भारतीय राजनीति का गिरता हुआ वैचारिक स्तर---
(यह लेख मेरे पुराने लेख का सुधारा हुआ रूप है)
मित्रों,
आज का सोशल मीडिया पर राजनैतिक चर्चा और आलोचना का गिरता स्तर चिंता का विषय है। लोग चर्चा मे न केवल सफ़ेद झूठ का सहारा ले रहे हैं बल्कि गाली गलौज पर उतर आते हैं। अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को समझाने और उन्हे सभ्य बात-चीत के लिए प्रोत्साहित करने का काम विभिन्न राजनैतिक पार्टियो का है। परंतु राजनैतिक पार्टियों के शीर्ष नेता स्वयं दूसरों पर कीचड़ उछालने मे व्यस्त हैं।
सोशल मीडिया की बात छोड़ें तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया पूरा बिक चुका है। इंटरव्यू लेने और प्रसारित करने के भाव तय हैं। प्रश्न पहले से निश्चित हैं। नेता कितना भी झूठ बोले उसे रोका या टोका नहीं जाएगा। डिबेट भी प्रायोजित हैं।
प्रजातन्त्र मे चर्चा, आलोचना और समालोचना का अधिकार सबको है। सत्तारूढ़ पक्ष के कार्यों की उचित आलोचना, उसको आईना दिखाने का काम होना ही चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय सफ़ेद झूठ का सहारा लेना , गाली और अपशब्दों का उपयोग करना बिलकुल उचित नहीं है।
2014 के आम चुनावों मे एक बड़ी पार्टी के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नियमित रूप से प्रतिदिन कम से कम एक झूठ अवश्य प्रचारित करते हैं। सीधे-सीधे झूठ बोलने की कला को उन्होने नया विस्तार दिया है।
आज विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के पुरोधाओं के लिए यह आत्म-चिंतन का समय है। उनके असभ्य, आत्म-केन्द्रित और लापरवाह वक्तृत्व एवंम कृतित्व ने समय-समय पर मतदाता के सामने बहुत ही गलत उदाहरण प्रस्तुत किया है। कुछ राजनेता/ राजनैतिक पक्ष गलती पर हो सकते हैं, उनसे कुछ गलतियाँ हो सकती हैं पर राजनेताओं के ओछे व्यवहार ने पूरी राजनैतिक बिरादरी को कटघरे मे खड़ा कर दिया है।
स्त्री के सक्षमीकरण की बात करने वाले छद्म राजनेताओं ने स्त्री को जितना अपमानित किया है यह इसके पहले कभी नहीं हुआ। स्त्री के शरीर को निशाना बना कर अपनी नपुंसकता को ढकने की राजनेताओं की कोशिश ने नेताओं को नंगा कर दिया है।
एक और बात मुझे चिंतित करती है, और वह है हमारे शून्य होते राष्ट्राभिमान और स्वाभिमान की। आज के युवा का सोच है की पूरा का पूरा भारत भ्रष्ट हो गया है। सामने उपस्थित हर शक्स उन्हे भ्रस्टाचार मे लिप्त लगता है। मैं उनसे सहमत नहीं हूँ।
पूरे देश मे सरकारी, अर्धसरकारी, स्थानीय नगरपालिका, महानगरपालिका, न्यायपालिका, सहकारी और अध्यापन क्षेत्र मे काम करने वालों की संख्या 3% से अधिक नहीं होगी । सांसदो और विधायकों की कुल संख्या लगभग 6000 होगी। कुल ऐसे पदों पर स्थापित नेताओं की संख्या जो भ्रष्टाचार कर सकते हैं 50-60 हज़ार से अधिक नहीं होगी। इनमे ग्राम प्रधानो , सरपंचों , जिला परिषद सदस्यों, ब्लाक प्रमुखों, विभिन्न सोसायटी के सदस्य व अध्यक्ष , पार्षद , नगरसेवक आदि सब आ जाते हैं । यह कुल जनसंख्या के 0.005% से अधिक नहीं है। इन्ही पर सारे भ्रष्टाचार की कालिख पोत कर हम मुक्ति पा लेते हैं।
विभिन्न सरकारी , अर्ध-सरकारी विभागों के अधिकारी IAS, IPS, IRS, IFS, PCS, अधिकारी नहीं चाहें तो कोई नेता करोड़ों की बात छोड़िए 1 पैसे का भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। ये अधिकारी इस देश की सब से बड़ी भ्रष्ट जमात हैं पर आप इनपर अंगुली नहीं उठाते।
