्रता संग्राम की मुख्यधारा मे ले आए।
कौन कहेगा की लोकमान्य तिलक , डॉ राजेन्द्र प्रसाद और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे नेता बुद्धिमत्ता और आंग्ल भाषा मे किसी से कम प्रवीण थे, पर इन्होने आंचलिक और देशी भाषाओं के महत्व को पहचाना। उससे स्वतन्त्रता आंदोलन मजबूत हुआ।
वही कांग्रेस अपनी हिन्दी और अन्य आंचलिक भाषाओं की दूरी रखने के कारण जनता से जुडने मे आज अपने आपको असमर्थ पा रही है।
कांग्रेस ने 2004 से 2014 के अपने केंद्र के शासन काल मे किसानों, मजदूरों और उद्योग जगत के लिए सैकड़ों उल्लेखनीय काम किए हैं पर वे उसे जनता को समझाने मे असमर्थ रहे हैं।
हम श्रीमती सोनिया गांधी जी के हिन्दी भाषा मे धाराप्रवाह न बोल पाने की कमी को समझ सकते हैं पर डॉ मनमोहन सिंह ने अपने 10 साल के कार्यकाल मे कभी जनता से जुड़ने की कोशिश नहीं की। रक्षा मंत्री एके अंटोनी और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे अपनी सारी अच्छाईयो के बाद भी अपने हिन्दी के अज्ञान की वजह से जनता से नहीं जुड़ सके।
जिस सरकार के 4 मुख्यस्तंभ अपने देश की अवाम/ जनता तक अपनी बात पहुंचाने मे अक्षम रहेगे उसका परिणाम चुनाव मे उस सरकार को भुगतना पड़ेगा। आज 2014 के आम चुनावों मे अगर बीजेपी एक बड़ी पार्टी बन कर उभरती है तो इसका मूल कारण कांग्रेस का जनता से न जुड़ पाना ही होगा।
‘नमन’
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