Tuesday 6 May 2014

जितना हल्का आदमी, उतने ऊंचे बोल


जितना हल्का आदमी, उतने ऊंचे बोल
बजने वाले ढ़ोल के अंदर होता पोल। 'नमन'
एक बेहद हल्का, ओछा और छोटे कद का इंसान पूरे हिंदुस्तान पर कीचड़ उछाल रहा है। उसका मानना है की कमल कीचड़ मे ही खिलेगा, सो सब पर कीचड़ उछाले जा रहा है। जब भी कोई उसे आईना दिखाता है वह बेवा स्त्रियॉं की तरह रोना चालू कर देता है। मैं छोटी जाती से हूँ इसलिए मुझे सताया जा रहा है। मै चायवाले का लड़का हूँ इस लिए मुझे सताया जा रहा है। जिस उम्र मे माँ की सेवा करनी थी, पिता का सहारा बनना था, पत्नी का संबल बनना था, ये महोदय घर छोड़ कर भाग गए।
बाबा रामदेव की तरह ये भी कायरों की प्रजाति से आते हैं। वो अपने समर्थकों को छोड़ कर जेल जाने के डर से सलवार समीज पहन कर भाग लिए थे। ये गरीबी के डर से, श्रम के डर से घर छोड़ कर भाग लिए।
माँ बर्तन माँज कर घर चलाती रही और ये बेशर्मी से घूमते रहे। सगी माँ के न हो सके तो धरती माँ के क्या होंगे।
बीबी को रोता तड़पता छोड़ कर निकल पड़े आनंद की तलाश मे। अरे कम से कम तलाक दे दिया होता उसे की वो दूसरी शादी तो कर पाती। सगी बीबी के नहीं हुये और चले हैं भारत की 60 करोड़ महिलाओं का जिम्मा लेने।
भारत के महानतम पत्रकारों मे से किसी मे गुर्दा नहीं है की पूंछ लेते जसोदा बेन को क्यों छोड़ा?
भारतीय पत्रकारिता की और समाज की सन्नारियों मे से किसी मे हिम्मत नहीं है की पूंछ लेते की बेटे का फर्ज़ क्यों नहीं निभाया, माँ को क्यों छोड़ दिया बर्तन माँजने के लिए?
पत्रकारों की आत्मा गिरवी है पूँजीपतियों के पास और कलम / आवाज़ सुखद जीवन के नाम बिक गयी है।
आपको आए या न आए मुझे तो घिन आती है इनसे। ये चंद बिके हुये लोग दूसरों से प्रश्न पूंछते हैं ? अपने को खुदा समझ लिया है इनहोने । नेता बनाते हैं, बिगाड़ते हैं।
काश हम बेवफा हुये होते
जमाने के खुदा हुये होते।
बीबी को त्याग कर हम भी
देश के रहनुमा हुये होते। ‘नम
न’

No comments:

Post a Comment