हम राजनेताओं को गाली देते हैं , भ्रष्ट कहते है, पर हमारा अपना पिता , भाई, परिवार का सदस्य , रिश्तेदार जो सरकारी,अर्ध सरकारी या लाभ के पदों पर है, उसके भ्रष्टाचार का विरोध तो दूर हम उसका नाम तक नहीं लेते। ।
कुल व्यापारी वर्ग, बड़े औद्योगिक घरानो से लेकर नुक्कड़ के पंसारी तक सब मिला कर 5% से अधिक नहीं होंगे। कुल डाक्टर, वकील और अन्य को भी जोड़ें तो ऐसे लोगों की कुल संख्या जो भ्रष्टाचार मे सीधे या अपरोक्ष रूप से लिप्त हैं या भ्रष्टाचार कर सकते हैं कुल जनसंख्या का अधिकतम 10% से अधिक नहीं होगा।
यानि हमारे बीच अभी भी 90% लोग भ्रष्ट नहीं हैं, हाँ भ्रष्टाचार से पीड़ित जरूर हैं। यह 90% देशवासी अगर चाहें तो देश 1 दिन मे भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता है।
अगर गाँव वाले न चाहें और सार्थक विरोध करे तो उन्ही के साथ उन्ही के गाँव मे रहने वाला प्रधान या सरपंच भ्रष्टाचार नहीं कर सकता ।
अगर हम अपने वार्ड के पार्षद या नगरसेवक को जो हमारे साथ ही रहता है, हममे से ही एक है भ्रष्टाचार से नहीं रोक सकते तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का अधिकार हमें नहीं है।
अगर हम भ्रष्ट विधायक, भ्रष्ट सांसद , भ्रष्ट जिला परिषद सदस्यों, भ्रष्ट पार्षदों/नगरसेवकों का सिर्फ सम्मान करना बंद कर दे , उन्हे पूजा , शादियों, धार्मिक और सामाजिक समारोहों मे बुलाना बंद कर दें , उनका सामाजिक बहिष्कार शुरू कर दे , तो देखिये भ्रष्टाचार के इस राक्षस का विनाश शुरू होता है की नहीं।
पर हम जैसे लोग सिर्फ चर्चा करते हैं, उस पर अमल के समय भाग खड़े होते हैं।
(यह लेख मेरे पुराने लेख का सुधारा हुआ रूप है)
मित्रों,
आज का सोशल मीडिया पर राजनैतिक चर्चा और आलोचना का गिरता स्तर चिंता का विषय है। लोग चर्चा मे न केवल सफ़ेद झूठ का सहारा ले रहे हैं बल्कि गाली गलौज पर उतर आते हैं। अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को समझाने और उन्हे सभ्य बात-चीत के लिए प्रोत्साहित करने का काम विभिन्न राजनैतिक पार्टियो का है। परंतु राजनैतिक पार्टियों के शीर्ष नेता स्वयं दूसरों पर कीचड़ उछालने मे व्यस्त हैं।
सोशल मीडिया की बात छोड़ें तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया पूरा बिक चुका है। इंटरव्यू लेने और प्रसारित करने के भाव तय हैं। प्रश्न पहले से निश्चित हैं। नेता कितना भी झूठ बोले उसे रोका या टोका नहीं जाएगा। डिबेट भी प्रायोजित हैं।
प्रजातन्त्र मे चर्चा, आलोचना और समालोचना का अधिकार सबको है। सत्तारूढ़ पक्ष के कार्यों की उचित आलोचना, उसको आईना दिखाने का काम होना ही चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय सफ़ेद झूठ का सहारा लेना , गाली और अपशब्दों का उपयोग करना बिलकुल उचित नहीं है।
2014 के आम चुनावों मे एक बड़ी पार्टी के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नियमित रूप से प्रतिदिन कम से कम एक झूठ अवश्य प्रचारित करते हैं। सीधे-सीधे झूठ बोलने की कला को उन्होने नया विस्तार दिया है।
आज विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के पुरोधाओं के लिए यह आत्म-चिंतन का समय है। उनके असभ्य, आत्म-केन्द्रित और लापरवाह वक्तृत्व एवंम कृतित्व ने समय-समय पर मतदाता के सामने बहुत ही गलत उदाहरण प्रस्तुत किया है। कुछ राजनेता/ राजनैतिक पक्ष गलती पर हो सकते हैं, उनसे कुछ गलतियाँ हो सकती हैं पर राजनेताओं के ओछे व्यवहार ने पूरी राजनैतिक बिरादरी को कटघरे मे खड़ा कर दिया है।
स्त्री के सक्षमीकरण की बात करने वाले छद्म राजनेताओं ने स्त्री को जितना अपमानित किया है यह इसके पहले कभी नहीं हुआ। स्त्री के शरीर को निशाना बना कर अपनी नपुंसकता को ढकने की राजनेताओं की कोशिश ने नेताओं को नंगा कर दिया है।
एक और बात मुझे चिंतित करती है, और वह है हमारे शून्य होते राष्ट्राभिमान और स्वाभिमान की। आज के युवा का सोच है की पूरा का पूरा भारत भ्रष्ट हो गया है। सामने उपस्थित हर शक्स उन्हे भ्रस्टाचार मे लिप्त लगता है। मैं उनसे सहमत नहीं हूँ।
पूरे देश मे सरकारी, अर्धसरकारी, स्थानीय नगरपालिका, महानगरपालिका, न्यायपालिका, सहकारी और अध्यापन क्षेत्र मे काम करने वालों की संख्या 3% से अधिक नहीं होगी । सांसदो और विधायकों की कुल संख्या लगभग 6000 होगी। कुल ऐसे पदों पर स्थापित नेताओं की संख्या जो भ्रष्टाचार कर सकते हैं 50-60 हज़ार से अधिक नहीं होगी। इनमे ग्राम प्रधानो , सरपंचों , जिला परिषद सदस्यों, ब्लाक प्रमुखों, विभिन्न सोसायटी के सदस्य व अध्यक्ष , पार्षद , नगरसेवक आदि सब आ जाते हैं । यह कुल जनसंख्या के 0.005% से अधिक नहीं है। इन्ही पर सारे भ्रष्टाचार की कालिख पोत कर हम मुक्ति पा लेते हैं।
विभिन्न सरकारी , अर्ध-सरकारी विभागों के अधिकारी IAS, IPS, IRS, IFS, PCS, अधिकारी नहीं चाहें तो कोई नेता करोड़ों की बात छोड़िए 1 पैसे का भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। ये अधिकारी इस देश की सब से बड़ी भ्रष्ट जमात हैं पर आप इनपर अंगुली नहीं उठाते।
हम राजनेताओं को गाली देते हैं , भ्रष्ट कहते है, पर हमारा अपना पिता , भाई, परिवार का सदस्य , रिश्तेदार जो सरकारी,अर्ध सरकारी या लाभ के पदों पर है, उसके भ्रष्टाचार का विरोध तो दूर हम उसका नाम तक नहीं लेते। ।
कुल व्यापारी वर्ग, बड़े औद्योगिक घरानो से लेकर नुक्कड़ के पंसारी तक सब मिला कर 5% से अधिक नहीं होंगे। कुल डाक्टर, वकील और अन्य को भी जोड़ें तो ऐसे लोगों की कुल संख्या जो भ्रष्टाचार मे सीधे या अपरोक्ष रूप से लिप्त हैं या भ्रष्टाचार कर सकते हैं कुल जनसंख्या का अधिकतम 10% से अधिक नहीं होगा।
यानि हमारे बीच अभी भी 90% लोग भ्रष्ट नहीं हैं, हाँ भ्रष्टाचार से पीड़ित जरूर हैं। यह 90% देशवासी अगर चाहें तो देश 1 दिन मे भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता है।
अगर गाँव वाले न चाहें और सार्थक विरोध करे तो उन्ही के साथ उन्ही के गाँव मे रहने वाला प्रधान या सरपंच भ्रष्टाचार नहीं कर सकता ।
अगर हम अपने वार्ड के पार्षद या नगरसेवक को जो हमारे साथ ही रहता है, हममे से ही एक है भ्रष्टाचार से नहीं रोक सकते तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का अधिकार हमें नहीं है।
अगर हम भ्रष्ट विधायक, भ्रष्ट सांसद , भ्रष्ट जिला परिषद सदस्यों, भ्रष्ट पार्षदों/नगरसेवकों का सिर्फ सम्मान करना बंद कर दे , उन्हे पूजा , शादियों, धार्मिक और सामाजिक समारोहों मे बुलाना बंद कर दें , उनका सामाजिक बहिष्कार शुरू कर दे , तो देखिये भ्रष्टाचार के इस राक्षस का विनाश शुरू होता है की नहीं।
पर हम जैसे लोग सिर्फ चर्चा करते हैं, उस पर अमल के समय भाग खड़े होते हैं।
भ्रष्ट नेता , भ्रष्ट नौकरशाह , मीडिया भ्रष्ट है
इन सभी से आज हिन्दुस्तान मेरा त्रस्त है।
बिक गए कोतवाल और मुख्तार क़ाज़ी बिक गए
आज का कानून अँधा है, हुआ पथ भ्रष्ट है।
गुंडे , डाकू, बलात्कारी सब हैं संसद में भरे
देश के संसद की गरिमा हो गयी अब नष्ट है।
ज्ञान शिक्षा माफियाओं के यहाँ गिरवी पडा
और शासक है की सत्ता के नशे में मस्त है।
द्रोपदी की लाज़ रखने कृष्ण अब आते नहीं
आज रक्षक ही हुआ भक्षक यही तो कष्ट है।
'नमन'
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